संस्कृत श्लोक "लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक "लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 

🌸 जय श्रीराम – सुप्रभातम् 🌸

आज का श्लोक समाज और राष्ट्र की स्थिरता के लिए आवश्यक पाँच गुणों की पहचान कराता है।


📜 संस्कृत मूल

लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता ।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात् तत्र संस्थितिम् ॥


🔤 IAST Transliteration

lokayātrā bhayaṁ lajjā dākṣiṇyaṁ tyāgaśīlatā ।
pañca yatra na vidyante na kuryāt tatra saṁsthitim ॥


🇮🇳 हिन्दी भावार्थ

जिस प्रदेश अथवा समाज में ये पाँच बातें नहीं पाई जातीं—

  1. लोकयात्रा – जीवनयापन के साधन, उचित व्यवसाय या आजीविका,
  2. भयम् – अपराध करने पर शासन या धर्म से दण्ड का भय,
  3. लज्जा – शील, मर्यादा और संकोच,
  4. दाक्षिण्यम् – दूसरों के प्रति दयालुता व उदार व्यवहार,
  5. त्यागशीलता – त्याग और परोपकार की प्रवृत्ति,

वहाँ किसी भी सज्जन पुरुष को निवास नहीं करना चाहिए।

संस्कृत श्लोक "लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
संस्कृत श्लोक "लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 



📚 व्याकरणिक विश्लेषण

  • लोकयात्रा → लोकस्य यात्रा = समाज का जीवनयापन, आजीविका
  • भयम् → दण्ड अथवा पापफल का भय
  • लज्जा → संकोच, शीलभाव
  • दाक्षिण्यम् → दया, मृदुता, सह्रदयता
  • त्यागशीलता → त्याग करने की आदत, परमार्थ प्रवृत्ति
  • न कुर्यात् तत्र संस्थितिम् → वहाँ निवास नहीं करना चाहिए

🌼 नीति संदेश

👉 समाज तभी स्वस्थ और टिकाऊ होता है, जब उसमें आजिविका, न्याय का भय, शील, करुणा और त्याग ये पाँच गुण विद्यमान हों।
👉 यदि ये लुप्त हो जाएँ, तो वहाँ अराजकता, अन्याय, हिंसा और स्वार्थ का वातावरण फैल जाता है।
👉 ऐसे स्थान में रहने वाला सज्जन स्वयं भी नष्ट हो सकता है।


🪔 आधुनिक सन्दर्भ

  • जिस देश या समाज में भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और अपराध प्रबल हों, वहाँ नागरिक का जीवन असुरक्षित हो जाता है।
  • जहाँ लोग न लज्जा रखते हैं, न दया दिखाते हैं और न परोपकार, वहाँ केवल स्वार्थ और भयहीन अपराध शासन करते हैं।
  • ऐसे वातावरण से सज्जन पुरुष को दूर रहना चाहिए और यदि रहना ही पड़े तो सुधार के लिए प्रयत्न करना चाहिए।

✅ शिक्षा

👉 जीवनयापन और समाज की स्थिरता इन पाँच गुणों पर निर्भर है।
👉 न्याय, शील, करुणा और त्याग के बिना समाज नरक समान हो जाता है।

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