भगवान पृथु की कथा | Prituhu Story in Hindi – पृथ्वी का प्रथम राजा और धरती का समतलीकरण
🌏 भगवान पृथु और पृथ्वी की कथा
भूमिका
सनातन धर्म के ग्रंथों में भगवान पृथु को धरती का प्रथम राजा माना गया है। उनके नाम से ही आज यह धरती “पृथ्वी” कहलाती है। पृथु के समय की यह कथा न केवल उनके पराक्रम और धर्मनिष्ठा को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे उन्होंने संसार में व्यवस्था स्थापित की।
कथा विस्तार
1. भूख और अन्नहीन धरती
जब पृथु का राज्याभिषेक हुआ, उस समय संपूर्ण पृथ्वी पर अन्न का अभाव था।
- प्रजा भूख से तड़प रही थी।
- औषधियाँ और अन्न धरती के गर्भ में समा गए थे।
भगवान पृथु को जब यह ज्ञात हुआ कि पृथ्वी ने अन्न और औषधियाँ छिपा ली हैं, तो उन्होंने धनुष-बाण उठाया और धरती की ओर बढ़े।
2. धरती का गौ-रूप और प्रार्थना
पृथु के क्रोध से भयभीत धरती गाय का रूप धारण कर उनकी शरण में पहुँची।
- धरती ने कहा –“हे भगवान! दुष्ट लोगों ने ब्रह्मा जी द्वारा दिए अन्न और औषधियों का नाश कर दिया। राजा मेरा सम्मान नहीं करते, इस कारण मैंने सबकुछ छुपा लिया। यदि आप अन्न और औषधियाँ चाहते हैं, तो पहले मुझे योग्य बनाइए। मुझे समतल कीजिए, ताकि वर्षा का जल संचित रह सके। मुझे योग्य बछड़ा, दोहन पात्र और दोहन करने वाला दीजिए, तब मैं प्रजा के लिए अन्न व औषधि प्रदान करुँगी।”
भगवान पृथु ने धरती को पुत्री का सम्मान देते हुए उसकी शर्त मान ली।
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भगवान पृथु की कथा | Prituhu Story in Hindi – पृथ्वी का प्रथम राजा और धरती का समतलीकरण |
3. धरती का समतलीकरण और व्यवस्थापन
भगवान पृथु ने अपने धनुष-बाण से धरती को समतल कर दिया।
- ऊँचे पर्वत काटे गए और समतल भूमि तैयार हुई।
- गाँव, नगर, राजधानियाँ और खेत बनाए गए।
- पशुओं के लिए गौशालाएँ और सैनिकों के लिए छावनियाँ स्थापित की गईं।
👉 इस प्रकार पृथु ने संपूर्ण धरती को व्यवस्थित कर दिया और उसे जीवनोपयोगी बनाया।
4. अश्वमेध यज्ञ और इंद्र का छल
पृथु ने भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए 100 अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय किया।
- 99 यज्ञ सम्पन्न हो गए।
- जब 100वाँ यज्ञ शुरू हुआ तो देवराज इंद्र ने भय से घोड़ा चुरा लिया। उन्हें आशंका थी कि कहीं पृथु उनके सिंहासन का अधिकार न ले लें।
इस घटना से दुखी होकर पृथु ने ब्रह्मा जी से मार्गदर्शन माँगा।
- ब्रह्मा जी ने कहा – “हे राजन्! भगवान यज्ञों की संख्या से नहीं, बल्कि भक्ति और प्रेम से प्रसन्न होते हैं।”
- यह सुनकर पृथु ने 100वें यज्ञ का विचार त्याग दिया।
5. भगवान विष्णु का दर्शन और वरदान
पृथु की निष्ठा और त्याग देखकर भगवान विष्णु प्रकट हुए।
- उन्होंने कहा – “पृथु! वर मांगो।”
- पृथु ने कहा –
- “मुझे सहस्र कान दीजिए ताकि मैं केवल आपके नाम का ही श्रवण कर सकूँ।”
- “मुझे बैकुंठ धाम में आपके चरणों की सेवा करने का अवसर मिले।”
भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर वरदान दिया –
- “मैं तुम्हें दस सहस्र कानों की शक्ति देता हूँ।”
- “तुम बैकुंठ धाम में मेरे सेवक रूप में निवास करोगे।”
महत्व और संदेश
- भगवान पृथु ने धरती को व्यवस्थित कर प्रजा का जीवन सुरक्षित किया।
- इस कथा से पता चलता है कि राजा का कर्तव्य प्रजा की भलाई करना है।
- ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए भक्ति और प्रेम ही पर्याप्त है, न कि केवल यज्ञ या बाहरी अनुष्ठान।
- पृथु के नाम पर ही आज धरती को “पृथ्वी” कहा जाता है।
निष्कर्ष
🌺🙏 जय भगवान विष्णु 🙏🌺
✅ FAQs (Frequently Asked Questions)
Q1. भगवान पृथु कौन थे?
👉 भगवान पृथु एक चक्रवर्ती सम्राट और विष्णु के अवतार माने जाते हैं। उन्हें धरती का प्रथम राजा कहा जाता है।
Q2. पृथ्वी को “पृथ्वी” नाम कैसे मिला?
👉 जब भगवान पृथु ने धरती को समतल करके जीवन योग्य बनाया, तभी उनके नाम पर इसे “पृथ्वी” कहा जाने लगा।
Q3. भगवान पृथु ने धरती को समतल क्यों किया?
👉 उस समय धरती ने अन्न और औषधि छिपा लिए थे और प्रजा भूखी थी। भगवान पृथु ने धनुष-बाण से धरती को समतल किया ताकि खेती और जीवन व्यवस्थित हो सके।
Q4. अश्वमेध यज्ञ में इंद्र ने घोड़ा क्यों चुराया?
👉 इंद्र को भय था कि अगर पृथु 100 अश्वमेध यज्ञ पूर्ण कर लेंगे तो उनका सिंहासन छिन जाएगा। इसलिए उन्होंने 100वें यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया।
Q5. भगवान विष्णु ने पृथु को क्या वरदान दिया?
👉 भगवान विष्णु ने उन्हें 10 सहस्त्र कानों की शक्ति दी ताकि वे केवल भगवन्नाम सुन सकें और बैकुंठ धाम में चरण सेवा का आशीर्वाद दिया।
Q6. भगवान पृथु से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
👉 यह कि राजा को सदैव प्रजा की भलाई करनी चाहिए। ईश्वर भक्ति और प्रेम से प्रसन्न होते हैं, केवल अनुष्ठान से नहीं।