ऋतु (भौम) और रेतस् (शुक्र) Relation in Ayurveda and Astrology | Santan Utpatti Secrets
१. परिभाषा
- ऋतु (भौम) : स्त्री का ऋतुकाल अथवा गर्भधारण योग्य समय। इसे भौम इसलिए कहा गया है क्योंकि गर्भ का आधार पृथ्वी-तत्व है और प्रजनन शक्ति का सक्रिय होना उसी से जुड़ा है।
- रेतस् (शुक्र) : पुरुष का बीज अथवा शुक्राणु, जो संतानोत्पत्ति का कारण है।
२. संयुक्त संबंध
- जब ऋतु (स्त्री का ऋतु काल) और रेतस् (पुरुष का शुक्र) का सही समय पर, उचित सामंजस्य में संयोग होता है, तभी संतान की उत्पत्ति सुनिश्चित होती है।
- यह संयोग यदि बाधित हो, तो गर्भाधान संभव नहीं होता।
३. वन्ध्यता का कारण
- यदि ऋतु और रेतस् का कोई संबंध न बने (अर्थात् समय का असंयोजन, शुक्र की दुर्बलता, या स्त्री के ऋतुचक्र की गड़बड़ी) तो जातक वन्ध्य (संतानहीन) होता है।
- शास्त्र में स्पष्ट है कि केवल किसी एक पक्ष (केवल ऋतु या केवल शुक्र) की सामर्थ्य पर्याप्त नहीं है, दोनों का संतुलित और उचित समय पर संयोग आवश्यक है।
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ऋतु (भौम) और रेतस् (शुक्र) Relation in Ayurveda and Astrology | Santan Utpatti Secrets |
४. शास्त्रीय आधार
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चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में भी कहा गया है कि—
ऋतु, क्षेत्र, अम्बु और बीज – ये चार तत्व जब शुद्ध और परस्पर सम्बद्ध हों तभी गर्भधारण संभव है।
- ऋतु = स्त्री का मासिक धर्म काल
- क्षेत्र = गर्भाशय
- अम्बु = रस (आहार-रस, पोषण तत्व)
- बीज = शुक्र एवं अण्डाणु
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बृहत्पाराशर होरा शास्त्र और अन्य ज्योतिषीय ग्रंथों में भी बताया गया है कि पंचम भाव और शुक्र-चन्द्रमा की स्थिति से संतान की संभावना का आकलन होता है।
🌺 ऋतु (भौम) और रेतस् (शुक्र) का सम्बन्ध : तुलनात्मक विवेचन 🌺
दृष्टिकोण | मुख्य तत्व | विवरण | संतानोत्पत्ति में भूमिका |
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आयुर्वेद दृष्टि | ऋतु | स्त्री का ऋतुकाल (मासिक चक्र का 12वाँ से 16वाँ दिन उपयुक्त) | इस समय गर्भाशय और अण्डाणु गर्भधारण योग्य होते हैं |
रेतस् | पुरुष का शुक्र (शुक्राणु), जो बीज तत्व है | अण्डाणु के साथ मिलकर भ्रूण निर्माण करता है | |
क्षेत्र | स्त्री का गर्भाशय | गर्भधारण का स्थान | |
अम्बु | आहार रस, पोषण तत्व | भ्रूण को पोषण प्रदान करता है | |
ज्योतिष दृष्टि | भौम (ऋतु) | पंचम भाव, चन्द्रमा और स्त्री की ग्रह स्थिति | संतानोत्पत्ति की संभावना दर्शाते हैं |
शुक्र (रेतस्) | पुरुष जातक में शुक्र ग्रह एवं उसकी शक्ति | यदि बलवान हो तो संतानोत्पत्ति का कारक | |
गुरु | स्त्री के लिए संतान कारक ग्रह | पंचम भाव में शुभ स्थिति से पुत्र योग | |
अशुभ ग्रह | शनि, राहु, केतु, मंगल आदि | पंचम भाव या शुक्र/गुरु को पीड़ित करके वंध्यता या संतान हानि का कारण बनते हैं |
🌿 निष्कर्ष
- आयुर्वेद कहता है – संतानोत्पत्ति के लिए ऋतु, क्षेत्र, अम्बु, बीज का शुद्ध एवं परस्पर सामंजस्य होना आवश्यक है।
- ज्योतिष कहता है – पंचम भाव, शुक्र, चन्द्रमा और गुरु यदि शुभ हों और अशुभ ग्रहों से पीड़ित न हों, तो संतान सुख निश्चित है।
👉 संतानोत्पत्ति के लिए केवल एक पक्ष की सक्रियता पर्याप्त नहीं।
- स्त्री का शुद्ध ऋतु काल (भौम) और पुरुष का शक्तिशाली शुक्र (रेतस्) यदि उचित समय पर संबंध स्थापित करें, तो ही संतान का जन्म सुनिश्चित होता है।
- अन्यथा, या तो गर्भधारण नहीं होता, अथवा गर्भपात अथवा संतान हानि होती है।
👉 दोनों दृष्टियाँ इस बात पर सहमत हैं कि ऋतु (भौम) और रेतस् (शुक्र) का सही संबंध ही संतानोत्पत्ति का मुख्य आधार है।