Motivational Vishnu Katha in Sanskrit aur Hindi – पंच अंगुलियों की प्रेरणादायक कहानी

Sooraj Krishna Shastri
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Motivational Vishnu Katha in Sanskrit aur Hindi – पंच अंगुलियों की प्रेरणादायक कहानी

संस्कृत मूल :

हस्तस्थाः याः पञ्च अङ्गुल्यः स्युः, एकदा तासां मध्ये श्रेष्ठत्वसम्बद्धः विवादः समुत्पन्नः ।

हिन्दी अनुवाद :

हाथ में स्थित पाँचों अंगुलियों के बीच एक दिन श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। उनमें प्रत्येक ने कहना प्रारम्भ कर दिया कि “मैं ही श्रेष्ठ हूँ।” धीरे-धीरे वह विवाद बढ़ता गया।


संस्कृत मूल :

तासु प्रत्येकम् अहमेव श्रेष्ठा इति वक्तुम् आरभत । शनैः सः विवादः तुङ्गताम् अगच्छत् । किं कर्तव्यं, समाधानं किं, तत् कः दद्यात् इति विचिन्त्य अन्ते ताः सर्वा वैकुण्ठं प्रति प्रस्थितवत्यः, भगवतः विष्णोः सान्निध्यं च प्राप्तवत्यः ।

हिन्दी अनुवाद :

प्रत्येक अंगुली ने कहना आरम्भ किया – “मैं ही श्रेष्ठ हूँ।” विवाद बढ़कर ऊँचाई पर पहुँचा। अब क्या करना चाहिए, समाधान कौन देगा – यह सोचकर वे सब अंगुलियाँ वैकुण्ठ धाम की ओर चल पड़ीं और भगवान विष्णु के सान्निध्य में पहुँचीं।


संस्कृत मूल :

भगवान् विष्णुरपि तासाम् आगमनस्य कारणं किमिति अन्तर्मनसा ज्ञातवान्, उक्तवान् च - भवतीनां मध्ये परस्परं तादृशः कः विवादः सञ्जातः ?

हिन्दी अनुवाद :

भगवान विष्णु ने मन ही मन उनके आगमन का कारण जान लिया और पूछा – “तुम सबके बीच ऐसा कौन-सा विवाद उत्पन्न हुआ कि तुम यहाँ तक आ गईं?”

Motivational Vishnu Katha in Sanskrit aur Hindi – पंच अंगुलियों की प्रेरणादायक कहानी
Motivational Vishnu Katha in Sanskrit aur Hindi – पंच अंगुलियों की प्रेरणादायक कहानी



✦ अंगुलियों का क्रमशः कथन ✦

  1. कनिष्ठिका (छोटी अंगुली)

    संस्कृत – पृथ्वीलोके गिरिराजपर्वतं सप्तदिनानि यावत् एकाकिनी एव धारितवती आसम्, अतः अहमेव श्रेष्ठा ।
    हिन्दी – “भगवान! मैंने पृथ्वीलोक में सात दिन तक अकेले ही गोवर्धन पर्वत को धारण किया था, अतः मैं ही श्रेष्ठ हूँ।”

  2. अनामिका (अँगूठी वाली अंगुली)

    संस्कृत – सर्वेषां मनुष्याणां ललाटे अहमेव तिलकं धारयामि, यज्ञकार्येषु कुशपवित्रं, स्वर्णमुद्रिकादिकं च धारयामि ।
    हिन्दी – “भगवान! मनुष्यों के ललाट पर मैं तिलक धारण करती हूँ, यज्ञों में कुशा-पवित्र और अंगूठी आदि भी मैं ही धारण करती हूँ। शुभ कार्य मेरे बिना पूरे नहीं होते। इसलिए मैं श्रेष्ठ हूँ।”

  3. मध्यमा (मध्य की अंगुली)

    संस्कृत – एतासां सर्वासां मध्ये स्थितवती अहमेव उन्नततमा, दीर्घतमा वा अस्मि ।
    हिन्दी – “भगवान! मैं सब अंगुलियों के बीच स्थित हूँ और सबसे ऊँची व सबसे बड़ी भी हूँ। अतः मैं ही श्रेष्ठ हूँ।”

