दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है? | Why We Worship Goddess Lakshmi on Diwali | Lakshmi Ganesh Puja Story & Significance

Sooraj Krishna Shastri
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दीपावली केवल भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने का उत्सव नहीं है, बल्कि यह सतयुग और त्रेतायुग — दोनों युगों की दिव्यता का संगम है। सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी का प्राकट्य इसी दिन हुआ, इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजन होता है। त्रेतायुग में श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद इसी दिन अयोध्या लौटे, इसलिए दीपावली मनाई जाती है। इस लेख में जानिए कि दीपावली पर लक्ष्मी और गणेश जी की संयुक्त पूजा क्यों होती है, उनका आपसी संबंध क्या है, और कैसे भगवान विष्णु के योगनिद्रा काल में माता लक्ष्मी अपने पुत्रवत गणेश जी के साथ पृथ्वी पर आती हैं। दीपक का प्रकाश केवल अंधकार मिटाने का नहीं, बल्कि आत्मिक चेतना जगाने का प्रतीक है। यह लेख दीपावली के धार्मिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक रहस्यों को सरल भाषा में उजागर करता है।

दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है? | Why We Worship Goddess Lakshmi on Diwali | Lakshmi Ganesh Puja Story & Significance


🌺 दीपावली पर “लक्ष्मी पूजन” क्यों होता है?

🪔 धर्म, इतिहास और आध्यात्मिकता का समन्वित रहस्य

दशहरा समाप्त हुआ था, दीपावली का उत्सव समीप आ रहा था। एक दिन कुछ युवक-युवतियों की एक NGO टाइप टोली एक कॉलेज में आई। वे अपने आप को “सामाजिक जागरूकता समूह” बता रहे थे।
उन्होंने छात्रों से कई प्रश्न पूछे, किंतु जब एक प्रश्न सामने आया — तो पूरा कॉलेज जैसे मौन हो गया।

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❓प्रश्न था:

“जब दीपावली भगवान श्रीराम के १४ वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या लौटने की स्मृति में मनाई जाती है, तो फिर दीपावली पर ‘लक्ष्मी पूजन’ क्यों होता है?
श्रीराम की पूजा क्यों नहीं?”

यह प्रश्न सुनते ही सन्नाटा छा गया।
न सोशल मीडिया था, न स्मार्टफोन — किसी को उत्तर ज्ञात नहीं था।

तभी एक छात्र ने धीरे से हाथ उठाया। सबकी दृष्टि उसकी ओर मुड़ी। उसने शांत स्वर में उत्तर दिया—


🌕 “दीपावली दो युगों से जुड़ी है — सतयुग और त्रेतायुग से।”

  1. सतयुग मेंसमुद्र मंथन के समय माता लक्ष्मी का प्राकट्य इसी दिन हुआ था।
    अतः इस दिन “लक्ष्मी पूजन” का विधान है।
    उस दिन लक्ष्मीजी ने भगवान विष्णु को वरमाला पहनाकर अपने स्वामी के रूप में स्वीकार किया था।

  2. त्रेतायुग मेंश्रीराम वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे।
    उस दिन अयोध्यावासियों ने दीप प्रज्वलित कर उनका स्वागत किया।
    इसलिए इस पर्व का नाम पड़ा “दीपावली” — अर्थात दीपों की पंक्ति।

इस प्रकार लक्ष्मी पूजन सतयुग की स्मृति है, और दीपोत्सव त्रेतायुग की।
दो युगों की दिव्यता एक ही दिन में समाहित हो गई — इसलिए दीपावली सबसे श्रेष्ठ पर्व माना गया।


यह उत्तर सुनकर सभा में कुछ क्षणों तक मौन छाया रहा — फिर जोरदार तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी।
बाद में एक प्रतिष्ठित समाचारपत्र ने उस विद्यार्थी का साक्षात्कार भी किया — क्योंकि यह उत्तर केवल धार्मिक नहीं, दार्शनिक सत्य था।

और बताया जाता है कि वह “NGO टोली” वस्तुतः वामपंथी विचारधारा की थी, जो युवाओं के मन में संदेह बोने आई थी।
परंतु उस विद्यार्थी के एक उत्तर ने उनके सारे भ्रम मिटा दिए।


🪔 अब प्रश्न उठता है —

लक्ष्मीजी और गणेशजी का आपस में क्या संबंध है?

और दीपावली पर इन दोनों की संयुक्त पूजा क्यों की जाती है?


