Stri Jatak Yog in Astrology | स्त्री जातक के महत्त्वपूर्ण योग, विवाह, विधवा, तलाक और संतान योग
"जानिए Stri Jatak Yog in Astrology – स्त्री जातक की कुंडली से विवाह योग, विधवा योग, तलाक योग, पति से सम्बंधित योग, सुख-दुख, बंध्यापन और संतान योग कैसे देखे जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में सप्तम भाव, अष्टम भाव और चन्द्रमा की स्थिति स्त्री के जीवन, वैवाहिक सुख, पति और परिवार के भविष्य का संकेत देती है। इस लेख में सभी योगों को विस्तार से सरल भाषा और तालिकाओं के साथ समझाया गया है।"
स्त्री जातक सम्बंधित महत्त्वपूर्ण योग
ज्योतिष शास्त्र में पुरुष और स्त्री दोनों की कुंडली को समान महत्त्व दिया गया है।
विशेष रूप से स्त्री जातक के योगों का विश्लेषण न केवल उसके स्वयं के जीवन, बल्कि उसके पति एवं परिवार के सुख-दुख से भी गहराई से जुड़ा होता है।
सप्तम भाव (पति का भाव) एवं चन्द्रमा (मन का सूचक) स्त्री जातक के विश्लेषण में अत्यंत महत्त्वपूर्ण माने गए हैं।
🔹 1. स्त्री जातक में सामान्य योग
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लग्न एवं चन्द्रमा अग्नि और वायु राशियों (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, कुम्भ) में हो
- स्त्री में पुरुषोचित गुण आते हैं।
- बलवान देह, कठोरता, क्रूरता, अहंकार एवं क्रोध अधिक होता है।
- चरित्र की दृष्टि से सामान्यतः प्रशंसा योग्य नहीं मानी जाती।
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लग्न एवं चन्द्रमा जल एवं पृथ्वी राशियों (वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर, मीन) में हो
- स्त्रियोचित गुण प्रबल होते हैं।
- रूपवान, लज्जाशील, पति के प्रति निष्ठावान एवं कुल-मर्यादा पालन करने वाली होती है।
🔹 2. विवाह से सम्बंधित योग
- सप्तम भाव में शनि एवं उस पर पापग्रहों की दृष्टि → विवाह न होना।
- सप्तम भाव का स्वामी शनि से युत या शनि से दृष्ट → विलम्ब से विवाह।
🔹 3. विधवा योग
सप्तम भाव में मंगल + पापग्रह दृष्टि → विधवा योग।
- ऐसी स्त्रियों का विवाह देर से करने पर दोष कम होता है।
- आयु भाव या चन्द्र से सप्तम/अष्टम भाव में पापग्रह → विधवा योग।
- अष्टम/द्वादश भाव में मेष या वृश्चिक राशि + राहु + पापग्रह → विधवा योग।
- लग्न और सप्तम दोनों में पापग्रह → विधवा योग।
- चन्द्र से सप्तम, अष्टम, द्वादश में शनि/मंगल + पापग्रह दृष्टि → विधवा योग।
- नीच या क्षीण चन्द्रमा षष्ठ/अष्टम भाव में → विधवा योग।
- षष्ठ व अष्टम भाव का स्वामी परस्पर स्थानांतरण एवं पापग्रह दृष्टि → विधवा योग।
- सप्तमेश अष्टम में, अष्टमेश सप्तम में, तथा उन पर पापग्रह दृष्टि → विधवा योग।
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Stri Jatak Yog in Astrology | स्त्री जातक के महत्त्वपूर्ण योग, विवाह, विधवा, तलाक और संतान योग |
🔹 4. तलाक योग
- सप्तम भाव में सूर्य का स्थित होना → वैवाहिक जीवन में असफलता, तलाक की संभावना।
- सप्तम भाव में निर्बल ग्रह एवं उन पर शुभग्रह → प्रथम विवाह असफल, पुनर्विवाह संभव।
- सप्तम भाव में शुभ एवं पापग्रह दोनों → पुनर्विवाह की संभावना।
🔹 5. पति से सम्बंधित योग
- लग्न में मेष, कर्क, तुला, मकर राशि → पति परदेशी या भ्रमणशील।
- सप्तम भाव में बुध + शनि → पति में पुरुषत्व का अभाव।
- सप्तम भाव रिक्त एवं दृष्टिहीन → पति नीच प्रवृत्ति का होता है।
🔹 6. सुख योग
- लग्न में बुध + शुक्र → कला-प्रिय, सुंदर, बुद्धिमान, पति-प्रिय।
- लग्न में बुध + चन्द्र → गुणवान, चतुर, सौभाग्यशालिनी।
- लग्न में चन्द्र + शुक्र → रूपवती, सुखी, परंतु ईर्ष्यालु।
- केंद्र भाव बलवान अथवा लग्न वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर, मीन + चन्द्र, गुरु, बुध उच्च → समाजपूज्या।
