Mahabharat Van Parv Yaksha Yudhishthir Samvad: महाभारत वन पर्व में वर्णित यक्ष–युधिष्ठिर संवाद का विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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Mahabharat Van Parv Yaksha Yudhishthir Samvad:  महाभारत वन पर्व में वर्णित यक्ष–युधिष्ठिर संवाद का विश्लेषण 

🌸 महाभारत : यक्ष–युधिष्ठिर संवाद 🌸

यह प्रसंग भी वनपर्व से लिया गया है। यक्ष ने युधिष्ठिर से एक और गूढ़ प्रश्न पूछा – जीवन के अलग-अलग अवसरों पर सच्चा मित्र कौन होता है?


✦ मूल श्लोक ✦

यक्ष उवाच

किंस्वित् प्रवसतो मित्रं किंस्विन्मित्रं गृहे सतः ।
आतुरस्य च किं मित्रं किंस्विन्मित्रं मरिष्यतः ॥

👉 “प्रवासी (परदेश के यात्री) का मित्र कौन है? गृहस्थ का मित्र कौन है? रोगी का मित्र कौन है? और मृत्यु के समीप पहुँचे मनुष्य का मित्र कौन है?”


युधिष्ठिर उवाच

सार्थः प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः ।
आतुरस्य भिषग् मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः ॥

👉 “यात्रा में सहयात्री प्रवासी का मित्र है, पत्नी गृहस्थ का मित्र है, वैद्य रोगी का मित्र है और दान मृत्यु के समीप पहुँचनेवाले मनुष्य का मित्र है।”


✨ व्याख्या ✨

यक्ष के इस प्रश्न और युधिष्ठिर के उत्तर में जीवन की चार महत्त्वपूर्ण अवस्थाओं का चित्रण है।

1️⃣ प्रवासी का मित्र – सहयात्री (सार्थः प्रवसतो मित्रम्)

  • परदेश जाते समय सहयात्री ही सच्चा मित्र होता है।

  • यात्रा में अनजान स्थान, कठिनाइयाँ और आकस्मिक संकट आते हैं, जिनसे निपटने में सहयात्री ही सहारा बनता है।

  • चाहे सहयात्री पहले से अपरिचित हो, फिर भी वह मित्रतुल्य हो जाता है।
    👉 यह हमें सिखाता है कि जीवन की यात्रा में भी साथ चलने वाले सहयोगी (सच्चे मित्र) का महत्व सर्वोपरि है।

Mahabharat Van Parv Yaksha Yudhishthir Samvad:  महाभारत वन पर्व में वर्णित यक्ष–युधिष्ठिर संवाद का विश्लेषण
Mahabharat Van Parv Yaksha Yudhishthir Samvad: महाभारत वन पर्व में वर्णित यक्ष–युधिष्ठिर संवाद का विश्लेषण 



2️⃣ गृहस्थ का मित्र – पत्नी (भार्या मित्रम् गृहे सतः)

  • पति के लिए पत्नी ही सबसे बड़ी सखी और सहचरी होती है।

  • उसे अर्धांगिनी और गृहस्वामिनी कहा गया है।

  • बिना पत्नी के घर को शास्त्रों ने “भूतों का डेरा” कहा है।
    👉 इसका तात्पर्य है कि गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी ही एक-दूसरे के सबसे सच्चे मित्र होते हैं।


3️⃣ रोगी का मित्र – वैद्य (आतुरस्य भिषग् मित्रम्)

  • रोग की अवस्था में वैद्य या चिकित्सक ही सच्चा मित्र होता है।

  • उचित निदान और औषधि द्वारा वही रोगी को स्वस्थ करता है।

  • आज भी डॉक्टर जीवनदाता कहे जाते हैं।
    👉 इसका संदेश है कि रोगी को वैद्य पर विश्वास कर उसकी सलाह का पालन करना चाहिए।


4️⃣ मृत्यु के समीप मनुष्य का मित्र – दान (दानम् मित्रम् मरिष्यतः)

  • मरने के बाद धन साथ नहीं जाता, केवल सत्कर्म साथ जाते हैं।

  • दान सबसे श्रेष्ठ सत्कर्म है, जो परलोक में भी साथ रहता है।

  • शास्त्र कहते हैं – धन की तीन गतियाँ हैं: भोग, दान और नाश
    👉 इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति मृत्यु से पूर्व अपने धन का सदुपयोग दान में करता है।


🌺 दार्शनिक सारांश 🌺

  • सहयात्री यात्रा में मित्र है → जीवन की कठिनाइयों में सहयोगी की आवश्यकता।

  • पत्नी गृहस्थ का मित्र है → गृहस्थ आश्रम में परस्पर सहयोग व विश्वास ही आधार है।

  • वैद्य रोगी का मित्र है → स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है और चिकित्सक मित्ररूप होता है।

  • दान मृत्यु के समय मित्र है → सत्कर्म और दान ही परलोक में साथ देते हैं।

👉 यक्ष ने यह प्रश्न पूछकर यह स्पष्ट कराया कि मनुष्य के जीवन के हर चरण में मित्र की परिभाषा बदलती है, परंतु सच्चा मित्र वही है जो संकट की घड़ी में साथ दे।

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