भगवान ही हमारे हैं – God is Always With Us | Bhakti Pravachan
“जानिए कैसे गीता, रामचरितमानस और कवितावली के सन्दर्भ हमें यह बताते हैं कि भगवान ही हमारे नित्य सम्बन्धी हैं। संसार अस्थायी है पर भगवान शाश्वत हैं। इस भावपूर्ण प्रवचन में माँ-बच्चे का उदाहरण, माता पार्वती का दृढ़ निश्चय और भक्त प्रह्लाद की कथा के माध्यम से यह समझाया गया है कि केवल भगवान के लिए व्याकुल होने पर वे तुरन्त प्रकट हो जाते हैं। भगवान ही हमारे हैं और यही शाश्वत सत्य है।”
भगवान् का सर्वव्यापक स्वरूप
भगवान् कहते हैं – “सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टः” (गीता १५।१५) अर्थात् “मैं सम्पूर्ण प्राणियों के हृदय में स्थित हूँ।” और पुनः “मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना” (गीता ९।४) – “यह सम्पूर्ण जगत् मेरे निराकार स्वरूप से व्याप्त है।”
अतः भगवान् केवल हमारे हृदय में ही नहीं, बल्कि दृश्य और अदृश्य सम्पूर्ण संसार में, कण-कण में विद्यमान हैं। किन्तु उनका दर्शन तभी होगा जब हम सच्चे हृदय से उन्हें देखना चाहेंगे। यदि हमारी दृष्टि संसार की ओर रहेगी तो संसार ही दिखेगा; भगवान् बीच में नहीं आएँगे।
भगवान् से सम्बन्ध की आवश्यकता
हमारा उद्देश्य संसार से नहीं, केवल भगवान् से होना चाहिए। न हमें संसार में राग करना है, न द्वेष। हमें तो केवल भगवान् से घनिष्ठता करनी है। भगवान् हमारी सुनें या न सुनें, मानें या न मानें, हमें अपना लें या ठुकरा दें – इसकी कोई परवाह किए बिना हमें भगवान् से अपना नित्य और अटूट सम्बन्ध जोड़ लेना चाहिए।
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माता पार्वती का दृढ़ भाव इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। उन्होंने स्पष्ट कहा –
पार्वतीजी का भाव था कि शिवजी में ऐसी शक्ति ही नहीं कि वे उन्हें अस्वीकार कर दें। इसी प्रकार भगवान् के साथ हमारा सम्बन्ध शाश्वत और अभेद्य है। हम उनसे विमुख हो सकते हैं, पर भगवान् हमसे कभी विमुख नहीं होते। हमारा त्याग करना उनके वश में ही नहीं है।
माँ और बच्चे का उदाहरण
जैसे बच्चा खेलना छोड़कर रोने लगे तो माँ अपना सब काम छोड़कर दौड़ी आती है और उसे गोद में ले लेती है। पर यदि बच्चा खिलौनों में ही मग्न है तो माँ निश्चिन्त रहती है। यही स्थिति भगवान् के साथ है। यदि हम सांसारिक वस्तुओं में प्रसन्न रहते हैं तो वे निश्चिन्त रहते हैं। पर यदि हम केवल उनके लिए व्याकुल हो जाएँ, खिलौनों से प्रसन्न न हों, तो भगवान् तुरन्त आते हैं।
यहाँ तक कि जैसे घर के सभी लोग रोते हुए बच्चे के पक्ष में हो जाते हैं और माँ से कहते हैं – “बच्चा रो रहा है और तुम काम में लगी हो, जल्दी उसे गोद में लो!” – उसी प्रकार यदि हम भगवान् के लिए वास्तविक तड़प से रोने लगें तो भगवद्धाम के संत-महात्मा हमारे पक्ष में खड़े हो जाते हैं और भगवान् को शीघ्र आने के लिए प्रेरित करते हैं।
किन्तु यदि बच्चा खिलौनों से भी खेल रहा हो और ऊपर से ऊँ... ऊँ... कर रोने का ढोंग भी कर रहा हो, तो माँ उसे नहीं उठाती। इसी प्रकार यदि हम भीतर से संसार में रमे रहें और ऊपर से भगवान् को पुकारने का अभिनय करें, तो वे नहीं आते। भगवान् हमारे आन्तरिक भाव देखते हैं, क्रिया-कलाप नहीं।
सांसारिक खिलौने और भगवत्सम्पत्ति
मान-आदर, सुख-आराम, धन-सम्पत्ति, सिद्धियाँ – ये सब सांसारिक खिलौने हैं। जैसे माँ की गोद, उसका प्यार और उसके पास की सामग्री सब बच्चे के लिए ही होती है, वैसे ही भगवान् की गोद, उनका प्रेम और उनके पास की सारी सम्पत्ति भक्त के लिए ही है। यदि भक्त किसी भी वस्तु में प्रसन्न न होकर केवल भगवान् को पुकारे तो वे तत्काल प्रकट हो जाते हैं।
