श्राद्ध कर्म क्या हैं? | Shraddha Karma in Hinduism with Types, Rules, Slokas & Importance
🕉️ श्राद्ध कर्म क्या हैं? (विस्तृत एवं शास्त्रीय विवेचन)
१. श्राद्ध की संकल्पना
हिन्दू धर्म पुनर्जन्म और आत्मा की अमरता में विश्वास करता है। इसी आधार पर श्राद्ध का विधान है। श्राद्ध से पितरों को तृप्ति और संतान को पितृऋण से मुक्ति प्राप्त होती है।
२. श्राद्ध के प्रकार और समय
शास्त्रों में मृत्यु के उपरान्त एवं वार्षिक स्तर पर विभिन्न श्राद्ध बताए गए हैं –
क्रम | श्राद्ध का नाम | समय | विशेषता |
---|---|---|---|
1️⃣ | नवश्राद्ध | मृत्यु के बाद पहले 10 दिन | प्रतिदिन पिण्डदान एवं तर्पण |
2️⃣ | दशगात्र / एकादशाह | 11वें दिन | मृतात्मा को प्रेतयोनि से मुक्ति की तैयारी |
3️⃣ | द्वादशाह / सपिण्डीकरण श्राद्ध | 12वें दिन | पितरों में सम्मिलन |
4️⃣ | पार्वण श्राद्ध | मृत्यु के 12 माह बाद, उसी तिथि पर | वार्षिक श्राद्ध का प्रारम्भ |
5️⃣ | संवत्सरी श्राद्ध | हर वर्ष मृतक की तिथि पर | वार्षिक स्मरण एवं तर्पण |
6️⃣ | कनागत (पितृपक्ष श्राद्ध) | भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक (16 दिन) | सभी पितरों के सामूहिक तर्पण का काल |
7️⃣ | नान्दी श्राद्ध | विवाह, यज्ञ, देव प्रतिष्ठा आदि शुभ कार्यों से पूर्व | देव-पितृ आशीर्वाद हेतु |
३. श्राद्ध में श्रद्धा का महत्व
श्रीभगवद्गीता (१७/२८)
अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत् ।असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह ॥
📖 भावार्थ – बिना श्रद्धा से किया गया हवन, दान, तप या श्राद्ध निष्फल है।
४. मृत्युभोज का उल्लेख शास्त्रों में नहीं
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श्राद्ध कर्म क्या हैं? | Shraddha Karma in Hinduism with Types, Rules, Slokas & Importance |
५. श्राद्ध में ब्राह्मण भोज का नियम
मनुस्मृति (३/१२९)
एकैकमपि विद्वांसं दैवे पित्र्यै च भोजयेत् ।पुष्कलं फलमाप्नोति नामन्त्रज्ञान बहूनपि ॥
📖 भावार्थ – देवकर्म या पितृकर्म में एक भी वेदज्ञ ब्राह्मण को भोजन कराने से उतना फल मिलता है, जितना बहुत-से अज्ञानी ब्राह्मणों को खिलाने से भी नहीं मिलता।
महाभारत (अनुशासन पर्व ९०/५४)
प्रियो वा यदि वा द्वेष्यस्तेषां तु श्राद्धमावपेत् ।यः सहस्रं सहस्राणां भोजयेदनृतान् नरः ।एकस्तन्मन्त्रवित् प्रीति: सर्वानर्हति भारत ॥
📖 भावार्थ – श्राद्ध में प्रिय हो या अप्रिय, वेदज्ञ ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। हजार अपात्रों की अपेक्षा एक सत्पात्र ब्राह्मण अधिक श्रेष्ठ है।
६. क्या श्राद्ध परिवार पर बोझ है?
तैत्तिरीय उपनिषद् (१/११/१)
देवपितृकार्याभ्यां न प्रमादितव्यम् ।📖 भावार्थ – देवकार्य और पितृकार्य में प्रमाद नहीं करना चाहिए।
अथर्ववेद (१८/४/२५)
अपुपापिहितान्कुम्भान् यास्ते देवा अधारयन् ।ते ते सन्तु स्वधावन्तो मधुमन्तो घृतश्च्युतः ॥
📖 भावार्थ – हे पितृगण! मालपुए से ढके घट, मधु और घृतयुक्त पदार्थ आपके लिए तृप्तिकारक हों।
७. समर्थ और असमर्थ के लिए नियम
कूर्मपुराण (२२/८६)
अपि मूलैः फलैर्वापि प्रकुर्याद्धनो द्विजः ।तिलोदकैस्तर्पयेद्वा पितॄन्स्नात्वा समाहितः ॥
📖 भावार्थ – यदि धन न हो तो भी फल-मूल या तिलोदक से श्राद्ध करना चाहिए।
विष्णुपुराण (३/१४/३०)
न मेऽस्ति वित्तं न धनं च नान्यच्छ्राद्धोपयोग्यं स्वपितृन्नतोऽस्मि ।तृप्यन्तु भक्त्या पितरो मयैतौ कृतौ भुजौ वर्त्मनि मारुतस्य ॥
📖 भावार्थ – यदि धन नहीं है तो दोनों हाथ उठाकर कहना चाहिए – "हे पितरों! मेरे पास श्रद्धा और भक्ति है, उसी से आप तृप्त हों।"
८. श्राद्ध किसे कराएँ?
