शनिदेव और भक्तराज हनुमानजी की अद्भुत कथा(Shani Dev aur Bhakt Hanuman ki Pauraanik Katha)

Sooraj Krishna Shastri
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प्रस्तुत लेख में शनिदेव और हनुमानजी की कथा का अत्यन्त रोचक और प्रभावशाली रूप प्रस्तुत किया है। 


🌑 शनिदेव और भक्तराज हनुमानजी की अद्भुत कथा(Shani Dev aur Bhakt Hanuman ki Pauraanik Katha)


🪐 १. भूमिका

शास्त्रों में शनिदेव को न्याय का देवता माना गया है। वे कर्मानुसार दण्ड और पुरस्कार देने वाले ग्रहाधिपति हैं। दूसरी ओर, भगवान हनुमानजी अजर-अमर, दुष्टों के दमनकर्ता और भक्तों के संकटहरण करने वाले माने जाते हैं।
यह कथा इस सत्य का प्रतिपादन करती है कि भक्ति, विनम्रता और पराक्रम से अहंकारी शक्तियों को भी वश में किया जा सकता है।


🚩 २. हनुमानजी का ध्यान

एक समय की बात है।
भक्तवर हनुमानजी रामसेतु के समीप अपने आराध्य प्रभु श्रीराम के मोहिनी रूप का ध्यान कर रहे थे।
वे ध्यानमग्न होकर इस प्रकार लीन थे कि उन्हें बाह्य संसार की कोई स्मृति नहीं थी।

शनिदेव और भक्तराज हनुमानजी की अद्भुत कथा(Shani Dev aur Bhakt Hanuman ki Pauraanik Katha)
शनिदेव और भक्तराज हनुमानजी की अद्भुत कथा(Shani Dev aur Bhakt Hanuman ki Pauraanik Katha)



🌑 ३. शनिदेव का प्रवेश और अहंकार

उसी समय सूर्यपुत्र शनिदेव समुद्र तट पर टहल रहे थे।
उन्हें अपने पराक्रम और शक्ति का अत्यधिक गर्व था। वे मन ही मन सोचने लगे—

"इस सृष्टि में मेरी समता करने वाला कोई नहीं है। सभी मेरे नाम मात्र से काँप उठते हैं।"

अहंकारवश शनिदेव की दृष्टि ध्यानरत वज्रांगबली पर पड़ी और उन्होंने सोचा—
"मैं इस वानर को अवश्य पराजित कर उसकी शक्ति की परीक्षा लूँगा।"


🔥 ४. युद्ध का आमंत्रण

शनिदेव हनुमानजी के समीप पहुँचे। उस समय उनका रूप भीषण और काला हो रहा था।
उन्होंने कर्कश स्वर में कहा—

"अरे बन्दर! मैं शक्तिशाली शनि हूँ। तेरे सम्मुख युद्ध हेतु उपस्थित हूँ। अब उठ और सामना कर।"

हनुमानजी ने शान्त स्वर में पूछा—
"महाराज! आप कौन हैं और यहाँ किस उद्देश्य से पधारे हैं?"

शनि ने गर्वपूर्वक कहा—
"मैं सूर्यपुत्र शनि हूँ। जगत मेरा नाम सुनते ही काँप उठता है। तेरी शक्ति की चर्चा मैंने सुनी है। अतः आज मैं तुझसे युद्ध करना चाहता हूँ।"


🙏 ५. हनुमानजी की विनम्र प्रार्थना

हनुमानजी ने अत्यन्त नम्रता से उत्तर दिया—
"शनिदेव! मैं वृद्ध हो चुका हूँ और अपने प्रभु श्रीराम का ध्यान कर रहा हूँ। कृपया मेरे भजन-ध्यान में विघ्न मत डालिए और किसी अन्य वीर को खोज लीजिए।"

किन्तु शनिदेव ने अहंकारपूर्वक कहा—
"मैं लौटना नहीं जानता। जहाँ जाता हूँ, अपना प्रभाव स्थापित करता हूँ। कायरता तुझे शोभा नहीं देती।"


⚔️ ६. संघर्ष की शुरुआत

बार-बार निवेदन के बाद भी शनिदेव न माने।
उन्होंने हनुमानजी का हाथ पकड़ लिया और युद्ध हेतु खींचने लगे।

हनुमानजी ने कहा—
"आप नहीं मानते, तो अब परिणाम भुगतना होगा।"

तत्क्षण उन्होंने अपनी बलशाली पूँछ बढ़ाकर शनिदेव को कसकर उसमें लपेट लिया।
क्षणभर में शनिदेव पूँछ के बन्धन में जकड़ गये और असहाय होकर छटपटाने लगे।


🪨 ७. रामसेतु की परिक्रमा और शनिदेव की पीड़ा

हनुमानजी ने कहा—
"अब रामसेतु की परिक्रमा का समय है।"

वे शनिदेव को पूँछ में बाँधकर दौड़ पड़े।
उनकी विशाल पूँछ शिलाखण्डों से टकराती रही और शनिदेव का शरीर लहूलुहान हो गया।

हनुमानजी जानबूझकर पूँछ को शिलाओं पर पटकते, जिससे शनिदेव की पीड़ा असहनीय हो उठी।
उनका गर्व और अहंकार पलभर में चूर-चूर हो गया।


🙇 ८. शनिदेव की शरणागति

पीड़ा से व्याकुल शनिदेव ने करुण स्वर में प्रार्थना की—
"करुणामय हनुमान! अब मुझे क्षमा कीजिए। मैंने अपनी उद्दण्डता का दण्ड पा लिया है। कृपा करके मुझे मुक्त कर दीजिए।"

हनुमानजी ने शर्त रखी—
"यदि तुम मेरे भक्त की राशि पर कभी न जाओगे तो मैं तुम्हें मुक्त कर दूँगा।"

अत्यन्त पीड़ा में शनिदेव बोले—
"हे पवनपुत्र! मैं वचन देता हूँ कि आपके भक्त की राशि पर कभी नहीं जाऊँगा।"


🛕 ९. हनुमानजी का आशीर्वाद और तेल का प्रसंग

हनुमानजी ने शनिदेव को मुक्त किया।
शनि प्रणाम करके बोले—
"हे वीरवर! मेरे शरीर पर असह्य पीड़ा है। कृपया मुझे तेल प्रदान कीजिए जिससे मुझे राहत मिले।"

तब से मान्यता है कि जो भी शनिदेव को तेल अर्पित करता है, उन्हें शनिदेव प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।
इसी कारण आज भी शनि अमावस्या एवं शनिवार को शनिदेव को तिल का तेल चढ़ाया जाता है।


🌈 १०. निष्कर्ष

यह कथा हमें सिखाती है कि—

  • अहंकार का पतन निश्चित है।
  • भक्ति और विनम्रता से असुरमयी शक्तियाँ भी वश में हो जाती हैं।
  • हनुमानजी का स्मरण करने वाले भक्त पर शनिदेव कभी भी विपत्ति नहीं डालते।

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