Mahabharat Van Parv Yaksha Yudhishthir Samvad: महाभारत वन पर्व में वर्णित यक्ष–युधिष्ठिर संवाद का विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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Mahabharat Van Parv Yaksha Yudhishthir Samvad:  महाभारत वन पर्व में वर्णित यक्ष–युधिष्ठिर संवाद का विश्लेषण 

🌸 महाभारत : यक्ष–युधिष्ठिर संवाद 🌸

यह प्रसंग वनपर्व से लिया गया है, जहाँ यक्ष ने युधिष्ठिर से अनेक गूढ़ प्रश्न पूछे। उनमें से एक प्रश्न सूर्य के उदय-अस्त से सम्बन्धित है।


✦ मूल श्लोक ✦

यक्ष उवाच

किं स्वदादित्यमुन्नयति के च तस्याभितश्चराः ।
कश्चैनमस्तं नयति स कस्मिंश्च प्रतितिष्ठति ॥

👉 यक्ष ने पूछा – “सूर्य को कौन ऊपर उठाता (उदित करता) है? उसके चारों ओर कौन चलते हैं? उसे अस्त कौन करता है? और वह किसमें प्रतिष्ठित है?”


युधिष्ठिर उवाच

ब्रह्मादित्यमुन्नयति देवास्तस्याभितश्चराः ।
धर्मश्चास्तं नयति च सत्ये च प्रतितिष्ठति ॥

👉 युधिष्ठिर बोले – “ब्रह्म सूर्य को ऊपर उठाता है। देवता उसके चारों ओर चलते हैं। धर्म उसे अस्त कराता है और वह सत्य में प्रतिष्ठित है।”


✨ व्याख्या ✨

🔹 यक्ष का यह प्रश्न खगोल-विज्ञान और आध्यात्मिक दर्शन दोनों से जुड़ा हुआ है।
उस समय यह धारणा थी कि पृथ्वी स्थिर (अचला) है और सूर्य उदय होकर पश्चिम में अस्त हो जाता है। युधिष्ठिर ने उसी समय की मान्यताओं और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के आधार पर उत्तर दिया।

Mahabharat Van Parv Yaksha Yudhishthir Samvad:  महाभारत वन पर्व में वर्णित यक्ष–युधिष्ठिर संवाद का विश्लेषण
Mahabharat Van Parv Yaksha Yudhishthir Samvad: महाभारत वन पर्व में वर्णित यक्ष–युधिष्ठिर संवाद का विश्लेषण 


1️⃣ “ब्रह्मादित्यमुन्नयति” – सूर्य को ब्रह्म उदित करता है

  • यहाँ ब्रह्म का अर्थ है प्रकृति या ईश्वरीय शक्ति।

  • सूर्य सहित सभी ग्रह-नक्षत्र उसी शक्ति के नियमों से संचालित हैं।

  • आज के विज्ञान की दृष्टि से भी यह सत्य है कि सूर्य की उत्पत्ति और गति प्रकृति के अपरिवर्तनीय नियमों पर आधारित है।

2️⃣ “देवास्तस्याभितश्चराः” – देवता उसके चारों ओर चलते हैं

  • प्राचीन काल में सभी चमकदार ग्रहों (ग्रह-नक्षत्र) को देवता कहा गया।

  • ग्रह वास्तव में सूर्य की परिक्रमा करते हैं।

  • अतः यह उत्तर उस समय की खगोल-दृष्टि और दार्शनिक भाषा दोनों में उपयुक्त है।

3️⃣ “धर्मश्चास्तं नयति” – धर्म सूर्य को अस्त करता है

  • सूर्य का स्वभाव है – उदय होना और अस्त होना।

  • यही उसका धर्म (कर्तव्य) है।

  • यदि वह सदा एक ही स्थिति में रहे तो सृष्टि का संतुलन बिगड़ जाएगा।

  • दिन-रात, ऋतुचक्र, तापमान-संतुलन – ये सब सूर्य के इसी धर्म पर आधारित हैं।

4️⃣ “सत्ये च प्रतितिष्ठति” – सूर्य सत्य में प्रतिष्ठित है

  • सत्य यहाँ शाश्वत धर्म का ही नाम है।

  • सूर्य का अनवरत प्रकाश, ऊष्मा और अपनी गति – यही उसका सत्य है।

  • इसी सत्य-पालन से वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का पालन करता है।


🌺 दार्शनिक निहितार्थ 🌺

  • यक्ष के प्रश्न केवल जिज्ञासा नहीं थे, बल्कि धर्म-ज्ञान की परीक्षा थे।

  • युधिष्ठिर ने यह बताकर सिद्ध किया कि ब्रह्माण्ड का प्रत्येक घटक अपने धर्म का पालन कर रहा है।

  • सूर्य का धर्म है — निरन्तर उदय-अस्त होकर जगत् की सृष्टि-रक्षा करना।

  • उसी प्रकार मनुष्य का धर्म है — सत्य और कर्तव्य का पालन करना।

👉 इसीलिए कबीर ने भी कहा —
“धरम न दूसर सत्य समाना।”

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