Kya striyan bhi kar sakti hain Pinddan? पुत्र न होने पर कौन करेगा श्राद्ध और पिण्डदान ?

Sooraj Krishna Shastri
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Kya striyan bhi kar sakti hain Pinddan? पुत्र न होने पर कौन करेगा श्राद्ध और पिण्डदान ? 

गरुड़पुराण के अनुसार पुत्राभाव में श्राद्ध और प्रेतकर्म कौन करता है? जानिए पत्नी, सहोदर भाई, शिष्य या सपिण्ड के द्वारा किए जाने वाले दशगात्र, सपिण्डन और श्राद्ध कर्म की संपूर्ण व्यवस्था। यहाँ विस्तार से पढ़ें Garud Puran Shraddh Vidhi in Hindi.


👉 श्राद्धपक्ष में पिंडदान का महत्त्व

(वैदिक परंपरा, पौराणिक मान्यता और गरुड़पुराण के शास्त्रीय प्रमाण सहित)


1. पितृपक्ष और पिंडदान का महत्व

वैदिक परंपरा और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध और पिंडदान करना एक महान कार्य है।

  • पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है जब वह माता-पिता की जीवित अवस्था में सेवा करे और मृत्यु के बाद श्राद्ध व पिंडदान से उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।

  • आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक के 16 दिन पितृपक्ष कहलाते हैं।

  • पिंडदान को मोक्ष प्राप्ति का सरल मार्ग माना गया है।

भगवान श्रीराम और माता सीता ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया धाम में पिंडदान किया था।


2. गया धाम का महत्व और गयासुर कथा

  • गया (बिहार) को मोक्षस्थली और पितृतीर्थ कहा गया है।

  • विष्णुपुराण और वायुपुराण में वर्णन है कि यहाँ पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है।

  • गरुड़पुराण कहता है कि गया की यात्रा के प्रत्येक कदम से पितरों के स्वर्गारोहण की एक-एक सीढ़ी बनती है।

गयासुर की कथा

  • गयासुर नामक असुर ने वरदान पाया था कि उसके दर्शन से प्राणी पापमुक्त हो जाए।

  • देवताओं ने यज्ञ हेतु उसका शरीर माँगा, और गयासुर ने सहर्ष दे दिया।

  • उसका शरीर पाँच कोस तक फैला और वही आगे चलकर गया क्षेत्र बना।

  • उसने वरदान माँगा कि यहाँ जो भी पिंडदान करेगा, उसके पितर मोक्ष प्राप्त करेंगे।
    👉 इसी कारण आज भी गया पिंडदान के लिए सबसे पवित्र स्थल माना जाता है।

Kya striyan bhi kar sakti hain Pinddan? पुत्र न होने पर कौन करेगा श्राद्ध और पिण्डदान ?
Kya striyan bhi kar sakti hain Pinddan? पुत्र न होने पर कौन करेगा श्राद्ध और पिण्डदान ? 



3. क्या केवल पुत्र ही कर सकता है श्राद्ध?

अक्सर माना जाता है कि केवल पुत्र ही श्राद्ध कर सकता है, परंतु वाल्मीकि रामायण और गरुड़पुराण दोनों प्रमाणित करते हैं कि पुत्री, पत्नी, पुत्रवधू और अन्य लोग भी श्राद्ध कर सकते हैं।

(क) वाल्मीकि रामायण का प्रमाण

वनवास काल में श्रीराम गया में पिंडदान हेतु सामग्री लाने नगर गए थे। समय निकलने पर माता सीता ने स्वयं बालू का पिंड बनाकर फाल्गु नदी के किनारे पिंडदान किया और राजा दशरथ की आत्मा प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद देकर चली गई।
👉 इससे सिद्ध है कि स्त्री भी पिंडदान कर सकती है।

(ख) गरुड़पुराण का प्रमाण (अध्याय 11)

श्लोक 13

पुत्राभावे वधूः कुर्याद्भार्याभावे च सोदरः ।
ज्येष्ठस्य वा कनिष्ठस्य भ्रातुः पुत्रैश्च पौत्रकैः ॥ १३ ॥

👉 पुत्र न होने पर पुत्रवधू, पत्नी न होने पर सहोदर भाई, और उनके अभाव में भाई के पुत्र या पौत्र श्राद्ध करें।


श्लोक 14

शिष्यो वा ब्राह्मणस्यैव सपिण्डो वा समाचरेत् ।
दशगात्रादिकं कार्यं पुत्रहीने नरे खग ॥ १४ ॥

👉 यदि उपर्युक्त सब न हों तो ब्राह्मण का शिष्य या सगोत्रीय रिश्तेदार श्राद्ध करे।


श्लोक 15

भ्रातृणामेकजातानामेकश्चेत् पुत्रवान् भवेत् ।
सर्वे ते तेन पुत्रेण पुत्रिणो मनुरब्रवीत् ॥ १५ ॥

👉 यदि कई भाई हों और उनमें से एक के पास पुत्र हो तो मनु के अनुसार सभी पुत्रवान माने जाते हैं।


श्लोक 16

पत्यश्च बह्व्यः एकस्य चैका पुत्रवती भवेत् ।
सर्वास्ताः पुत्रवत्यः स्युस्तेनैकेन सुतेन हि ॥ १६ ॥

👉 यदि एक पुरुष की कई पत्नियाँ हों और उनमें से केवल एक पुत्रवती हो, तो सभी पत्नियाँ पुत्रवती मानी जाती हैं।


