हल सन्धि, जिसे संस्कृत व्याकरण में व्यञ्जन सन्धि (Vyanjana Sandhi) कहा जाता है, तब होती है जब किसी व्यञ्जन के बाद स्वर या अन्य व्यञ्जन आने से ध्वनि-परिवर्तन होता है। इस लेख में हल सन्धि के सभी प्रमुख प्रकार — श्चुत्व, ष्टुत्व, जश्त्व, चर्त्व, अनुस्वार, परसवर्ण और लत्व सन्धि — के सूत्र, नियम और उदाहरण सारणीबद्ध रूप में दिए गए हैं। विद्यार्थी, अध्यापक और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले सभी संस्कृत प्रेमियों के लिए यह सामग्री अत्यंत उपयोगी है। यहाँ प्रत्येक सन्धि को पाणिनि सूत्र, तर्कसंगत नियम, और उदाहरण सहित सरल ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
संस्कृत व्याकरण में हल सन्धि या व्यंजन संधि (Hal Sandhi in Sanskrit Grammar) – प्रकार, नियम और उदाहरण सहित पूर्ण विवरण
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| संस्कृत व्याकरण में हल सन्धि या व्यंजन संधि (Hal Sandhi in Sanskrit Grammar) – प्रकार, नियम और उदाहरण सहित पूर्ण विवरण |
🌿 हल सन्धि (Hal Sandhi / व्यञ्जन सन्धि Vyanjana Sandhi)
🔹 हल सन्धि (व्यञ्जन सन्धि) के प्रमुख भेद
हल सन्धि के प्रमुख भेद और उनके मुख्य सूत्र निम्नलिखित हैं:
१. श्चुत्व सन्धि (Ścutva Sandhi)
- सूत्र: स्तोः श्चुना श्चुः
- नियम: स् या तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) का योग यदि श् या चवर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) से होता है, तो स् को श् और तवर्ग को क्रमशः चवर्ग आदेश हो जाता है।
- उदाहरण:
- स् + श् = श्श् : रामस् + शेते → रामश्शेते
- त् + च् = च्च् : सत् + चित् → सच्चित्
- द् + ज् = ज्ज् : शार्ङ्गिन् + जयः → शार्ङ्गिञ्जयः (न् → ञ्)
२. ष्टुत्व सन्धि (Ṣṭutva Sandhi)
- सूत्र: ष्टुना ष्टुः
- नियम: स् या तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) का योग यदि ष् या टवर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्) से होता है, तो स् को ष् और तवर्ग को क्रमशः टवर्ग आदेश हो जाता है।
- उदाहरण:
- स् + ष् = ष्ष् : रामस् + षष्ठः → रामष्षष्ठः
- तत् + टीका → तट्टीका (त् → ट्)
- चक्रिन् + ढौकसे → चक्रिण्ढौकसे (न् → ण्)
३. जश्त्व सन्धि (Jaśtva Sandhi)
यह दो प्रकार की होती है:
(क) पदान्त जश्त्व सन्धि
- सूत्र: झलां जशोऽन्ते
- नियम: पद के अन्त में स्थित झल् प्रत्याहार (वर्गों के 1, 2, 3, 4 वर्ण या श्, ष्, स्, ह्) के बाद कोई भी स्वर या व्यञ्जन आए, तो झल् के स्थान पर उसी वर्ग का तृतीय वर्ण (जश्: ज्, ब्, ग्, ड्, द्) हो जाता है।
- उदाहरण:
- वाक् + ईशः → वागीशः (क् → ग्)
- जगत् + ईशः → जगदीशः (त् → द्)
- षट् + आननाः → षडाननाः (ट् → ड्)
(ख) अपदान्त जश्त्व सन्धि
- सूत्र: झलां जश् झशि
- नियम: झल् (वर्गों के 1, 2, 3, 4 वर्ण) के बाद झश् (वर्गों के 3, 4 वर्ण) आने पर, पूर्ववर्ती झल् के स्थान पर जश् (ज्, ब्, ग्, ड्, द्) आदेश हो जाता है।
- उदाहरण: युद्ध् + धि → युद्धि (ध को द्)
४. चर्त्व सन्धि (Cartva Sandhi)
- सूत्र: खरि च
- नियम: झल् (वर्गों के 1, 2, 3, 4 वर्ण या श्, ष्, स्, ह्) के बाद खर् प्रत्याहार (वर्गों के 1, 2 वर्ण या श्, ष्, स्) आए, तो झल् के स्थान पर उसी वर्ग का प्रथम वर्ण (चर्: च्, ट्, त्, क्, प्) हो जाता है। इसे प्रथम वर्ण आदेश भी कहते हैं।
- उदाहरण:
- उत् + स्थानम् → उत्थानम् (द् को त्)
- लब्ध् + स्यति → लप्स्यति (भ् को प्)
५. अनुस्वार सन्धि (Anusvāra Sandhi)
- सूत्र: मोऽनुस्वारः
- नियम: यदि पद के अन्त में स्थित मकार (म्) के बाद कोई हल (व्यञ्जन) आता है, तो म् को अनुस्वार (ं) हो जाता है।
- उदाहरण: —
६. परसवर्ण सन्धि (Parasavarṇa Sandhi)
- सूत्र: अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः
- नियम: यदि अनुस्वार (ं) के बाद यय् प्रत्याहार (वर्गों के 1 से 5 वर्ण और य, व, र, ल) आए, तो अनुस्वार को परवर्ती (बाद वाले) वर्ण का सवर्ण (अर्थात् उसी वर्ग का पंचम वर्ण) आदेश हो जाता है।
