कालिया Naag aur Garuda Katha – Krishna Leela का Adhyatmik Rahasya

Sooraj Krishna Shastri
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कालिया Naag aur Garuda Katha – Krishna Leela का Adhyatmik Rahasya


कालिया नाग और गरुड़ की कथा

कालिया नाग का परिचय

कालिया नाग कद्रू का पुत्र और पन्नग जाति का नागराज था। वह पहले रमणक द्वीप में निवास करता था, किंतु पक्षिराज गरुड़ से शत्रुता हो जाने के कारण वह यमुना नदी के कुण्ड में आकर रहने लगा था।

गरुड़ और सर्पों का समझौता

रमणक द्वीप में नागों का विनाश करने वाले गरुड़ प्रतिदिन जाकर बहुत-से नागों का संहार करते थे। अतः एक दिन भय से व्याकुल हुए वहाँ के सर्पों ने उस द्वीप में पहुँचे हुए क्षुब्ध गरुड़ से इस प्रकार कहा—

“हे गुरुत्मन! तुम्हें नमस्कार है। तुम साक्षात भगवान विष्णु के वाहन हो। जब इस प्रकार हम सर्पों को खाते रहोगे तो हमारा जीवन कैसे सुरक्षित रहेगा?
इसलिए प्रत्येक मास में एक बार पृथक-पृथक एक-एक घर से एक सर्प की बलि ले लिया करो। उसके साथ वनस्पति तथा अमृत के समान मधुर अन्न की सेवा भी प्रस्तुत की जायगी। यह सब विधान के अनुसार तुम शीघ्र स्वीकार करो।”

गरुड़ जी बोले—
“आप लोग एक-एक घर से एक-एक नाग की बलि प्रतिदिन दिया करें; अन्यथा सर्प के बिना दूसरी वस्तुओं की बलि से मैं कैसे पेट भर सकूँगा? वह तो मेरे लिये पान के बीड़े के तुल्य होगी।”

उनके यों कहने पर सब सर्पों ने आत्मरक्षा के लिये एक-एक करके उन महात्मा गरुड़ के लिये नित्य दिव्य बलि देना आरम्भ किया।

कालिया Naag aur Garuda Katha – Krishna Leela का Adhyatmik Rahasya
कालिया Naag aur Garuda Katha – Krishna Leela का Adhyatmik Rahasya

कालिया और गरुड़ का संघर्ष

जब कालिय के घर से बलि मिलने का अवसर आया, तब उसने गरुड़ को दी जाने वाली बलि की सारी वस्तुएँ बलपूर्वक स्वयं ही भक्षण कर लीं। उस समय प्रचण्ड पराक्रमी गरुड़ बड़े रोष में भरकर आये। आते ही उन्होंने कालिय नाग के ऊपर अपने पंजे से प्रहार किया।

गरुड़ के उस पाद-प्रहार से कालिय मूर्च्छित हो गया। फिर उठकर लम्बी साँस लेते और जिह्वाओं से मुँह चाटते हुए नागों में श्रेष्ठ बलवान कालिय ने अपने सौ फण फैलाकर विषैले दाँतों से गरुड़ को वेगपूर्वक डँस लिया।

तब दिव्य वाहन गरुड़ ने उसे चोंच में पकड़ कर पृथ्वी पर दे मारा और पाँखों से बारंबार पीटना आरम्भ किया।

गरुड़ की चोंच से निकल कर सर्प ने उनके दोनों पंजों को आवेष्टित कर लिया और बारंबार फुंकार करते हुए उनकी पाँखों को खींचना आरम्भ किया। उस समय उनके पंख से दो पक्षी उत्पन्न हुए— “नीलकण्ठ और मयूर”।

रोष से भरे हुए गरुड़ ने पुनः कालिय को चोंच से पकड़ कर पृथ्वी पर पटक दिया और सहसा वे उसके शरीर को घसीटने लगे। तब भय से विह्वल हुआ कालिय गरुड़ की चोंच से छूट कर भागा। प्रचण्‍ड पराक्रमी पक्षिराज गरुड़ भी सहसा उसका पीछा करने लगे।

कालिया का लोक-लोकांतरण

सात द्वीपों, सात खण्डों और सात समुद्रों तक वह जहाँ-जहाँ गया, वहाँ-वहाँ उसने गरुड़ को पीछा करते देखा।

वह नाग भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक और महर्लोक में क्रमशः जा पहुँचा और वहाँ से भागता हुआ जन लोक में पहुँचा। जहाँ जाता, वहीं गरुड़ भी पहुँच जाते।

पुनः नीचे-नीचे के लोकों में क्रमशः गया; किंतु श्रीकृष्ण (भगवान विष्णु) के भय से किसी ने उसकी रक्षा नहीं की। जब उसे कहीं भी शांति नहीं मिली, तब भय से व्याकुल कालिय देवाधिदेव शेष के चरणों के निकट गया और भगवान शेष को प्रणाम करके परिक्रमापूर्वक हाथ जोड़ विशाल पृष्ठ वाला कालिय दीन, भयातुर और कम्पित होकर बोला—

“भूमिभर्ता भुवनेश्वर! भूमन! भूमि-भारहारी प्रभो! आपकी लीलाएँ अपार हैं, आप सर्वसमर्थ पूर्ण परात्पर पुराण पुरुष हैं; मेरी रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये।”

शेषजी का उपदेश

शेष बोले—
“महामते कालिय! मेरी उत्तम बात सुनो, इसमें संदेह नहीं कि संसार में कहीं भी तुम्हारी रक्षा नहीं होगी।
रक्षा का एक ही उपाय है, उसे बताता हूँ—”