श्लोक 17

सर्वेषां पुत्रहीनानां मित्रं पिण्डं प्रदापयेत् ।
क्रियालोपो न कर्तव्यः सर्वाभावे पुरोहितः ॥ १७ ॥

👉 यदि सबके पुत्र न हों तो मित्र पिंडदान करे। मित्र भी न हो तो पुरोहित श्राद्ध करे।
क्रिया का लोप किसी भी दशा में न हो।


श्लोक 18

स्त्री वाऽथ पुरुषः कश्चिदिष्टस्य कुरुते क्रियाम् ।
अनाथप्रेतसंस्कारात् कोटियज्ञफलं लभेत् ॥ १८ ॥

👉 यदि कोई स्त्री अथवा पुरुष किसी प्रियजन की और्ध्वदैहिक क्रिया करे, तो उसे अनाथ प्रेत का संस्कार करने से करोड़ों यज्ञों के समान फल मिलता है।


श्लोक 19

पितुः पुत्रेण कर्तव्यं दशगात्रादिकं खग।
मृते ज्येष्ठेऽप्यतिस्नेहान्न कुर्वीत पिता सुते ॥ १९ ॥

👉 पिता की दशगात्र क्रिया पुत्र को करनी चाहिए। यदि ज्येष्ठ पुत्र मर जाए तो पिता स्वयं उसकी क्रिया न करे।


श्लोक 20–21

बहवोऽपि यदा पुत्रा विधिमेकः समाचरेत् ।
दशगात्रं सपिण्डत्वं श्राद्धान्यन्यानि षोडश ॥ २० ॥

एकेनैव तु कार्याणि संविभक्तधनेष्वपि ।
विभक्तैस्तु पृथक्कार्यं श्राद्धं सांवत्सरादिकम् ॥ २१ ॥

👉 यदि अनेक पुत्र हों तो भी दशगात्र, सपिण्डन और षोडश श्राद्ध एक ही पुत्र करे।
सम्पत्ति का विभाजन हो जाने पर भी ये संस्कार एक ही करें, किंतु वार्षिक श्राद्ध सभी पुत्र अलग-अलग कर सकते हैं।


4. श्राद्धकर्म से होने वाले लाभ

  1. पितरों की आत्मा तृप्त और संतुष्ट होती है।

  2. वंशजों को आयु, आरोग्य और संतति की प्राप्ति होती है।

  3. पितृदोष का निवारण होता है।

  4. परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

  5. यह कृतज्ञता और वंश परंपरा को बनाए रखने का माध्यम है।


✨ निष्कर्ष

पिंडदान और श्राद्ध केवल धार्मिक कर्मकाण्ड नहीं है, बल्कि यह पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता का महापर्व है।
शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि इसे केवल पुत्र ही नहीं, बल्कि पुत्री, पत्नी, पुत्रवधू, शिष्य, सपिण्ड, मित्र, यहाँ तक कि कोई स्त्री भी कर सकती है।
श्राद्धकर्म का लोप कभी नहीं करना चाहिए।

🕉🙏
“श्रद्धया यः कुरुते श्राद्धं तस्य कुलं सुखमेधते”
— श्रद्धा से किया गया श्राद्ध ही सफल होता है और वंश को सुख प्रदान करता है।


🔹 FAQ / QnA on Shraddh and Pinddan

Q1. Kya striyan bhi kar sakti hain Pinddan?
👉 शास्त्रों के अनुसार सामान्यतः पिण्डदान का कार्य पुत्र या पुरुष वंशज करते हैं। परन्तु गरुड़पुराण में स्पष्ट है कि यदि पुत्र न हो तो पत्नी, भाई, शिष्य या सपिण्ड भी यह कार्य कर सकते हैं। विशेष परिस्थिति में स्त्रियाँ भी पिण्डदान कर सकती हैं।

Q2. Putr na hone par Shraddh kaun karega?
👉 यदि पुत्र न हो तो पहले पत्नी, फिर सहोदर भाई, उसके अभाव में भाई के पुत्र/पौत्र, शिष्य या कोई सपिण्ड श्राद्ध व पिण्डदान कर सकते हैं। अन्तिम स्थिति में पुरोहित को यह कार्य करना चाहिए।

Q3. Kya bhai ya shishya kar sakte hain Pinddan?
👉 हाँ, गरुड़पुराण में कहा गया है कि पुत्राभाव में भाई, भतीजा या शिष्य पिण्डदान कर सकते हैं। यह कर्तव्य किसी न किसी रूप में अवश्य सम्पन्न होना चाहिए।

Q4. Wife ya Sapind kar sakte hain Shraddh?
👉 यदि पुत्र न हो तो पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है। उसके बाद क्रमशः सहोदर भाई, भतीजा, पौत्र, शिष्य और सपिण्ड यह कार्य करते हैं।

Q5. Dashagatra aur Shodash Shraddh kaun kare?
👉 पिता की मृत्यु पर दशगात्र, सपिण्डन और षोडश श्राद्ध का कार्य मुख्य रूप से एक ही पुत्र करता है। यदि सम्पत्ति विभाजित हो तो भी दशगात्र और षोडश श्राद्ध एक ही पुत्र करे, जबकि वार्षिक श्राद्ध (सांवत्सरिक) सभी पुत्र अलग-अलग कर सकते हैं।

Q6. Agar koi mitra Shraddh kare to kya fal milta hai?
👉 यदि किसी का पुत्र, पत्नी या भाई न हो और मित्र श्राद्ध करे तो वह पुण्य कोटि यज्ञों के बराबर होता है। गरुड़पुराण में इसे अनाथ-प्रेत संस्कार कहा गया है।



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