📜 गर्भाधान संस्कार (Garbhdhan Sanskar) : महत्व, विधि, लाभ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
१. Garbhadhana Sanskar Kya Hai? | गर्भाधान संस्कार क्या है?
२. शब्दार्थ एवं व्युत्पत्ति
- गर्भ = गर्भस्थ शिशु
- आधान = धारण करना, स्थापित करना🔹 गर्भाधान = गर्भ धारण कराना अथवा गर्भस्थ शिशु की स्थापना करना।
३. Garbh Sanskar in Hinduism | हिन्दू धर्म में गर्भाधान संस्कार का महत्व
- ऋषियों ने कहा है कि संतान उत्पत्ति केवल दैहिक सुख या वंशवृद्धि का साधन नहीं, बल्कि यह धर्म, संस्कृति और ऋषियों की परंपरा को आगे बढ़ाने का माध्यम है।
- मनुस्मृति (२/२७) में कहा गया है—“गर्भाधानादिसंस्कारैः जन्मना दूषितं भवेत्।”👉 अर्थात्, मनुष्य का जन्म पवित्र नहीं होता; संस्कारों से ही शुद्धि और पवित्रता प्राप्त होती है।
४. गर्भाधान संस्कार का समय|Best Time for Garbhadhaan Sanskar
गर्भाधान संस्कार ऋतुकाल में किया जाता है।
- ऋतु = स्त्री का मासिक धर्म समाप्त होने के बाद का शुद्ध समय।
- मनु ने कहा है : स्त्री में १६ दिन ऋतुकाल माने जाते हैं। पहले चार दिन निषिद्ध, पाँचवें से सोलहवें दिन तक शुद्ध।
- इस समय पति-पत्नी दोनों शुद्ध होकर, यज्ञीय वातावरण में, देव-आह्वान कर संतानोत्पत्ति का संकल्प करते हैं।
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गर्भाधान संस्कार (Garbhdhan Sanskar) : महत्व, विधि, लाभ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण |
५. Garbhadhana Sanskar Vidhi | गर्भाधान संस्कार की विधि
-
ऋतु-स्नान : स्त्री मासिक धर्म के बाद स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करती है।
-
देव-पूजन : दोनों मिलकर इष्टदेव, कुलदेवता, अग्नि आदि का पूजन करते हैं।
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मंत्रोच्चारण : वेद-मंत्रों के साथ संतानोत्पत्ति की प्रार्थना की जाती है।
ऋग्वेद मन्त्र (१०/१८४/१):“सं गर्भं धा अर्यमा पूषा सं गर्भं धत्तु भगः।सं गर्भं त्वष्टा धारयतु सं गर्भं धत्तु धारुणिः॥”👉 अर्थ : हे अर्यमा, पूषा, भग, त्वष्टा और धरुणि देवता! आप सब मिलकर उत्तम गर्भ धारण कराएँ। -
संतान के गुणों की प्रार्थना :
- “हमारा गर्भ तेजस्वी हो, धर्मप्रिय हो, विद्वान हो।”
- संतान में बल, बुद्धि, आयु, तेज और सात्त्विकता का संकल्प लिया जाता है।
६. Garbh Sanskar Rules | गर्भाधान संस्कार के नियम
- पति-पत्नी दोनों को इस समय सात्त्विक आहार (दूध, घी, फल, अनाज) का सेवन करना चाहिए।
- मन शुद्ध, विचार सात्त्विक, वातावरण शांत और मंगलकारी होना चाहिए।
- संतानोत्पत्ति के समय कोई वासना-प्रधान भाव नहीं, बल्कि धार्मिक संकल्प और उच्च आदर्श होना चाहिए।
- माता-पिता की मानसिक और शारीरिक स्थिति का प्रभाव सीधे शिशु पर पड़ता है।
७. वैदिक दृष्टि
- अथर्ववेद (६/११/३) में कहा गया है—“गर्भं धेहि सिनीवाली।”👉 अर्थात्, हे देवी! गर्भ धारण कराने में सहायक बनो।
- वैदिक परंपरा में देवताओं से प्रार्थना की जाती है कि संतान तेजस्वी, धर्मनिष्ठ और समाजोपयोगी बने।
८. Garbh Sanskar Scientific View | गर्भाधान संस्कार का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
- आधुनिक विज्ञान भी यह मानता है कि गर्भधारण के समय माता-पिता का आहार, विचार और वातावरण शिशु पर गहरा प्रभाव डालते हैं।
