यह संस्कृत श्लोक सिखाता है कि मूर्खता जीवन का सबसे बड़ा दुःख है। बुद्धि, विवेक और शिक्षा ही वास्तविक संपत्ति हैं, जो मानव को सम्मान दिलाते हैं।
मूर्खता का दुख – Ajatamritamurkhana Varamadyau Na Chantimah | बुद्धिहीन संतान से बड़ी पीड़ा कोई नहीं
🕉️ 1. श्लोक
अजातमृतमूर्खाणां वरमाद्यौ न चान्तिमः।
सकृद्दुःखकरावाद्यावन्तिमस्तु पदे पदे॥
✍️ 2. English Transliteration
Ajātamṛtamūrkhāṇāṃ varam ādyau na cāntimaḥ।
Sakṛdduḥkhakarāv ādyāv antimastu pade pade॥
🌿 3. हिन्दी अनुवाद
जो संतान जन्म ही न ले, या जन्म लेकर शीघ्र मर जाए, वह तो केवल एक बार दुःख देती है;
किन्तु मूर्ख संतान जीवन के प्रत्येक चरण में दुःख और अपमान का कारण बनती है।
![]() |
मूर्खता का दुख – Ajatamritamurkhana Varamadyau Na Chantimah | बुद्धिहीन संतान से बड़ी पीड़ा कोई नहीं |
📘 4. शब्दार्थ
संस्कृत शब्द | अर्थ |
---|---|
अजात | जो उत्पन्न न हुआ हो, अजन्मा |
मृत | जो जन्म के बाद मर गया हो |
मूर्खाणाम् | मूर्खों का |
वरम् | श्रेष्ठ, उत्तम |
आद्यौ | प्रथम दो (अजात और मृत) |
अन्तिमः | अंतिम (मूर्ख) |
सकृत् | एक बार |
दुःखकरौ | दुःख देने वाले |
पदे पदे | हर कदम पर, निरंतर |
🪷 5. व्याकरणात्मक विश्लेषण
- अजातम् → “जन्” धातु से निष्पन्न; क्त रूप; निषेधार्थक “अ” उपसर्ग के साथ।
- मृतम् → “मृ” धातु से क्त रूप (मरा हुआ)।
- मूर्खाणाम् → “मूर्ख” शब्द का षष्ठी बहुवचन।
- वरम् → नपुंसकलिंग एकवचन; श्रेष्ठता सूचक अव्यय।
- पदे पदे → “पद” का द्विवचन रूप नहीं; यहाँ क्रियाविशेषण के रूप में “हर स्थान पर” अर्थ में।
🌏 6. आधुनिक सन्दर्भ
यह श्लोक माता-पिता, शिक्षक और समाज के दृष्टिकोण से अत्यंत प्रासंगिक है।
आज के युग में —
- शिक्षित होना ही पर्याप्त नहीं, विवेकपूर्ण होना आवश्यक है।
- यदि ज्ञान न हो, तो व्यक्ति स्वयं के साथ परिवार और समाज के लिए भी बोझ बन जाता है।
- बुद्धिहीनता केवल व्यक्तिगत त्रुटि नहीं, बल्कि सामाजिक विपत्ति का कारण है।
आज “मूर्खता” का अर्थ केवल अशिक्षा नहीं, बल्कि अविवेकपूर्ण आचरण है —
जो व्यक्ति सत्य, नीति और ज्ञान से विमुख होता है, वही इस श्लोक के "मूर्ख" का द्योतक है।
🎭 7. संवादात्मक नीति कथा
स्थान: किसी नगर के वृद्ध पिता के घर में।
पुत्र (मूर्ख): पिता! आज मैंने अपने मित्र को सबके सामने अपमानित किया, देखिए कितनी बहादुरी है!
पिता (दुःखी): पुत्र, यह बहादुरी नहीं, मूर्खता है।
पुत्र: क्यों पिता?
पिता: क्योंकि जिस बुद्धि से सम्मान कमाना चाहिए था, उसी से तुमने अपना अपमान कमाया है।
(पिता सोचते हैं) —
“काश यह संतान जन्म ही न लेती, तो एक बार दुःख होता;पर अब तो जीवनभर यह अपनी मूर्खता से दुख देती रहेगी।”
🌺 8. निष्कर्ष (Conclusion)
“मूर्खता वह व्याधि है, जिसका कोई औषध नहीं।”
यह श्लोक हमें सिखाता है —
- जीवन में बुद्धि, विवेक और विनम्रता का कोई विकल्प नहीं।
- अज्ञान केवल अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए भी शाप समान है।
- बुद्धिमान व्यक्ति वही है जो सीखने को सदैव तत्पर रहता है।
🌸 नीति-सूत्र:
“अशिक्षा से बड़ा कोई अभिशाप नहीं, और विवेक से बड़ा कोई वरदान नहीं।”
शास्त्र कहते हैं — मूर्खता वह व्याधि है जिसका कोई औषध नहीं। जानिए इस नीति-श्लोक के माध्यम से कि विवेक और शिक्षा क्यों हैं जीवन के सबसे बड़े वरदान।
मूर्खता का दुःख, Ajatamritamurkhana Varamadyau, संस्कृत नीति श्लोक, बुद्धिहीन संतान, नीति शास्त्र, संस्कृत श्लोक अर्थ सहित, Sanskrit Neeti Shloka, foolishness meaning in Sanskrit, wisdom quotes in Sanskrit, life lessons from Sanskrit shloka