Ramcharitmanas: राम भगति मनि उर बस जाकें। दुःख लवलेस न सपनेहुँ ताकें॥

Sooraj Krishna Shastri
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Ramcharitmanas: राम भगति मनि उर बस जाकें। दुःख लवलेस न सपनेहुँ ताकें ॥


✨ तुलसी की चौपाई

राम भगति मनि उर बस जाकें ।
दुःख लवलेस न सपनेहुँ ताकें ॥

चतुर सिरोमनि तेइ जग माहीं ।
जे मनि लागि सुजतन कराहीं ॥

👉 तुलसीदास जी कहते हैं –
जिस साधक के हृदय में रामभक्ति रूपी मणि बस जाती है, उसे स्वप्न में भी दुःख नहीं होता।
और संसार में सबसे बुद्धिमान वही है जो उस अमूल्य मणि को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहता है।


✨प्रेरक कथा : दो साधुओं की झोंपड़ी

दो साधु गाँव की सीमा पर एक झोंपड़ी में रहते थे।

  • दिनभर भिक्षा मांगते,
  • मंदिर में पूजा करते,
  • और सादगी से जीवन व्यतीत करते।

एक दिन गाँव में भयंकर आँधी-तूफान आया।
शाम को जब दोनों लौटे, तो देखा कि झोंपड़ी आधी टूट चुकी है।

साधु १ (क्रोधित भाव से)

उसने झोंपड़ी देखकर भगवान को दोष दिया –

“हे प्रभु! मैं दिनभर तेरा नाम लेता हूँ, तेरी पूजा करता हूँ।
फिर भी तूने मेरी झोंपड़ी तोड़ दी,
जबकि गाँव के झूठे-लुटेरे लोगों के मकान सुरक्षित हैं!”

साधु २ (आनन्दित भाव से)

वह प्रसन्न होकर झूम उठा –

“प्रभु! आज तेरा प्रेम स्पष्ट दिखा।
इतने प्रचण्ड तूफान में पूरी झोंपड़ी उड़ जानी चाहिए थी।
परंतु तूने आधी झोंपड़ी बचा ली,
यही मेरे लिए तेरा आशीर्वाद है।”

👉 यह कथा स्पष्ट करती है कि भक्त का दृष्टिकोण ही उसके सुख-दुःख का निर्धारक है।

Ramcharitmanas: राम भगति मनि उर बस जाकें। दुःख लवलेस न सपनेहुँ ताकें॥
Ramcharitmanas: राम भगति मनि उर बस जाकें। दुःख लवलेस न सपनेहुँ ताकें॥


✨गीता का उपदेश : कर्म और भक्ति

१. कर्मफल समर्पण

ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः ।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ॥ (गीता ५.१०)

👉 जो अपने कर्मों के फल ईश्वर को अर्पित कर निरासक्ति भाव से कर्म करता है,
वह पाप से अछूता रहता है जैसे जल से कमल का पत्ता।


२. स्थितप्रज्ञ की स्थिति

दुःखेष्वनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह: ।
वीतरागभयक्रोध: स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥ (गीता २.५६)

👉 जो दुःख में विचलित नहीं होता, सुख में आसक्त नहीं होता,
और राग-भय-क्रोध से रहित है – वही सच्चा स्थितप्रज्ञ मुनि है।


३. शांति का मार्ग

युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् ।
अयुक्त: कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ॥ (गीता ५.१२)

👉 कर्मयोगी अपने कर्मफल त्यागकर परम शांति पाता है।
परंतु जो कामनाओं के कारण फलों में आसक्त रहता है,
वह बंधन में फँसता है।


४. जीवन का मोह और पुनर्जन्म

मनुष्य जीवनभर नौकरी, धन, परिवार और बच्चों में उलझा रहता है।
यहाँ तक कि अंतिम समय में भी यदि उसका ध्यान केवल
बच्चों या सांसारिक वस्तुओं पर है,
तो वही अगले जन्म का कारण बनता है।

👉 संसार वस्तुतः “कर्ज़ों का व्यापार” है।
हम पुराने कर्ज़ चुकाते और नए कर्ज़ बनाते रहते हैं।
यही जन्म-मरण का चक्र है।
मुक्ति तभी संभव है जब साधक यह अनुभव करे –

“मैं शरीर नहीं, शुद्ध चेतना हूँ।
मैं अनादि और अनन्त आत्मा हूँ।”


५. समता का उपदेश

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥ (गीता २.३८)

👉 भगवान अर्जुन से कहते हैं –
सुख-दुःख, लाभ-हानि, विजय-पराजय में समभाव रखो।
कर्तव्य करते रहो।
इससे पाप का स्पर्श भी नहीं होगा।


✨निष्कर्ष

  1. रामभक्ति रूपी मणि ही वह खजाना है,
    जो साधक को दुःख से मुक्त कर आनंद प्रदान करता है।

  2. सच्चा भक्त और कर्मयोगी वही है जो अपने हर कर्मफल
    ईश्वर को समर्पित कर समभाव में रहता है।

  3. संसार का चक्र केवल ऋण-लेन-देन है।
    मुक्ति तभी है जब साधक आत्मस्वरूप का अनुभव करे –

“मैं शुद्ध चैतन्य आत्मा हूँ,
नश्वर शरीर नहीं।”


🌹 जय श्रीराम 🌹
🌹 हरि स्मरण ही जीवन का परम ध्येय है। 🌹



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