Pitru Paksha Ki Pauranik Katha in Hindi | पितृ पक्ष की पौराणिक कथा और शिक्षा
✨ पितृपक्ष की पौराणिक कथा | Pitru Paksha Story in Hindi
भूमिका
पितृपक्ष का समय पूर्वजों को स्मरण करने, उनका श्राद्ध करने और आशीर्वाद प्राप्त करने का होता है। यह काल हमें यह सिखाता है कि पूर्वजों का सम्मान और श्रद्धा के साथ किया गया कर्म जीवन में सुख, समृद्धि और उन्नति लाता है। इस संबंध में प्रचलित एक पौराणिक कथा बहुत प्रसिद्ध है, जो जोगे और भोगे नामक दो भाइयों की है।
कथा
1. जोगे और भोगे – दो भाई
सतयुग में एक गाँव में दो सगे भाई रहते थे – जोगे और भोगे।
- जोगे धनी और ऐश्वर्यशाली था, किंतु उसकी पत्नी को धन का घमंड था।
- भोगे निर्धन था, लेकिन उसकी पत्नी दयालु, सरल और सेवा-भाव से युक्त थी।दोनों भाई अलग-अलग रहते थे, परंतु परस्पर प्रेम और स्नेह था।
2. पितृपक्ष का आगमन
जब पितृपक्ष आया तो जोगे की पत्नी ने उससे श्राद्ध करने के लिए कहा।
- जोगे ने कहा – "ये सब व्यर्थ बातें हैं, मैं श्राद्ध नहीं करूंगा।"
- परंतु उसकी पत्नी को समाज में अपनी प्रतिष्ठा की चिंता थी। उसने सोचा कि श्राद्ध न करने पर लोग निंदा करेंगे।इसलिए उसने जोगे से कहा कि मैं काम में मदद के लिए भोगे की पत्नी को बुला लूंगी और उसने मायके वालों को श्राद्ध भोज का निमंत्रण भेज दिया।
![]() |
Pitru Paksha Ki Pauranik Katha in Hindi | पितृ पक्ष की पौराणिक कथा और शिक्षा |
3. जोगे के घर श्राद्ध की तैयारी
अगले दिन जोगे की पत्नी ने भोगे की पत्नी को सहायता के लिए बुला लिया।
- दोनों ने मिलकर तरह-तरह के व्यंजन बनाए।
- काम समाप्त होने पर भोगे की पत्नी अपने घर लौट आई, क्योंकि उसे भी श्राद्ध करना था।
4. पितरों का आगमन
पितृलोक से सभी पितर धरती पर उतरे और अपने-अपने वंशजों के घरों की ओर चल दिए।
- जोगे और भोगे के पितर पहले जोगे के घर पहुंचे। वहाँ उन्होंने देखा कि जोगे की पत्नी अपने मायके वालों को भोजन करा रही थी।👉 यह देखकर पितृ बहुत दुःखी हुए और बिना भोजन किए वहाँ से लौट आए।
फिर वे भोगे के घर पहुंचे। वहाँ उन्होंने देखा कि श्राद्ध के नाम पर केवल उपलों पर अगियारी (अग्नि) जल रही है।
- भोगे की दरिद्रता के कारण वहाँ भोजन नहीं बन पाया था।
- पितरों ने केवल अगियारी की राख ग्रहण की और भूखे ही नदी तट की ओर चले गए।
5. पितरों की दया और वरदान
जब पितर पुनः एकत्र हुए तो सभी अपने-अपने परिवारों से प्राप्त भोजन की चर्चा करने लगे।
- जोगे-भोगे के पितरों ने भी अपनी व्यथा सुनाई।
- उन्होंने कहा – “यदि भोगे के पास धन होता तो हमें भूखे न लौटना पड़ता।”
- और यह कहते हुए वे करुणा से भर उठे।
6. चमत्कार और समृद्धि
बच्चों ने देखा कि हांडी सोने के सिक्कों से भरी हुई थी।
- इस प्रकार भोगे निर्धनता से निकलकर धनवान बन गया।
- लेकिन उसके स्वभाव में कभी अभिमान नहीं आया।
7. अगले वर्ष का श्राद्ध
- ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दी।
- विधिपूर्वक श्राद्ध-कर्म सम्पन्न किया।
- और अपने बड़े भाई जोगे को सोने की थाल दान में दी।
इस बार भोगे के घर आए पितर तृप्त हुए और उन्होंने भरपूर आशीर्वाद दिया।
संदेश और शिक्षा
- श्राद्ध कर्म केवल दिखावे के लिए नहीं, श्रद्धा और निष्ठा से करना चाहिए।
- धन से अधिक भाव का महत्व है। पितर भाव से प्रसन्न होते हैं।
- अहंकार पतन का कारण है, जबकि दया, सेवा और श्रद्धा उन्नति का कारण।
- श्राद्ध के समय सात्त्विकता, संयम और कर्तव्य-भाव का पालन करना ही वास्तविक धर्म है।
निष्कर्ष
यह कथा हमें बताती है कि पितरों की सेवा और स्मरण करने से न केवल हमारे पूर्वजों को शांति मिलती है, बल्कि परिवार में सुख-समृद्धि और आशीर्वाद की प्राप्ति भी होती है।