🌸 पुराणों के अनुसार:

जब समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी प्रकट हुईं और उन्होंने भगवान विष्णु से विवाह किया,
तब उन्हें धन, सौभाग्य, और ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री देवी बनाया गया।
उन्होंने धन वितरण का कार्य अपने भक्त कुबेर को सौंपा — जो यक्षों के राजा और धन के भंडारी थे।

परंतु कालांतर में कुबेर धन का संचय करने लगे, वितरण नहीं।
जिससे धरती पर असमानता फैलने लगी — किसी को बहुत अधिक, किसी को कुछ भी नहीं।
माता लक्ष्मी चिंतित हुईं और उन्होंने भगवान विष्णु से समाधान माँगा।


🌼 भगवान विष्णु ने कहा —

“तुम अपने मैनेजर को बदल दो।”

माता ने कहा —

“कुबेर मेरे भक्त हैं, उन्हें बुरा लगेगा।”

तब भगवान विष्णु ने सुझाव दिया —

“तुम गणेशजी की बुद्धि का उपयोग करो — वे विघ्नों को दूर करते हैं और सर्वश्रेष्ठ निर्णयकर्ता हैं।”


🌺 तब माता लक्ष्मी ने गणेशजी से कहा —

“तुम मेरे धन-वितरण के संरक्षक बनो, और जिन्हें योग्य समझो, उन्हें मेरा आशीर्वाद दो।”

गणेशजी ने मुस्कराते हुए कहा —

“माँ, मैं जिसका भी नाम लूँगा, उस पर आप कृपा करना — बिना किसी किंतु-परंतु के।”
माता ने हाँ कर दी।

तब से गणेशजी लोगों के जीवन में विघ्नों को दूर कर धन-सौभाग्य के द्वार खोलने लगे।
कुबेर केवल भंडारी बनकर रह गए, और गणेशजी कृपा के वितरक बन गए।

माता लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर गणेशजी को पुत्रवत स्नेह दिया और कहा —

“जहाँ मेरे पति विष्णु न हों, वहाँ तुम मेरे साथ पूजित होओगे।”


🌙 दीपावली और देवशयन का रहस्य

दीपावली कार्तिक अमावस्या को आती है।
उस समय भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं — वे देवउठनी एकादशी को जागते हैं।
इस अवधि में माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं — शरद पूर्णिमा से लेकर दीपावली तक।

इसी यात्रा में वे अपने पुत्रवत गणेशजी को साथ लेकर आती हैं।
इसलिए दीपावली की रात लक्ष्मी-गणेश पूजन का विधान है —
क्योंकि उस समय विष्णु तो विश्राम में होते हैं, पर लक्ष्मीजी गणेशजी के साथ लोक में आती हैं।


🕯️ आध्यात्मिक अर्थ

  • दीपक का प्रकाश अज्ञान का नाश और आत्मा का जागरण है।
  • लक्ष्मी पूजन केवल धन का नहीं, शुद्ध आचरण और सद्गुणों के समृद्धि का प्रतीक है।
  • गणेश पूजन से हमारे कार्यों से विघ्न हटते हैं और हम योग्य बनते हैं लक्ष्मी की कृपा के।
  • श्रीराम का स्मरण धर्म की विजय का प्रतीक है।

इस प्रकार दीपावली वह पर्व है जिसमें
👉 श्रीराम की मर्यादा,
👉 गणेशजी की बुद्धि,
👉 और लक्ष्मीजी की कृपा —
तीनों का सुंदर संगम होता है।


🌼 उपसंहार

यह दुःख का विषय है कि भारत के सबसे विशाल, सबसे प्राचीन और सबसे आध्यात्मिक पर्व दीपावली का विस्तृत अर्थ हमारे पाठ्यक्रमों में कहीं नहीं पढ़ाया जाता।
युवा केवल “दीप जलाने” और “पटाखे फोड़ने” को ही इसका अर्थ समझते हैं।
जबकि यह धर्म, इतिहास, ज्ञान और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम है।


🌺 अतः इस दीपावली पर —

दीप जलाइए,
मन को आलोकित कीजिए,
और इस ज्ञान को अगली पीढ़ी तक पहुँचाइए।

“यत्र लक्ष्मीः तत्र श्रीः, यत्र श्रीः तत्र मंगलम्।”
जहाँ लक्ष्मी का वास है, वहाँ सद्गुण, मंगल और प्रकाश सदा रहता है।


🪔 शुभ दीपावली! 🪔जय श्री लक्ष्मी-गणेश। जय श्रीराम।🚩


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