  4. तर्जनी (इशारा करने वाली अंगुली)

    संस्कृत – एतासु स्थितास्वपि अहमेव सुदर्शनचक्रं धारयामि । अहमेव प्रथमतः निर्दिशामि ।
    हिन्दी – “भगवान! मैं ही सुदर्शन चक्र धारण करती हूँ और किसी भी वस्तु का संकेत सबसे पहले मैं ही करती हूँ। इसलिए मैं श्रेष्ठ हूँ।”

  5. अंगुष्ठ (अँगूठा)

    संस्कृत – मनुष्यस्य परिचयम् अहमेव कारयामि । आवेदनपत्रे अङ्गुष्ठाङ्कनं विना तदर्थकं न भवति ।
    हिन्दी – “भगवान! मनुष्य की पहचान मैं ही कराता हूँ। आवेदन पत्र या किसी भी दस्तावेज़ पर मेरे बिना – अंगूठे के निशान के बिना – वह निरर्थक होता है। अतः मैं ही श्रेष्ठ हूँ।”


✦ भगवान का निर्णय ✦

संस्कृत मूल :

भगवान् - एवं वा ! भवतीषु प्रत्येकं श्रेष्ठा ननु । तर्हि भवत्यः एकैकिनीतया मम एकं कार्यं कुर्वन्तु । अहं लड्डुकप्रियः, इदानीं बुभुक्षा मां बाधमाना एव ।

हिन्दी अनुवाद :

भगवान बोले – “हाँ! तुम सब अपनी-अपनी दृष्टि से श्रेष्ठ ही हो। परंतु अब एक कार्य करके दिखाओ। मुझे लड्डू प्रिय हैं और अभी मुझे भूख भी लगी है। तुम सब अलग-अलग एक-एक लड्डू बनाकर मुझे पाँच लड्डू दो।”


संस्कृत मूल :

ताः यथाशक्यं प्रयत्नं कृतवत्यः, परन्तु एकाकिनीतया न शक्तवत्यः ।

हिन्दी अनुवाद :

अंगुलियों ने यथाशक्ति प्रयत्न किया, परंतु अलग-अलग रहकर कोई भी लड्डू नहीं बना सकीं।


संस्कृत मूल :

भगवान् उक्तवान् – तर्हि भवत्यः सम्मिल्य एव एतत्कार्यं कुर्वन्तु ।

हिन्दी अनुवाद :

भगवान ने कहा – “तो अब तुम सब मिलकर यह कार्य करो।”


संस्कृत मूल :

सर्वाः सम्मिल्य सहजतया पञ्च लड्डकानि निर्माय भगवते अर्पितवत्यः । भगवानपि प्रेमपूर्वकं तानि स्वीकृत्य खादितवान् ।

हिन्दी अनुवाद :

सब अंगुलियाँ मिलकर सहज रूप से पाँच लड्डू बना लाई और भगवान को अर्पित किए। भगवान ने उन्हें प्रेमपूर्वक स्वीकार किया और खा लिया।


✦ उपसंहार ✦

संस्कृत मूल :

भगवान् उक्तवान् – पश्यन्तु, स्वस्वस्थाने भवत्यः सर्वाः अपि श्रेष्ठाः एव ; परन्तु किञ्चन महत्कार्यं चेत् सम्मिल्य हि कर्तव्यम् ।

हिन्दी अनुवाद :

भगवान ने कहा – “देखो! अपने-अपने स्थान पर तुम सब श्रेष्ठ ही हो, परंतु कोई बड़ा कार्य करना हो तो मिल-जुलकर ही करना चाहिए। यही ‘एकता’ है। एकता में ही महान बल और कौशल है। यदि सब केवल अपना-अपना महत्त्व दिखाएँ और अलग-अलग रहें, तो समाज नहीं टिकेगा, सब नष्ट हो जाएगा। अतः कार्य सदैव मिलकर ही करना चाहिए।”


🌸 सार :
यह कथा हमें सिखाती है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने स्थान पर महत्त्वपूर्ण और श्रेष्ठ होता है, परंतु बड़े और महत्त्वपूर्ण कार्य केवल सहयोग और एकता से ही संभव हैं।

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