कार्तिक माह की कथा: लपसी–तपसी Story with Moral in Hindi

Sooraj Krishna Shastri
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कार्तिक माह की कथा: लपसी–तपसी Story with Moral in Hindi

कार्तिक माह की लपसी–तपसी की कहानी भक्ति और तपस्या के महत्व को दर्शाती है। इस कथा में लपसी एक साधारण भक्त है, जो प्रतिदिन सवा सेर दही से लस्सी बनाकर भगवान को भोग लगाता है और सरलता से जीवन जीता है। वहीं तपसी कठोर तपस्या करता है। जब दोनों में विवाद होता है कि कौन बड़ा है, तब नारद मुनि उनकी परीक्षा लेते हैं। तपसी भौतिक वस्तु (सवा करोड़ की अंगूठी) के मोह से बच तो जाता है लेकिन उसकी तपस्या अपूर्ण मानी जाती है। जबकि लपसी की सहज भक्ति और निष्ठा को नारद जी श्रेष्ठ ठहराते हैं। इस कथा से संदेश मिलता है कि सच्ची भक्ति सरलता और निष्ठा में है, न कि केवल कठोर तपस्या में। कार्तिक माह में इस कथा को सुनने और मानने से पुण्य प्राप्त होता है और कार्तिक स्नान का फल संपूर्ण माना जाता है।


कार्तिक में लपसी–तपसी की कहानी

पात्र परिचय

  1. लपसी – एक साधारण व्यक्ति, जो भले ही भगवान की भक्ति में न लीन हो, लेकिन परिश्रम और सरलता से अपना काम करता है। वह सवा सेर दही से लस्सी बनाता, उसे भगवान को भोग लगाता और स्वयं भी पी जाता है।

  2. तपसी – एक तपस्वी, जो रोज़ भगवान की भक्ति में लीन रहता है। उसकी तपस्या कठोर और नियमित है।

  3. नारद मुनि – दिव्य ज्ञानी और मार्गदर्शक, जो सभी कार्यों और तपसियों का न्याय करते हैं।

कार्तिक माह की कथा: लपसी–तपसी Story with Moral in Hindi
कार्तिक माह की कथा: लपसी–तपसी Story with Moral in Hindi



कथा का प्रारंभ

प्राचीन समय की बात है। एक गाँव में लपसी और तपसी रहते थे।

  • तपसी सारा दिन भगवान की भक्ति में लीन रहता।

  • लपसी रोज़ सवा सेर दही की लस्सी बनाता, उसे भगवान को भोग लगाता और फिर स्वयं पी जाता।

एक दिन दोनों में बहस छिड़ गई:

लपसी: "मैं बड़ा हूँ।"
तपसी: "नहीं, मैं बड़ा हूँ। क्योंकि मैं सारा दिन तपस्या और भक्ति में लीन रहता हूँ।"


नारद मुनि का हस्तक्षेप

लड़ाई देखकर नारद मुनि जी दोनों के पास आए और पूछा:
"यह लड़ाई क्यों हो रही है?"

  • तपसी बोला: "मैं बड़ा हूँ, लेकिन लपसी मान नहीं रहा।"

  • लपसी बोला: "मैं बड़ा हूँ, पर तपसी मान नहीं रहा।"

नारद जी बोले:
"इसका निर्णय मैं कल कर दूंगा।"


तपसी की परीक्षा

अगले दिन तपसी सुबह स्नान कर लौट रहा था।

  • नारद जी ने उसकी तपस्या की परीक्षा लेने के लिए सवा करोड़ की अंगूठी उसके सामने फेंक दी।

  • तपसी ने इधर-उधर देखा, लेकिन अंगूठी उठाई और फिर तपस्या में लीन हो गया

यहाँ यह दर्शाया गया कि तपसी ने भौतिक वस्तु को अपनी तपस्या में बाधक नहीं बनने दिया।


लपसी की परीक्षा

लपसी भी रोज की तरह आया।

  • उसने सवा सेर दही से लस्सी बनाई, उसे लोटे में घुमाया, भोग लगाया और स्वयं पी गया।

  • तभी नारद जी आए और उन्होंने निर्णय दिया:
    "लपसी बड़ा है।"

तपसी ने आश्चर्यचकित होकर पूछा:
"क्यों नारद जी? मैंने तो तपस्या की।"

नारद जी ने समझाया:
"तुम्हारे गोड़े के नीचे सवा करोड़ की अंगूठी पड़ी थी। यदि तुमने इसे चुराया होता या इसके लालच में पड़ते, तो तुम्हारी तपस्या भंग हो जाती। तुमने उसे उठाया और तपस्या में लगा रहे। इसलिए तुम्हारी तपस्या पूर्ण नहीं मानी जा सकती।

तुम्हारी तपस्या का फल केवल कार्तिक माह में स्नान करने वाली को ही मिल सकता है। जो व्यक्ति इस कथा को सुनेगा और इसे न मानेगा या कहानी को न सुनेगा, उसका कार्तिक स्नान का फल व्यर्थ चला जाएगा।


कथा का नैतिक संदेश

  1. भक्ति और भौतिक लालच – तपस्या में भौतिक वस्तु या लालच का प्रवेश तपस्या को विफल कर सकता है।

  2. सच्ची भक्ति – लपसी ने अपनी भक्ति में सरलता और निष्ठा दिखाई।

  3. कथा सुनने का महत्व – कार्तिक माह में इस कथा का पाठ/सुनना पुण्य का कारण बनता है।

  4. तपस्या का फल – केवल सही नियमों और भगवान की आज्ञा से ही मिलता है।


विस्तार से घटनाक्रम सारणी

क्रम घटना पात्र संदेश / उद्देश्य
1 लपसी और तपसी में बहस लपसी, तपसी कौन बड़ा है, यह विवाद
2 नारद मुनि का मध्यस्थ नारद न्याय और परीक्षण का प्रस्ताव
3 तपसी की परीक्षा तपसी, नारद भौतिक वस्तु का परीक्षा, लालच का परिक्षण
4 लपसी की परीक्षा लपसी, नारद सरल भक्ति, सच्चा भोग
5 निर्णय नारद लपसी को बड़ा घोषित करना, तपसी की तपस्या का फल कार्तिक स्नान पर निर्भर
6 शिक्षा सभी भक्ति, तपस्या, कथा सुनने और सच्चाई का महत्व


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