इसमें योग्यता की कोई शर्त नहीं। माँ बच्चे के सौंदर्य, विद्वत्ता या सामर्थ्य को देखकर गोद में नहीं लेती। उसकी एक ही योग्यता पर्याप्त है – कि बच्चा केवल माँ को चाहता है और माँ के सिवा किसी भी वस्तु से राजी नहीं होता।
मेरापन की शक्ति
भगवान् से हमारा सम्बन्ध स्वाभाविक और स्वतन्त्र है। संसार के पदार्थों – मन, बुद्धि, इन्द्रियाँ, शरीर आदि – के साथ हमारा सम्बन्ध वास्तविक नहीं है क्योंकि ये सब निरन्तर बहते जा रहे हैं। पर भगवान् शाश्वत हैं, वे वास्तव में हमारे हैं।
बच्चे में कोई योग्यता नहीं होती, केवल यह भाव होता है – “माँ मेरी है।” यही मेरापन महान शक्ति है, जो स्वयं भगवान् को भी खींच लेती है। इसी कारण भक्त प्रह्लाद ने पत्थर से भी भगवान् को निकाल लिया –
अस्थायी संसार और शाश्वत भगवान्
संसार से हमारा प्रतिक्षण वियोग हो रहा है। शरीर, कुटुम्ब, धन-संपत्ति आदि न तो पहले हमारे साथ थे और न आगे रहेंगे। वे निरन्तर नाश की ओर जा रहे हैं। इसके विपरीत भगवान् नित्य और शाश्वत हैं। भूल यह है कि हम अस्थायी पदार्थों को अपना मानते हैं और सदा हमारे रहने वाले परमात्मा को अपना नहीं मानते।
भगवान् की प्राप्ति
भगवान् वर्तमान में ही उपलब्ध हैं। केवल उत्कट अभिलाषा की आवश्यकता है। आज ही भी हम उन्हें पा सकते हैं, भविष्य में भी। प्राप्ति का समय हमारे भाव पर निर्भर है। यदि आज ही उनके बिना जीना असम्भव हो जाए, तो वे आज ही मिल जाते हैं।
✨ निष्कर्ष ✨
भगवान् ही हमारे नित्य सम्बन्धी हैं। संसार अस्थायी है, हर क्षण नाशवान है। यदि हम सच्चे हृदय से संसार के आकर्षणों को छोड़कर केवल भगवान् को पुकारें, तो उनकी प्राप्ति में विलम्ब नहीं होता। उनका प्रेममय स्वभाव हमें उसी प्रकार खींच लेता है, जैसे माँ अपने रोते हुए बच्चे को गोद में उठा लेती है।
✅ FAQs – भगवान ही हमारे हैं (God is Always With Us)
Q1. “भगवान ही हमारे हैं” का क्या अर्थ है?
👉 इसका अर्थ है कि संसार के सभी सम्बन्ध अस्थायी हैं, लेकिन भगवान् हमारे नित्य, शाश्वत और सच्चे सम्बन्धी हैं। शरीर, धन, परिवार नाशवान हैं, पर भगवान् सदा हमारे साथ रहते हैं।
Q2. गीता में भगवान् कहाँ कहते हैं कि वे सबके हृदय में रहते हैं?
👉 श्रीमद्भगवद्गीता १५।१५ में भगवान् कहते हैं – “सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टः” अर्थात् “मैं सब प्राणियों के हृदय में स्थित हूँ।”
Q3. भगवान् की प्राप्ति कब और कैसे हो सकती है?
👉 भगवान् की प्राप्ति के लिए केवल उत्कट अभिलाषा और सच्चा भाव चाहिए। जैसे बच्चा माँ के बिना नहीं रह सकता, वैसे ही जब हम भगवान् के बिना न रह सकें, तो वे तत्काल प्रकट हो जाते हैं।
Q4. माता पार्वती के उदाहरण से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
👉 माता पार्वती ने अडिग निश्चय किया कि वे केवल शिवजी को ही पति मानेंगी। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि भगवान् के साथ सम्बन्ध में दृढ़ता और एकनिष्ठता ही सच्ची भक्ति है।
Q5. भक्त प्रह्लाद की कथा इस भाव को कैसे स्पष्ट करती है?
👉 भक्त प्रह्लाद ने जब सच्चे हृदय से भगवान् को पुकारा तो वे पत्थर से भी प्रकट हो गए। यह सिद्ध करता है कि भगवान् केवल भाव देखते हैं, बाहरी परिस्थितियाँ नहीं।
Q6. संसार अस्थायी और भगवान् शाश्वत क्यों माने जाते हैं?
👉 शरीर, कुटुम्ब, धन-सम्पत्ति आदि नश्वर हैं और समय के साथ नाश हो जाते हैं। जबकि भगवान् नित्य, अपरिवर्तनीय और हमारे सच्चे सम्बन्धी हैं।

