सन्तान मृत्यु के कारण in Astrology | Santan Mrityu Jyotish Shastra Analysis

Sooraj Krishna Shastri
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सन्तान मृत्यु के कारण in Astrology | Santan Mrityu Jyotish Shastra Analysis

परिचय

ज्योतिषशास्त्र में सन्तान भाव (पंचम स्थान) को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना गया है। यदि पंचम भाव अथवा पंचमेश (उसका स्वामी) पीड़ित हो, अथवा पंचम से अष्टम भाव (व्ययभाव) में पापग्रह स्थित हों, तो संतान की सुख-समृद्धि बाधित होती है। अनेक शास्त्रों में यह संकेत मिलता है कि ऐसे योग संतान की मृत्यु अथवा गंभीर रोग का कारण बन सकते हैं।


✨ १. सूर्य के कारण संतान पीड़ा

श्लोक

पुत्र स्थानादष्टमस्थे सूर्य पीड़ा ज्वराद्भवेत्।

व्याख्या
यदि पंचम भाव से अष्टम स्थान (अर्थात् व्ययभाव) में सूर्य स्थित हो, तो संतान को ज्वर से पीड़ा होती है।

  • सूर्य पित्त और ज्वर का कारक है।
  • उसका अशुभ स्थान में होना संतान को उच्च ताप, बुखार एवं पित्तज विकार से ग्रसित करता है।

✨ २. चन्द्रमा के कारण पीड़ा

श्लोक

चन्द्रे च जल शीताभ्यां…

व्याख्या
यदि चन्द्रमा पंचम से अष्टम स्थान में हो, तो संतान को जल एवं शीत से पीड़ा होती है।

  • जैसे – जलजन्य रोग, निमोनिया, शीतल ज्वर, या जल में डूबने का संकट।
  • चन्द्रमा जलतत्त्व का कारक है, अतः उसका व्ययभाव में होना संतान को इस प्रकार के कष्ट देता है।
सन्तान मृत्यु के कारण in Astrology | Santan Mrityu Jyotish Shastra Analysis
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✨ ३. मंगल के कारण पीड़ा

श्लोक

… शस्त्रेण क्षितिनन्दने।।

व्याख्या
यदि मंगल पंचम से अष्टम स्थान में स्थित हो, तो संतान को शस्त्र अथवा घाव के कारण कष्ट होता है।

  • मंगल रक्त, अग्नि और शस्त्र का कारक है।
  • ऐसे योग में संतान हिंसक दुर्घटनाओं, रक्तस्राव, अथवा शल्य-चिकित्सा से पीड़ित हो सकती है।

✨ ४. बुध के कारण पीड़ा

श्लोक

बुधे च शीतला दोषात्…

व्याख्या
यदि बुध पंचम से अष्टम स्थान में स्थित हो, तो संतान को शीतला रोग (चेचक आदि) का कष्ट होता है।

  • बुध त्वचा और संक्रमण से जुड़ा ग्रह है।
  • अतः यह संक्रामक रोगों का कारक बनता है।

✨ ५. गुरु के कारण पीड़ा

श्लोक

… गुरौ च विषसर्पतः।।

व्याख्या
यदि गुरु पंचम से अष्टम स्थान में हो, तो संतान को विष अथवा सर्पदंश से पीड़ा होती है।

  • गुरु सामान्यतः शुभ है, किन्तु व्ययभाव में होने पर यह विषप्रभावी रोग का कारण बनता है।

✨ ६. शुक्र के कारण पीड़ा

श्लोक

पश्वादिभिः दैत्य पूज्ये।।

व्याख्या
यदि शुक्र पंचम से अष्टम स्थान में हो, तो संतान को शनि अथवा शस्त्रधारी जनों से पीड़ा होती है।

  • शुक्र भोग और शारीरिक भोग-विलास का कारक है।
  • अशुभ स्थिति में यह असुर एवं हिंसक कारणों से संतान की हानि दर्शाता है।

✨ ७. शनि के कारण पीड़ा

श्लोक

शनौ बालग्रहैर्मृतिः।।

व्याख्या
यदि शनि पंचम से अष्टम स्थान में हो, तो संतान बालग्रह (बालक रोग, अपस्मार आदि) से मृत्यु को प्राप्त होती है।

  • शनि दीर्घ रोग और कष्ट का द्योतक है।

✨ ८. राहु एवं केतु के कारण पीड़ा

श्लोक

राही वृक्षादिभिः, केतौ विकारैः पीडनं भवेत्।।

व्याख्या

  • राहु पंचम से अष्टम स्थान में हो तो संतान को वृक्ष-पतन, विषाक्त फल, या वृक्ष-संबंधी दुर्घटनाओं से पीड़ा होती है।
  • केतु पंचम से अष्टम स्थान में हो तो संतान को मानसिक विकार, असाध्य रोग अथवा अदृश्य पीड़ा होती है।

✨ ९. पंचम भाव में ग्रह होने पर पीड़ा

(क) सूर्य पंचम भाव में

सूर्यः पित्तरुजा ज्वरेण गरले नैवात्मजस्थो यदा मर्त्यानां विनिहन्ति गर्भपतनाद्यर्वा तदा सन्ततिम् । मन्दोऽगुःकृमिणाऽनिलेन दुपदा काष्ठं न नीरेण वा, शैलेयेन कुजो व्रणेन यदि वा शस्त्रेण रक्तातिना ।।

  • संतान को पित्तज रोग, ज्वर, विष, गर्भपात आदि कष्टों से मृत्यु होती है।

(ख) शनि अथवा राहु पंचम भाव में

  • कृमि रोग, वायु विकार, पत्थर, काष्ठ या जल संबंधी पीड़ा से मृत्यु हो सकती है।

(ग) मंगल पंचम भाव में

  • संतान को व्रण, शस्त्र अथवा रक्तस्राव से मृत्यु होती है।

🌿 निष्कर्ष

ज्योतिष शास्त्र में पंचम भाव और उसके अष्टम भाव में ग्रहों की स्थिति संतान के जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है।

  • सूर्य और मंगल – ज्वर, रक्त और शस्त्र पीड़ा।
  • चन्द्रमा – जल एवं शीत से पीड़ा।
  • बुध – संक्रामक रोग (शीतला)।
  • गुरु – विष व सर्पदंश।
  • शुक्र – शस्त्र अथवा असुरजन्य पीड़ा।
  • शनि – दीर्घ रोग व बालग्रह।
  • राहु-केतु – वृक्ष, विकार एवं मानसिक रोग।

अतः ज्योतिषाचार्य इन दोषों की शांति हेतु संस्कार, यज्ञ, दान, ग्रहशांति एवं विशेष मन्त्र-पूजन का विधान बताते हैं, जिससे संतान पर आने वाले संकट को टाला जा सके।

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