Pitru Paksha Shraddha Myths and Truth | पितृ पक्ष श्राद्ध की भ्रांतियाँ और सत्य
"पितृ पक्ष श्राद्ध से जुड़ी भ्रांतियों और उनके सत्य को जानें। तर्पण, पिंडदान, आहार-विहार और नियमों का सही मार्गदर्शन इस लेख में पढ़ें।"
✨ पितृ पक्ष / श्राद्ध से जुड़ी भ्रान्तियाँ और उनके समाधान
❓ भ्रान्ति 1 –
पितृ पक्ष में घर पर पूजा-पाठ, दीपक, धूप, आरती आदि नहीं करनी चाहिए।
- गृहस्थ के नित्य कर्म, जैसे – जप, पाठ, संध्या-वंदन, ठाकुरजी/लड्डू गोपालजी/शिवलिंग की सेवा-पूजा, भोग, आरती, दीप-धूप आदि यथाविधि चलते रहना चाहिए।
- केवल इन नित्यकर्मों के साथ तर्पण, पिंडदान, दान आदि विशेष रूप से किए जाते हैं, जिनसे पितरों को तृप्ति और शांति मिलती है।
❓ भ्रान्ति 2 –
जिनके घर विवाह आदि शुभ कार्य हुए हैं, वे तर्पण/श्राद्ध नहीं कर सकते।
✅ सत्य –
- तर्पण तो प्रतिदिन संध्या-उपासना का अंग है, अतः इसका निषेध कहीं नहीं है।
- विवाह, उपनयन, या अन्य मांगलिक कार्य के बाद भी तर्पण और दान करना चाहिए।
- केवल पार्वण श्राद्ध (सामवेत/सामवत्सरिक पिंडदान) तथा क्षौर कर्म (मुंडन आदि) का निषेध है।
❓ भ्रान्ति 3 –
श्रीगया धाम में पिंडदान कर लेने के बाद दोबारा पिंडदान या तर्पण नहीं करना चाहिए।
✅ सत्य –
- गया श्राद्ध अत्यंत पवित्र और फलदायी है, पर इसका अर्थ यह नहीं कि अन्यत्र पिंडदान बंद कर दिया जाए।
- पितरों की आराधना वास्तव में भगवान विष्णु (पितृरूपी जनार्दन) की उपासना है।
- अतः सामर्थ्य और श्रद्धा अनुसार पिंडदान करना उचित है।
- तर्पण तो अनिवार्य है, विशेषकर पूरे पितृ पक्ष में इसे अवश्य करना चाहिए।
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Pitru Paksha Shraddha Myths and Truth | पितृ पक्ष श्राद्ध की भ्रांतियाँ और सत्य |
❓ भ्रान्ति 4 –
पितृ पक्ष में खान-पान से संबंधित कोई विशेष नियम नहीं हैं।
✅ सत्य –
- पितृ पक्ष में आहार-विहार शुद्ध और सात्त्विक होना चाहिए।
- जैसे श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा या नवरात्रि में माता दुर्गा की उपासना शुद्ध सात्त्विक रहकर की जाती है, वैसे ही पितृ पक्ष में भी आहार-विहार संयमित होना चाहिए।
- निषेध सामग्री – मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, मसूर, कुल्थी, गुटका, तंबाकू और सभी प्रकार के मादक पदार्थ।
- अनुशासन – ब्रह्मचर्य, संयम और सात्त्विकता का पालन।
- पितृ पक्ष के दिनों में नए कार्य (गृहप्रवेश, वाहन-खरीद, विवाह, नया व्यापार प्रारंभ आदि) नहीं करने चाहिए।
✅ विशेष निर्देश :
- पितृ पक्ष केवल पितरों की शांति के लिए नहीं, बल्कि स्वयं साधक के आत्म-कल्याण के लिए भी है।
- शुद्ध आचरण, संयम, तर्पण, दान और कथा-श्रवण से ही पितरों की तृप्ति होती है।
- पितृ पक्ष को भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा का अंग मानना चाहिए।
🌸 निष्कर्ष
इसलिए भ्रान्तियों से मुक्त होकर, श्रद्धा, नियम और सात्त्विकता के साथ इन 16 दिनों को मनाना चाहिए।
❓ FAQs on Pitru Paksha / श्राद्ध
Q1. पितृ पक्ष में पूजा-पाठ करना उचित है या नहीं?
👉 हाँ, पितृ पक्ष में नित्यकर्म जैसे जप, पाठ, संध्या-वंदन, ठाकुरजी/गोपालजी/शिवलिंग की सेवा, आरती, दीप-धूप आदि अवश्य करें। केवल पिंडदान और तर्पण जैसे विशेष कर्म जोड़ दिए जाते हैं।
Q2. जिनके घर विवाह या कोई शुभ कार्य हुआ है क्या वे श्राद्ध कर सकते हैं?
👉 हाँ, ऐसे घरों में तर्पण और दान अवश्य करना चाहिए। केवल पार्वण श्राद्ध (विशेष पिंडदान) और क्षौर कर्म (मुंडन) का निषेध है।
Q3. गया जी में पिंडदान करने के बाद दोबारा श्राद्ध क्यों करना चाहिए?
👉 गया श्राद्ध अत्यंत पवित्र है, पर इसका अर्थ यह नहीं कि अन्यत्र श्राद्ध या तर्पण बंद कर दिया जाए। पितृ पक्ष में तर्पण करना अनिवार्य है और सामर्थ्य अनुसार पिंडदान भी करते रहना चाहिए।
Q4. पितृ पक्ष में खाने-पीने पर क्या नियम हैं?
👉 पितृ पक्ष के पूरे 16 दिनों तक सात्त्विक आहार लेना चाहिए।
- निषेध सामग्री – प्याज, लहसुन, मसूर, कुल्थी, मांस, मदिरा, गुटका, तंबाकू और सभी प्रकार के मादक पदार्थ।
- अनुशासन – ब्रह्मचर्य, संयम और सात्त्विकता का पालन।
Q5. क्या पितृ पक्ष में नया कार्य या खरीदारी करना चाहिए?
👉 नहीं। पितृ पक्ष को पितरों की सेवा और तर्पण का समय माना गया है। इस दौरान नए कार्य, विवाह, गृहप्रवेश, नया व्यवसाय, या बड़ी खरीदारी टालनी चाहिए।
Q6. पितृ पक्ष में तर्पण क्यों अनिवार्य है?
👉 तर्पण से न केवल पितर संतुष्ट होते हैं, बल्कि साधक के भीतर आत्मिक शांति और पूर्वजों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। यही कारण है कि इसे पूरे पितृ पक्ष में करना श्रेष्ठ माना गया है।
Q7. क्या पितृ पक्ष केवल पितरों के लिए है?
👉 नहीं। पितृ पक्ष वास्तव में भगवान विष्णु (पितृरूपी जनार्दन) की उपासना है। इससे हमारे पूर्वजों की सद्गति और स्वयं साधक का भी कल्याण होता है।