Hanuman Ji Aur Katha Shravan Ka Mahatva | श्रीहनुमानजी और कथा सुनने का महत्व

Sooraj Krishna Shastri
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Hanuman Ji Aur Katha Shravan Ka Mahatva | श्रीहनुमानजी और कथा सुनने का महत्व

"श्रीहनुमानजी कथा-श्रवण के प्रतीक हैं। जानिए क्यों वे हर कथा-कीर्तन में उपस्थित रहते हैं और कथा सुनने से भक्ति कैसे दृढ़ होती है।"


श्रीरामभक्त हनुमानजी और कथा-श्रवण का महत्व

१. हनुमानजी की कथा-प्रेमी वृत्ति

जहाँ-जहाँ प्रभु की भक्ति, कथा, भजन-कीर्तन होता है, वहाँ-वहाँ श्रीहनुमानजी साक्षात्‌ उपस्थित रहते हैं। प्रभु चाहे श्रीराम हों, श्रीकृष्ण हों, भगवान भोलेनाथ हों, या श्रीहरि विष्णु—हनुमानजी की यह विशेषता है कि वे हर स्थान पर भगवान की कथा और कीर्तन सुनने के लिए पहुँच जाते हैं।

शास्त्रकारों ने हनुमानजी की इसी वृत्ति को स्मरण कर कहा है—

"यत्र-यत्र रघुनाथ कीर्तनं, तत्र-तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम्।
बाष्पवारि परिपूर्ण लोचनं, मारुतिं नमत राक्षसान्तकम्।।"

अर्थात् जहाँ-जहाँ श्रीराम का कीर्तन होता है, वहाँ-वहाँ अंजलि बाँधकर, नेत्रों में अश्रु भरकर श्रीहनुमानजी उपस्थित रहते हैं।


२. श्रीमद्वल्लभाचार्य और हनुमानजी का संवाद

कथाओं में उल्लेख आता है कि एक बार श्रीमद्वल्लभाचार्यजी चित्रकूट पधारे और वहाँ श्रीमद्भागवत सप्ताह का आयोजन हुआ। उन्होंने हनुमानजी का आह्वान कर उन्हें यजमान बनाया। हनुमानजी प्रकट हुए और निवेदन किया—

"महाराज! मैं आपके श्रीमुख से एक बार श्रीराम-कथा सुनना चाहता हूँ।"

वल्लभाचार्यजी ने बैठकर कथा सुनाई। कथा समाप्त होने पर हनुमानजी ने कहा—

"मैं यजमान बना हूँ, और यजमान जब तक दक्षिणा नहीं देता, तब तक कथावाचक को कथा का पुण्य प्राप्त नहीं होता। तो बोलिए, आपको क्या दक्षिणा दूँ?"

महाराज ने उत्तर दिया—

"मुझे एक ही दक्षिणा चाहिए—मन्दाकिनी तट पर बैठकर आप मेरे श्रीमुख से एक बार श्रीमद्भागवत कथा सुन लें।"

हनुमानजी ने विनम्रता से सहमति दी और वहाँ बैठकर श्रीमद्भागवत का रसास्वादन किया।

Hanuman Ji Aur Katha Shravan Ka Mahatva | श्रीहनुमानजी और कथा सुनने का महत्व
Hanuman Ji Aur Katha Shravan Ka Mahatva | श्रीहनुमानजी और कथा सुनने का महत्व



३. कथा-श्रवण का महत्व

संतजन कहते हैं—
"कथा जरूर सुनो। कथा कहीं भी हो, उसे सुनने में तत्पर रहो।"

जो कुछ हम कानों से सुनते हैं, वह हमारी आत्मिक सम्पदा बन जाता है।
जो बातें हम सुनते हैं, वही हमारे भीतर बैठ जाती हैं।
यदि भगवान की कथा सुनेंगे तो भगवान हमारे हृदय में बसेंगे; यदि विषय-विकारों की चर्चा सुनेंगे तो वही हमारे जीवन को दूषित कर देंगे।

गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी स्पष्ट कहा है—

"जानें बिनु न होई परतीती, बिनु परतीती होइ नहिं प्रीती।
प्रीति बिना नहिं भगति दृढ़ाई,जिमि खगपति जल कै चिकनाई।।"

अर्थात् बिना जाने विश्वास नहीं होता, बिना विश्वास प्रेम नहीं होता, और बिना प्रेम भक्ति दृढ़ नहीं होती। जानने का उपाय है—भगवान की कथा सुनना।


४. विभीषण का उदाहरण

जब विभीषणजी भगवान श्रीराम के चरणों में पहुँचे, तो श्रीराम ने पूछा—
"विभीषण! मेरे पास आना इतना सरल नहीं है। तुम यहाँ तक कैसे आ गए?"

विभीषण ने उत्तर दिया—
"प्रभु! आपके भक्त श्रीहनुमानजी ने आपकी कथा सुनाई थी। कथा इतनी सुन्दर थी कि मन में विचार आया—जिनकी कथा इतनी रमणीय है, वे स्वयं कितने रमणीय होंगे। कथा ने ही मुझे आपके चरणों तक पहुँचा दिया।"

इससे स्पष्ट है कि कथा केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि ईश्वर तक पहुँचाने का मार्ग है।


५. कथा का प्रभाव और जीवन-शिक्षा

हमारे मुख से जो भोजन जाता है वह मलद्वार से बाहर निकल जाता है,
परन्तु कान और आँखों से जो भीतर जाता है, वह मुख से बाहर आता है।

  • यदि कानों से क्रोध की बातें सुनेंगे तो मुख दिनभर गाली देगा।
  • यदि विषय-भोग सुनेंगे तो मुख उन्हीं विषयों की चर्चा करेगा।
  • यदि भगवान की कथा सुनेंगे तो मुख से भजन-कीर्तन और भगवान का स्मरण होगा।

इसीलिए कहा गया है कि—
जीवन को कचराघर मत बनाइये।
बल्कि इसे सत्संग-भवन बनाइये,
जहाँ प्रतिदिन भगवान की कथा गूँजती रहे।


६. श्रीहनुमानजी – हमारे गुरु और सहचर

हनुमानजी बल, बुद्धि और विद्या के सागर हैं। वे भक्तों के परम हितैषी, सच्चे मार्गदर्शक और गुरु हैं।

यदि हम श्रीहनुमानजी को अपना गुरु और साथी बना लें, तो वे हमें सदा उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ाएँगे।
गुरु यदि सक्षम हो, तो शिष्य को भी समर्थ बनने में देर नहीं लगती।


७. निष्कर्ष और मंगलकामना

अतः भाई-बहनों, कथा-श्रवण ही भगवान के मिलन का साधन है।
कथा सुनकर ज्ञान, श्रद्धा और भक्ति जाग्रत होती है।
हम सब हनुमानजी के चरणों में विनय करें कि वे हमें कथा-रस का आस्वादन कराते रहें और हमारे जीवन को प्रभु-भक्ति से परिपूर्ण करें।

जय श्रीराम!
जय श्रीहनुमान!


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