मंदिर की पैड़ी पर क्यों बैठते हैं? | Mandir ki Pairi Par Baithne ka Mahatva in Hindi

Sooraj Krishna Shastri
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मंदिर की पैड़ी पर क्यों बैठते हैं? | Mandir ki Pairi Par Baithne ka Mahatva in Hindi

मंदिर की पैड़ी पर बैठने की प्राचीन परंपरा का महत्व जानें। दर्शन के बाद पैड़ी पर बैठकर ध्यान और श्लोक उच्चारण से मिलते हैं शांति, भक्ति और ईश्वर का सान्निध्य।

🕉️ मंदिर की पैड़ी पर कुछ देर क्यों बैठा जाता है? 🕉️

जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं, तो बड़े बुजुर्ग अक्सर कहते हैं:

"मंदिर से बाहर आकर थोड़ी देर पैड़ी (मंदिर की बाहर की सीढ़ी या बैठने की जगह) पर बैठो।"

इस प्राचीन परंपरा के पीछे गहरा आध्यात्मिक उद्देश्य छुपा है।


पैड़ी पर बैठने का उद्देश्य

आजकल लोग मंदिर की पैड़ी पर व्यापार, राजनीति और बातचीत के लिए बैठते हैं।
लेकिन प्राचीन समय में इस परंपरा का उद्देश्य ध्यान, शांति और भक्ति था।

  • मंदिर में दर्शन करने के बाद पैड़ी पर बैठकर भगवान का ध्यान करना आवश्यक माना जाता था।

  • इसके दौरान एक विशेष श्लोक का उच्चारण करना प्राचीन परंपरा थी।


प्राचीन श्लोक

अनायासेन मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम्।।

श्लोक का अर्थ

  1. अनायासेन मरणम् – बिना कष्ट और पीड़ा के मृत्यु प्राप्त करना।

    • जैसे अचानक प्राण निकल जाए, या बीमार होकर कष्ट न सहना पड़े।

  2. बिना देन्येन जीवनम् – जीवन दूसरों पर निर्भर न हो, स्वावलंबी जीवन।

    • जैसे लकवा या किसी बीमारी में भी दूसरों पर आश्रित न होना पड़े।

  3. देहान्त तव सानिध्यम् – मृत्यु के समय भगवान के सम्मुख होना।

    • जैसे भीष्म पितामह के समय भगवान स्वयं उनके सम्मुख खड़े हुए थे।

  4. देहि मे परमेश्वरम् – हे परमेश्वर, ऐसा वरदान हमें देना।

मंदिर की पैड़ी पर क्यों बैठते हैं? | Mandir ki Pairi Par Baithne ka Mahatva in Hindi
मंदिर की पैड़ी पर क्यों बैठते हैं? | Mandir ki Pairi Par Baithne ka Mahatva in Hindi



कैसे करना चाहिए यह अभ्यास

  1. मंदिर के अंदर:

    • खुली आंखों से भगवान का दर्शन करें।

    • उनके स्वरूप, चरण, मुखारविंद और श्रृंगार का आनंद लें।

    • आंखें बंद करके खड़े रहने से दर्शन का उद्देश्य अधूरा रह जाता है।

  2. मंदिर से बाहर:

    • पैड़ी पर बैठकर भगवान का ध्यान करें।

    • इस दौरान आंखें बंद करें और श्लोक का उच्चारण करें।

    • यदि भगवान का स्वरूप ध्यान में न आए, तो दोबारा मंदिर में जाकर दर्शन करें, फिर पैड़ी पर बैठकर ध्यान करें।


महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • यह प्राचीन परंपरा ध्यान, भक्ति और शांति का अभ्यास है।

  • पैड़ी पर बैठकर श्लोक उच्चारण करने से जीवन सुरक्षित, स्वावलंबी और ईश्वर के निकट बनता है।

  • इस अभ्यास से मृत्यु के समय भी भगवान का सान्निध्य प्राप्त होता है।


निष्कर्ष

मंदिर की पैड़ी पर बैठना केवल प्रतीकात्मक नहीं है। यह ध्यान, भक्ति और भगवान के सान्निध्य का साधन है।
इस परंपरा का पालन करने से जीवन में शांति, सुरक्षा और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।

जय श्रीराम 🙏

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