संस्कृत श्लोक "यः सततं परिपृच्छति शृणोति संधारयत्यनिशम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक "यः सततं परिपृच्छति शृणोति संधारयत्यनिशम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

🌸🙏 जय श्रीराम 🙏🌸
सुप्रभातम्! प्रस्तुत सुंदर श्लोक ज्ञानार्जन की त्रिविध प्रक्रिया (प्रश्न–श्रवण–मनन) का दार्शनिक सूत्र है। आइए इसे क्रमबद्ध रूप से विस्तार से समझते हैं—


1. श्लोक (देवनागरी + English Transliteration)

श्लोक:
यः सततं परिपृच्छति शृणोति संधारयत्यनिशम् ।
तस्य दिवाकरकिरणैर्नलिनीव विवर्धते बुद्धिः ॥

Transliteration (IAST):
Yaḥ satataṁ paripṛcchati śṛṇoti saṁdhārayaty aniśam ।
Tasya divākarakiraṇair nalinīva vivardhate buddhiḥ ॥


2. हिन्दी अनुवाद

"जो व्यक्ति निरंतर प्रश्न करता है, सुनता है और धारण करता है, उसकी बुद्धि सूर्य की किरणों से पुष्पित कमल की भाँति विकसित होती है।"

संस्कृत श्लोक "यः सततं परिपृच्छति शृणोति संधारयत्यनिशम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
संस्कृत श्लोक "यः सततं परिपृच्छति शृणोति संधारयत्यनिशम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण



3. व्याकरणात्मक विश्लेषण

  • यः – सम्बन्धवाचक सर्वनाम, "जो"।
  • सततम् – क्रियाविशेषण, "सदैव, निरंतर"।
  • परिपृच्छति – धातु पृच्छ् (पूछना), लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन; अर्थ – "बार-बार पूछता है"।
  • शृणोति – धातु श्रु (सुनना), लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन; अर्थ – "सुनता है"।
  • संधारयति – धातु धृ (धारण करना), causative रूप; अर्थ – "धारण करता है, स्मरण रखता है"।
  • अनिशम् – अव्यय; "दिन-रात, सदा"।
  • तस्य बुद्धिः विवर्धते – "उसकी बुद्धि बढ़ती है"।
  • दिवाकरकिरणैः – तृतीया विभक्ति, करण कारक; "सूर्य की किरणों से"।
  • नलिनीव – उपमा अलंकार; "कमल के समान"।

👉 इस प्रकार वाक्य का मूल भाव यह है कि प्रश्न, श्रवण और स्मरण–मनन करने वाला व्यक्ति ज्ञान के मार्ग पर निरंतर विकसित होता है।


4. आधुनिक सन्दर्भ

यह श्लोक आज के शिक्षण–अधिगम (Teaching–Learning Process) और व्यक्तिगत विकास (Personal Growth) दोनों के लिए अत्यंत प्रासंगिक है।

  • Inquiry-based learning – आज की शिक्षा पद्धति में प्रश्न पूछना सबसे महत्वपूर्ण माना गया है।
  • Active listening – जब विद्यार्थी गुरु, शिक्षक या पुस्तक से ध्यानपूर्वक सुनता है, तभी वास्तविक सीख संभव है।
  • Retention & Reflection – केवल सुनना पर्याप्त नहीं, बल्कि उसे धारण करना और जीवन में उतारना आवश्यक है।
  • जैसे सूरज की किरणें कमल को खिलाती हैं, वैसे ही सही प्रश्न, उचित श्रवण और धारण करने की क्षमता से बुद्धि का विकास होता है।

5. संवादात्मक नीति कथा

👩‍🎓 विद्यार्थी – "गुरुदेव! मैं बहुत पुस्तकों को पढ़ता हूँ, परंतु मेरा ज्ञान गहराई नहीं पकड़ता।"

👨‍🏫 गुरु – "वत्स! क्या तुम केवल पढ़ते हो या प्रश्न भी करते हो?"

👩‍🎓 विद्यार्थी – "अक्सर चुप रहता हूँ, प्रश्न करने में संकोच करता हूँ।"

👨‍🏫 गुरु – "यही कारण है।
ज्ञान की वृद्धि तभी होती है जब—

  1. तुम निरंतर प्रश्न करो,
  2. उत्तर ध्यान से सुनो,
  3. और सुने हुए को मन में धारण कर जीवन में उतारो।

जिस प्रकार सूर्य की किरणों से कमल खिलता है, वैसे ही इन तीन गुणों से तुम्हारी बुद्धि पुष्पित होगी।"

👩‍🎓 विद्यार्थी – "गुरुदेव! अब समझ गया कि जिज्ञासा और मनन ही ज्ञान का द्वार खोलते हैं।"


6. निष्कर्ष

यह श्लोक हमें यह शिक्षा देता है कि—

  • जिज्ञासा (Questioning) → सीखने की पहली सीढ़ी है।
  • श्रवण (Listening) → ज्ञान को आत्मसात करने की प्रक्रिया है।
  • स्मरण–मनन (Retention & Reflection) → ज्ञान को जीवन का हिस्सा बना देती है।

👉 यही वह मार्ग है जिससे व्यक्ति की बुद्धि विकसित होती है और वह सच्चा ज्ञानी बनता है।

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