मनवा वैरागी बन देख रे – वैराग्य और माया पर जीवन दर्शन | Manwa Vairagi Poetry

Sooraj Krishna Shastri
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मनवा वैरागी बन देख रे – वैराग्य और माया पर जीवन दर्शन | Manwa Vairagi Poetry

"मनवा वैरागी बन देख रे" – डॉ. निशा कान्त द्विवेदी की यह कविता जीवन के मोह-माया, सुख-संपत्ति और रास-रंग में उलझे मनुष्य को वैराग्य की ओर प्रेरित करती है। जानिए क्यों असली संतोष केवल वैराग्य में है।


✍️ मूल कविता

मनवा! वैरागी बन देख रे,
रासरंग में उलझा करके, पाया नित नव क्लेश रे,

परिजन, पुरजन प्रिय बन कर भी, रहते नित परदेश रे,
साथ रहे तो मन की मलिनता, दूर न मन सन्तोष रे,

सब कुछ मिल कर भी मन खटके, होता न परितोष रे,
सुख- संपत्ति हैं व्यर्थ पुलिंदे, माया के परिवेश रे,

चहुँदिशि चकाचौंध जग लागे, फिर भी भीतर टीस रे,
जग से प्रीति अपेक्षा करना, संकट ही है शेष रे,

तन धूनी मन वैरागी हो, बाकी सब है क्लेश रे।

मनवा! वैरागी बन देख रे…..

✍️ डॉ. निशा कान्त द्विवेदी

 

मनवा वैरागी बन देख रे – वैराग्य और माया पर जीवन दर्शन | Manwa Vairagi Poetry
मनवा वैरागी बन देख रे – वैराग्य और माया पर जीवन दर्शन | Manwa Vairagi Poetry


🌸 कविता का भावार्थ

यह कविता मानव जीवन की उस सच्चाई को उजागर करती है जहाँ भौतिक सुख-संपत्ति, परिजन और सामाजिक सम्मान सब होने के बाद भी मनुष्य का हृदय खाली और असंतुष्ट रहता है।

  • कवि कहते हैं कि इस संसार का वैभव केवल मायामयी है।
  • प्रियजन पास होकर भी मन की अशांति को मिटा नहीं पाते।
  • धन-दौलत और रास-रंग केवल क्षणिक आनंद देते हैं।
  • स्थायी संतोष और शांति केवल वैराग्य में संभव है।

🔍 कविता का विश्लेषण

  1. संसारिक उलझनों की विवेचना – मनुष्य बाहर सुख ढूँढता है, परंतु अंदर केवल क्लेश पाता है।
  2. परिवार और समाज की सीमाएँ – प्रियजन भी आंतरिक रिक्तता नहीं भर सकते।
  3. माया का छलावा – चकाचौंध केवल बाहरी है, भीतर का शून्य वहीं रहता है।
  4. वैराग्य का समाधान – असली आनंद मोह-माया छोड़ने में है, संतोष केवल वैरागी मन को मिलता है।

🌍 आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता

आज के दौर में, जब इंसान भौतिक सुख, पद-प्रतिष्ठा और सोशल मीडिया की चमक में उलझा है—

  • तनाव, चिंता और असंतोष हर व्यक्ति का साथी बन गए हैं।
  • यह कविता हमें याद दिलाती है कि असली सुख बाहरी नहीं, भीतर है।
  • वैराग्य का अर्थ है— अनासक्ति, यानी मोह-माया में रहते हुए भी उनसे प्रभावित न होना।
  • यही संतुलित जीवन और मानसिक स्वास्थ्य की कुंजी है।

🌺 निष्कर्ष

डॉ. निशा कान्त द्विवेदी की यह कविता हमें यह शिक्षा देती है कि—
👉 वैराग्य कोई पलायन नहीं, बल्कि आंतरिक संतोष और शांति का मार्ग है।
👉 जीवन की चकाचौंध में उलझने के बजाय, यदि हम भीतर झाँकें और आत्मा की ओर लौटें, तो असली आनंद पा सकते हैं।



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