- सप्तम भाव में शुभग्रह → गुणवती, पति-प्रिय, सौभाग्यशालिनी।
🔹 7. बंध्यापन (निसंतानता) के योग
- सूर्य + शनि अष्टम भाव में → निसंतान।
- अष्टम भाव में बुध → एक संतान के बाद संतानोत्पत्ति रुक जाती है।
🔹 8. संतति योग
- सप्तम भाव में चन्द्र या बुध → कन्याएँ अधिक।
- सप्तम भाव में राहु → अधिकतम 2 कन्याएँ, पुत्र प्राप्ति में बाधा।
- नवम भाव में शुक्र → कन्या प्राप्ति का योग।
- सप्तम भाव में मंगल + शनि दृष्टि या युति → गर्भपात की संभावना।
स्त्री जातक सम्बंधित महत्त्वपूर्ण योग(तालिका रूप में)
🔹 1. सामान्य योग (General Traits)
स्थिति | फल (परिणाम) |
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लग्न/चन्द्रमा – मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, कुम्भ | पुरुषोचित गुण, बलवान देह, कठोरता, अहंकार, क्रोध, चरित्र की दृष्टि से कम प्रशंसनीय |
लग्न/चन्द्रमा – वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर, मीन | स्त्रियोचित गुण, सुंदरता, लज्जा, पति-निष्ठा, कुल-मर्यादा पालन |
🔹 2. विवाह से सम्बंधित योग
स्थिति |
फल (परिणाम) |
सप्तम भाव में शनि + पापग्रह दृष्टि |
विवाह नहीं होता |
सप्तमेश शनि से युत/दृष्ट |
विलम्ब से विवाह |
🔹 3. विधवा योग
स्थिति |
फल (परिणाम) |
सप्तम भाव में मंगल + पापग्रह दृष्टि |
विधवा योग, देर से विवाह करने पर दोष कम |
आयु भाव या चन्द्र से 7/8 भाव में पापग्रह |
विधवा योग |
अष्टम/द्वादश भाव में मेष/वृश्चिक + राहु + पापग्रह |
विधवा योग |
लग्न व सप्तम दोनों में पापग्रह |
विधवा योग |
चन्द्र से 7/8/12 में शनि/मंगल + पापग्रह दृष्टि |
विधवा योग |
षष्ठ/अष्टम में नीच या क्षीण चन्द्र |
विधवा योग |
षष्ठेश–अष्टमेश परस्पर स्थानांतरण + पापग्रह दृष्टि |
विधवा योग |
सप्तमेश अष्टम में, अष्टमेश सप्तम में + पापग्रह दृष्टि |
विधवा योग |
🔹 4. तलाक योग
स्थिति |
फल (परिणाम) |
सप्तम भाव में सूर्य |
तलाक की संभावना |
सप्तम भाव में निर्बल ग्रह + शुभग्रह दृष्टि |
प्रथम विवाह असफल, पुनर्विवाह संभव |
सप्तम भाव में शुभग्रह + पापग्रह दोनों |
पुनर्विवाह योग |
🔹 5. पति से सम्बंधित योग
स्थिति |
फल (परिणाम) |
लग्न – मेष, कर्क, तुला, मकर |
पति परदेशी, भ्रमणशील |
सप्तम भाव में बुध + शनि |
पति पुरुषत्वहीन |
सप्तम भाव रिक्त एवं दृष्टिहीन |
पति नीच प्रवृत्ति का |
🔹 6. सुख योग
स्थिति |
फल (परिणाम) |
लग्न में बुध + शुक्र |
कला-प्रिय, सुंदर, बुद्धिमान, पति-प्रिय |
लग्न में बुध + चन्द्र |
गुणवान, चतुर, सौभाग्यशालिनी |
लग्न में चन्द्र + शुक्र |
रूपवती, सुखी, परंतु ईर्ष्यालु |
केंद्र बलवान या लग्न शुभ राशियों में + गुरु/चन्द्र/बुध उच्च |
समाजपूज्या स्त्री |
सप्तम भाव में शुभग्रह |
गुणवती, पति-प्रिय, सौभाग्यशालिनी |
🔹 7. बंध्यापन (निसंतानता) के योग
स्थिति |
फल (परिणाम) |
अष्टम भाव में सूर्य + शनि |
निसंतान |
अष्टम भाव में बुध |
एक संतान के बाद संतानोत्पत्ति रुक जाती है |
🔹 8. संतति योग
स्थिति |
फल (परिणाम) |
सप्तम भाव में चन्द्र या बुध |
कन्याएँ अधिक |
सप्तम भाव में राहु |
अधिकतम 2 पुत्रियाँ, पुत्र प्राप्ति में बाधा |
नवम भाव में शुक्र |
कन्या प्राप्ति का योग |
सप्तम भाव में मंगल + शनि दृष्टि/युति |
गर्भपात की संभावना |
🌸 निष्कर्ष
स्त्री जातक में सप्तम भाव, अष्टम भाव, चन्द्रमा एवं शुक्र की स्थिति अत्यंत निर्णायक होती है। पति, वैवाहिक सुख, विधवा या तलाक योग, संतान सुख एवं जीवन की संपूर्णता इन्हीं आधारों पर देखी जाती है।
ज्योतिष शास्त्र का उद्देश्य केवल भय दिखाना नहीं है, बल्कि उचित समय, उपाय और विवाह संबंधों की सावधानीपूर्वक योजना बनाना भी है।