पूर्वकाल में सौभरि नाम से प्रसिद्ध एक सिद्ध मुनि थे। उन्होंने वृन्दावन में यमुना के जल में रहकर दस हजार वर्षों तक तपस्या की। उस जल में मीनराज का विहार देखकर उनके मन में भी घर बसाने की इच्छा हुई।

एक दिन क्षुधातुर गरुड़ ने तपस्वी सौभरि के मना करने पर भी अपने अभीष्ट मत्स्य को बलपूर्वक पकड़कर खा डाला था। इसीलिए महर्षि सौभरि ने गरुड़ को शाप दिया था कि—
“यदि गरुड़ फिर कभी इस कुण्ड में घुसकर मछलियों को खायेंगे तो उसी क्षण प्राणों से हाथ धो बैठेंगे।”

कालिय नाग यह बात जानता था, इसलिए वह यमुना के उक्त कुण्ड में रहने आ गया था। कालिया नाग यमुना में सुरक्षित था।

कृष्ण जी के गेंद यमुना में गिरती है, तब वे उसका वध करते हैं।


रहस्य

  • पुराणों में नाग कामनाओं का प्रतीक हैं। कामनाओं में विष होता है, कामना मन में रहती है।
  • कालिया सौ फन वाला था — अर्थात् मन में सौ तरह की इच्छाएँ उत्पन्न होती रहती हैं।
  • यह मन आ = यमुना, मन में कामना।
  • कामना में विष (कामनाएँ विषयों की होती हैं, विषयों को विष भी कहा जाता है आध्यात्म में)।

मन कहता रहता है— यह ले आ, वह ले आ, क्या ले आ।
सौ फन = सौ तरह की इच्छाएँ।

कालिया नाग = मन में इच्छाओं के उठने का प्रतीक, जिससे बालक कृष्ण (अर्थात ईश्वरीय ज्ञान) ने युद्ध किया।
ज्ञान ने कहा— सभी इच्छाओं को मारना ठीक नहीं। इच्छाएँ मिटा दो तो जीवन ही नष्ट होने लगता है।

अतः नाग को छोड़ दिया, उसके फनों पर अपने पदचिह्न लगा दिये और कहा—
“वापस जा। मेरे पदचिह्न देखकर गरुड़ नहीं खायेगा तुझे।”

गरुड़ कृष्ण भक्त हैं, भक्ति कामनाओं को खाती है।
कालिया नाग दमन = इच्छाओं का दमन।

अंत में नाग को जीवित छोड़ा और उस पर अपने पग छोड़े = कृष्ण भक्ति की इच्छा छोड़ी।

कदम्ब वृक्ष का रहस्य

इच्छाओं ने मन को विषैला कर रखा था। कदम्ब का वृक्ष विष शामक होता है।
अतः कथा में कदम्ब वृक्ष भी जोड़ा गया।

यमुना में कूदने से पहले कृष्ण कदम्ब पर चढ़े थे। क्यों?
सीधे भी घुस सकते थे, पर कदम्ब के गुण से परिचित करवाना था।
अर्थात ज्ञान (कृष्ण) इच्छाओं का दमन करते हैं, उनसे लड़कर जीत जाते हैं और मन को भक्ति में लगा देते हैं।


आत्मचिन्तन

  • जब तक अज्ञान है, मानव इच्छाओं के पीछे भागता रहता है।
  • ज्ञान आता है तो मन भगवान में ही लगाता है।
  • कालिया नाग का फन मर्यादित था, किन्तु हमारे तो हजारों हैं।
  • हमारे संकल्प-विकल्प ही फन हैं।

🙏 भगवान से प्रार्थना करें—
“हे प्रभु! मेरे मन के कालिया नाग का दमन करो, उस पर अपने चरण पधराओ।”


आध्यात्मिक अर्थ

  • कालिया नाग = इन्द्रियाध्यास।
  • यमुना = भक्ति।
  • भक्ति में इन्द्रियाध्यास आने पर शुद्ध भक्ति नहीं हो सकती।
  • “भोग और भक्ति आपस में शत्रु हैं।”

भक्ति के बहाने इन्द्रियों को भोग की तरफ ले जाने वाला मन ही कालिया नाग है।
इन्द्रियों और मन से विषयों का त्याग करने से भक्ति सिद्ध होती है।

भक्ति में विलासिता = विषधर।
वह घुस गया तो भक्ति नष्ट हो जाती है।

भक्तिमार्ग पर चलकर इन्द्रिय पुष्प को प्रभु के चरणों में अर्पित करना है।
भोग से इन्द्रियों का क्षय होता है, भक्ति से पोषण।

जो आनन्द योगी समाधि में पाते हैं, वही आनन्द वैष्णव कृष्ण कीर्तन में पाते हैं।
कीर्तन करते समय दृष्टि प्रभु के चरणों में रहे, वाणी कीर्तन करे, मन स्मरण करे, आँखें दर्शन करें— तभी जप सफल होगा।

कालिया नाग को प्रभु ने रमणक द्वीप भेजा।
अर्थात विषरहित इन्द्रियों को सत्संग में रमण कराना है, जहाँ उन्हें भक्ति रस प्राप्त होगा।

"कालिया नाग और Garuda की यह अद्भुत कथा श्री Krishna Leela का हिस्सा है। इस कहानी में Garuda और Kaliya Naag के संघर्ष, Shri Krishna द्वारा कालिया दमन और इसके पीछे छिपे आध्यात्मिक अर्थ को विस्तार से समझाया गया है। जानिए कैसे कालिया नाग इच्छाओं का प्रतीक है और कृष्ण भक्ति से मन की कामनाओं का दमन संभव है। यह कथा न सिर्फ पौराणिक महत्व रखती है बल्कि जीवन प्रबंधन और भक्ति मार्ग की गहरी शिक्षा भी देती है।"

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