- एपिजेनेटिक्स (Epigenetics) विज्ञान कहता है कि माता-पिता का जीवन-शैली और मानसिक अवस्था गर्भस्थ शिशु के जीन (Genes) की सक्रियता को प्रभावित करती है।
- गर्भधारण के समय ध्यान, प्रार्थना, योग, सकारात्मक विचार रखने से शिशु के मानसिक विकास में श्रेष्ठ गुण आते हैं।
९. विशेष उद्देश्य
गर्भाधान संस्कार के तीन मुख्य उद्देश्य बताए गए हैं—
- वंशवृद्धि – कुल और संस्कृति का संरक्षण।
- सात्त्विक संतति – धर्मनिष्ठ, बलवान और विद्वान संतान का जन्म।
- सामाजिक-धार्मिक उत्तरदायित्व – समाज में श्रेष्ठ नागरिक का निर्माण।
📜 Garbhadhana Sanskar Vidhi | गर्भाधान संस्कार की संपूर्ण विधि
१. संस्कार-पूर्व तैयारी
- समय : स्त्री के मासिक धर्म के पश्चात् पाँचवे से सोलहवें दिन तक का समय उचित है (पहले चार दिन वर्जित)।
- स्थान : स्वच्छ, पवित्र, शांत वातावरण वाला स्थान।
- सामग्री : हवनकुंड, समिधा, घी, हवन सामग्री, पुष्प, अक्षत, दीप, धूप, जल, कलश, आचमन पात्र, मधु, दुग्ध आदि।
- व्रत : पति-पत्नी को इस दिन उपवास अथवा सात्त्विक आहार लेना चाहिए।
२. आचार्य का आह्वान
संस्कार विद्वान ब्राह्मण आचार्य के निर्देशन में सम्पन्न करना चाहिए।
३. संस्कार की विधि
(१) आचमन एवं शुद्धि
पति-पत्नी दोनों स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण करें।
- आचमन मंत्र :
“ॐ केशवाय स्वाहा । ॐ नारायणाय स्वाहा । ॐ माधवाय स्वाहा ।”
(२) संकल्प
आचार्य संकल्प कराएँ :
“अस्मिन् शुभे तिथौ, अमुक गोत्रस्य, अमुक नाम्नः (पति का नाम), अमुक नाम्न्या (पत्नी का नाम) सह गर्भाधान संस्कारं करिष्ये।”
👉 संतान की प्राप्ति धर्मरक्षा, वंशवृद्धि और लोककल्याणार्थ होने का संकल्प लें।
(३) गणेश वंदना
“ॐ गणेशाय नमः” मंत्र से गणेश जी का पूजन करें।
(४) कलश स्थापना और देव पूजन
- कलश में जल भरकर आम्रपल्लव और नारियल स्थापित करें।
- वरुण, इन्द्र, अग्नि, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सूर्य, चंद्रमा, कुलदेवता एवं पितरों का पूजन करें।
(५) हवन (अग्निस्थापन)
- अग्नि प्रज्वलित करें।
- आचार्य “ॐ अग्नये स्वाहा” मंत्र से आहुति दिलाएँ।
- पति-पत्नी साथ मिलकर अग्नि में आहुति दें।
(६) विशेष मंत्रोच्चारण
संतानोत्पत्ति हेतु प्रार्थना की जाती है :
ऋग्वेद मंत्र (१०/१८४/१):
“सं गर्भं धा अर्यमा पूषा सं गर्भं धत्तु भगः।सं गर्भं त्वष्टा धारयतु सं गर्भं धत्तु धारुणिः॥”
👉 अर्थ : हे अर्यमा, पूषा, भग, त्वष्टा और धरुणि देवता! आप सब मिलकर गर्भ धारण कराएँ।
अथर्ववेद (६/११/३):
“गर्भं धेहि सिनीवाली।”👉 अर्थ : हे सिनीवाली देवी! स्त्री के गर्भ को धारण कराओ।
(७) प्रजोत्पत्ति प्रार्थना
पति पत्नी का हाथ पकड़कर यह मंत्र उच्चारण करें :
“भगः प्रजां जनयतु, द्यौः पितुः प्रजां जनयतु, पृथिवी मातुः प्रजां जनयतु, सोमः प्रजां जनयतु।”
👉 अर्थ : भग देवता, आकाश, पृथ्वी और सोम देव, सब मिलकर उत्तम संतान उत्पन्न करें।
(८) धूप-दीप और पुष्पांजलि
- हवन के बाद देवताओं को धूप-दीप अर्पित करें।
- पति-पत्नी मिलकर संतानोत्पत्ति का संकल्प पुष्प अर्पण करते हुए करें।
(९) आशीर्वाद
आचार्य अंत में आशीर्वचन बोलते हैं :
“तव गर्भः स्थिरोऽस्तु, पुत्रवान् भव।”👉 अर्थात् – तुम्हारा गर्भ स्थिर हो और तुम पुत्रवत (अर्थात् संतानवती) हो।
४. संस्कारोत्तर नियम