मनुस्मृति (३/१४५)
यत्नेन भोजयेच्छ्राद्धे बह्वृचं वेदपारगम् ।शाखान्तगमथाध्वर्यु छन्दोगं तु समाप्तिकम् ॥
📖 भावार्थ – श्राद्ध में वेदपारंगत, शाखान्तग, अध्वर्यु या छन्दोग विद्वान् ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।
९. रामायण एवं महाभारत में श्राद्ध
वाल्मीकि रामायण (अयोध्याकाण्ड ७७/१-२)
ततो दशाहेऽतिगते कृतशौचो नृपात्मजः ।द्वादशेऽहनि सम्प्राप्ते श्राद्धकर्माण्यकारयत् ॥ब्राह्मणेभ्यो धनं रत्नं ददावन्नं च पुष्कलम् ॥
📖 भावार्थ – महाराज दशरथ के निधन पर भरत ने १२वें दिन श्राद्धकर्म किया और ब्राह्मणों को दान व भोजन कराया।
राम का उदाहरण
ऐङ्गुदं बदरैर्मिश्रं पिण्याकं दर्भसंस्तरे ।न्यस्य रामः सुदुःखार्तो रुदन् वचनमब्रवीत् ॥इदं भुङ्क्ष्व महाराज प्रीतो यदशना वयम् ।इदन्नः पुरुषो भवति तदन्नास्तस्य देवताः ॥
📖 भावार्थ – वनवास में श्रीराम ने बेर और इङ्गुदी से पिण्ड बनाया और कहा – "हे पिताश्री! प्रसन्न होकर इसे स्वीकार कीजिए, क्योंकि मनुष्य स्वयं जो खाता है, वही उसके देवता भी ग्रहण करते हैं।"
१०. निष्कर्ष
- श्राद्ध श्रद्धा का विषय है, प्रदर्शन का नहीं।
- एक पात्र ब्राह्मण को भोजन कराना लाखों अपात्रों से श्रेष्ठ है।
- असमर्थ होने पर भी श्रद्धा, तिलोदक, फल-मूल या केवल भक्ति से श्राद्ध किया जा सकता है।
- श्राद्ध द्वारा हम अपने पितरों के प्रति कृतज्ञता और पितृऋण मुक्ति का कर्तव्य निभाते हैं।
🕉️ श्राद्ध कर्म : प्रश्नोत्तर (FAQ)
❓श्राद्ध क्या है?
❓मृत्यु के बाद कौन-कौन से श्राद्ध किए जाते हैं?
- नवश्राद्ध – मृत्यु के बाद 10 दिन तक प्रतिदिन।
- दशगात्र / एकादशाह – 11वें दिन का श्राद्ध।
- द्वादशाह (सपिण्डी श्राद्ध) – 12वें दिन। इसी से मृत आत्मा प्रेतयोनि से मुक्त होकर देवयोनि की ओर जाती है।
- पार्वण श्राद्ध – मृत्यु के एक वर्ष बाद, उसी तिथि को।
- संवत्सरी – हर वर्ष उसी तिथि पर।
- कनागत / पितृपक्ष – भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक 16 दिनों का श्राद्ध पक्ष।
- नान्दी श्राद्ध – विवाह, यज्ञ, प्रतिष्ठा जैसे शुभ कार्यों से पहले।
❓क्या बिना श्रद्धा के किया गया श्राद्ध फल देता है?
“अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत् ।असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह ॥”
📌 बिना श्रद्धा के किया गया श्राद्ध इस लोक और परलोक – दोनों में निष्फल है।
❓श्राद्ध में कितने ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए?
👉 शास्त्रों में विषम संख्या का निर्देश है, परंतु संख्या से अधिक गुण और पात्रता आवश्यक है।
- एक ही वेदज्ञ ब्राह्मण को भोजन कराने का फल लाखों अपात्रों को खिलाने से भी अधिक है।📌 (मनुस्मृति 3/129, महाभारत अनुशासन पर्व 90/54)
❓क्या ब्राह्मण भोज गरीब परिवार पर बोझ है?
👉 नहीं। शास्त्रों ने विकल्प दिए हैं –
- यदि समर्थ हों तो विधिवत ब्राह्मण भोज कराएं।
- समर्थ न हों तो फल, मूल, शाक, तिलोदक से श्राद्ध करें।
- यदि वह भी न हो, तो दोनों हाथ आकाश की ओर उठाकर श्रद्धा से पितरों को प्रणाम करें।
📌 (कूर्मपुराण 22/86, विष्णुपुराण 3/14/30)
❓श्राद्ध किसे खिलाना चाहिए?
👉 ऐसे ब्राह्मण को –
- जो वेदपारंगत हो,
- या किसी शाखा का पूर्ण ज्ञाता हो,
- या सम्पूर्ण वेद का ज्ञाता हो।📌 (मनुस्मृति 3/145)
❓रामायण और महाभारत में श्राद्ध का उल्लेख कहाँ मिलता है?
- रामायण (अयोध्याकाण्ड 77/1-2): भरत जी ने महाराज दशरथ की मृत्यु के बाद द्वादशाह श्राद्ध कराया।
- रामायण (अरण्यकाण्ड): वनवास में श्रीराम ने बेर और इङ्गुदी के गूदे से पिण्ड बनाकर श्राद्ध किया।
👉 यह सिद्ध करता है कि श्राद्ध का मूल तत्व श्रद्धा है, न कि भव्य व्यवस्था।
❓श्राद्ध का मूल संदेश क्या है?
👉 श्राद्ध केवल परंपरा नहीं, बल्कि –
- पितृ ऋण से मुक्ति,
- पितरों के प्रति कृतज्ञता,
- श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।
तैत्तिरीयोपनिषद् (1/11/1):
“देवपितृकार्याभ्यां न प्रमादितव्यम्।”👉 अर्थात् देव और पितृकर्म में कभी प्रमाद नहीं करना चाहिए।
🌿 श्राद्ध = श्रद्धा + कृतज्ञता + कर्तव्य।