- पति-पत्नी को सात्त्विक आहार और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- संतानोत्पत्ति के समय केवल धर्म, वंश और समाज-कल्याण का संकल्प रखें।
- स्त्री को गर्भधारण के बाद विशेष देखभाल और सात्त्विक जीवन जीना चाहिए।
५. वैज्ञानिक दृष्टि से व्याख्या
- आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि गर्भाधान का समय, वातावरण, आहार और मानसिक अवस्था शिशु पर गहरा प्रभाव डालते हैं।
- प्राचीन ऋषियों ने जो नियम बताए (सात्त्विक भोजन, शांत वातावरण, प्रार्थना, यज्ञ) – वे सब आज Epigenetics और Prenatal Psychology में वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो रहे हैं।
📜 Garbh Sanskar Shubh Muhurat | गर्भाधान संस्कार का शुभ मुहूर्त
१. सर्वश्रेष्ठ समय – ऋतुकाल
- स्त्री के मासिक धर्म के पश्चात् ५वें दिन से १६वें दिन तक का समय उपयुक्त माना गया है।
- पहले ४ दिन वर्जित हैं।
- ५वें से १६वें दिन तक शुक्र-संयोग के लिए योग्य है।
👉 मनुस्मृति (३/४६) :
“ऋतौ भार्यां समापन्नः पुत्रान् प्राप्नोति धर्मतः।”👉 अर्थ : ऋतुकाल में ही संतान उत्पन्न करने वाला पुरुष धर्मपूर्वक उत्तम पुत्र प्राप्त करता है।
२. सप्ताह के दिन (वार) चयन
- शुभ वार : सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार
- वर्जित वार : रविवार, मंगलवार, शनिवार
३. तिथि
- शुभ तिथियाँ : द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी।
- वर्जित तिथियाँ : अमावस्या, पूर्णिमा, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी।
४. नक्षत्र
गर्भाधान के लिए शुभ नक्षत्र ये बताए गए हैं :
- शुभ नक्षत्र : रोहिणी, मृगशीर्षा, पुनर्वसु, उत्तरफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, हस्त, स्वाती, अनूराधा, श्रवण, धनिष्ठा, चित्रा।
- वर्जित नक्षत्र : मूल, अश्लेषा, ज्येष्ठा, मघा, भरणी।
५. लग्न और ग्रह स्थिति
- शुभ लग्न : वृषभ, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, धनु।
- वर्जित लग्न : वृष्चिक और मकर (विशेषकर रात्रि समय)।
- गर्भाधान के समय चंद्रमा शुभ नक्षत्र और शुभ भाव में होना चाहिए।
- सूर्यास्त के बाद रात्रि का प्रथम प्रहर (लगभग ८–१० बजे) सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
६. ऋतु-काल
- हेमन्त और वसन्त ऋतु (नवंबर–दिसंबर एवं मार्च–अप्रैल) संतानोत्पत्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ कही गई है।
- ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में गर्भाधान से शारीरिक दुर्बलता और रोग की संभावना बढ़ती है।
७. शुद्धि और वर्जनाएँ
- ऋतुकाल में भी अमावस्या, संक्रान्ति, ग्रहण काल, अशुभ योग (गण्डान्त, भद्रा) आदि में गर्भाधान वर्जित है।
- पति-पत्नी को इस समय मद्य, मांस, क्रोध, चिंता, अशुद्धि से दूर रहना चाहिए।
✅ संक्षेप में
गर्भाधान का श्रेष्ठ मुहूर्त
- मासिक धर्म के ५वें से १६वें दिन तक
- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार
- द्वितीया, तृतीया, पंचमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी
- शुभ नक्षत्र : रोहिणी, मृगशीर्षा, उत्तरफाल्गुनी आदि
- रात्रि का प्रथम प्रहर (८–१० बजे)
- हेमन्त और वसन्त ऋतु
निष्कर्ष
- उत्तम, सात्त्विक, तेजस्वी और धर्मनिष्ठ संतान उत्पन्न करना।
- संतान को समाजोपयोगी और राष्ट्रोपयोगी बनाना।
- वंश और संस्कृति की रक्षा करना।