- उदाहरण:
- शम् + करः → शङ्करः (अनुस्वार → क वर्ग का पंचम ङ्)
- पम् + चमम् → पञ्चमम् (अनुस्वार → च वर्ग का पंचम ञ्)
- किम् + तव → किन्तव (अनुस्वार → त वर्ग का पंचम न्)
७. लत्व सन्धि (Latva Sandhi)
- सूत्र: तोर्लि
- नियम: यदि तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) के बाद लकार (ल्) आता है, तो तवर्ग के सभी वर्णों के स्थान पर ल् आदेश हो जाता है (केवल न् को छोड़कर, न् को अनुनासिक ल् (ँल्) होता है)।
- उदाहरण:
- तत् + लयः → तल्लयः (त् → ल्)
- विद्वान् + लिखति → विद्वाँल्लिखति (न् → ँल्)
८. छत्व सन्धि (chhatwa sandhi)
- सूत्र: शश्छोटि
- नियम: यदि किसी शब्द के अंत में 'झय्' (वर्ग का पहला, दूसरा, तीसरा और चौथा वर्ण) हो और उसके बाद 'श्' आए, तो 'श्' का 'छ्' हो जाता है।
- उदाहरण:
- तत् + शिवः = तच्छिवः
- सत् + शीलः =
🪶 हल सन्धि के प्रमुख भेद हेतु सारणी
| क्रम | सन्धि का नाम | सूत्र (Sūtra) | मुख्य नियम (Rule) | उदाहरण (Examples) |
|---|---|---|---|---|
| 1. | श्चुत्व सन्धि (Ścutva Sandhi) | स्तोः श्चुना श्चुः | यदि स् या तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) का योग श् या चवर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) से होता है, तो स् → श् और तवर्ग → चवर्ग हो जाता है। | (i) रामस् + शेते → रामश्शेते (ii) सत् + चित् → सच्चित् (iii) शार्ङ्गिन् + जयः → शार्ङ्गिञ्जयः |
| 2. | ष्टुत्व सन्धि (Ṣṭutva Sandhi) | ष्टुना ष्टुः | यदि स् या तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) का योग ष् या टवर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्) से होता है, तो स् → ष् और तवर्ग → टवर्ग हो जाता है। | (i) रामस् + षष्ठः → रामष्षष्ठः (ii) तत् + टीका → तट्टीका (iii) चक्रिन् + ढौकसे → चक्रिण्ढौकसे |
| 3. | जश्त्व सन्धि (Jaśtva Sandhi) | (क) झलां जशोऽन्ते (ख) झलां जश् झशि |
(क) पदान्त झल् के स्थान पर उसी वर्ग का तृतीय वर्ण (जश्) होता है। (ख) झल् के बाद झश् आने पर भी पूर्ववर्ती झल् → जश्। |
(क) वाक् + ईशः → वागीशः जगत् + ईशः → जगदीशः षट् + आननः → षडाननः (ख) युद्ध् + धि → युद्धि |
| 4. | चर्त्व सन्धि (Cartva Sandhi) | खरि च | यदि झल् के बाद खर् प्रत्याहार (वर्गों के 1, 2 वर्ण या श्, ष्, स्) आए, तो झल् → उसी वर्ग का प्रथम वर्ण (चर्)। | (i) उत् + स्थानम् → उत्थानम् (ii) लब्ध् + स्यति → लप्स्यति |
| 5. | अनुस्वार सन्धि (Anusvāra Sandhi) | मोऽनुस्वारः | पदान्त म् के बाद कोई हल् आता है तो म् → अनुस्वार (ं) हो जाता है। | (i) सुम् + भक्तः → सुं भक्तः (अर्थात् सुभक्तः) |
| 6. | परसवर्ण सन्धि (Parasavarṇa Sandhi) | अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः | यदि अनुस्वार (ं) के बाद यय् प्रत्याहार (वर्गों के 1–5 वर्ण, या य्, व्, र्, ल्) आए, तो अनुस्वार → परवर्ती वर्ण का पंचम (सवर्ण) होता है। | (i) शम् + करः → शङ्करः (ii) पम् + चमम् → पञ्चमम् (iii) किम् + तव → किन्तव |
| 7. | लत्व सन्धि (Latva Sandhi) | तोर्लि | यदि तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) के बाद ल् आता है, तो तवर्ग → ल् हो जाता है (सिवाय न् के, जो अनुनासिक ल् अर्थात् ँल् हो जाता है)। | (i) तत् + लयः → तल्लयः (ii) विद्वान् + लिखति → विद्वाँल्लिखति |
📘 संक्षेप में स्मरणीय सूत्रावली
| क्रम | सूत्र | नाम |
|---|---|---|
| १ | स्तोः श्चुना श्चुः | श्चुत्व सन्धि |
| २ | ष्टुना ष्टुः | ष्टुत्व सन्धि |
| ३ | झलां जशोऽन्ते | पदान्त जश्त्व |
| ४ | झलां जश् झशि | अपदान्त जश्त्व |
| ५ | खरि च | चर्त्व सन्धि |
| ६ | मोऽनुस्वारः | अनुस्वार सन्धि |
| ७ | अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः | परसवर्ण सन्धि |
| ८ | तोर्लि | लत्व सन्धि |
🌿 हल सन्धि (व्यञ्जन सन्धि) के 50 उदाहरण सारणी (Hal Sandhi / Vyanjana Sandhi Examples Table)
| क्र. | सन्धि का भेद | सन्धि विच्छेद (Purva + Para) | सन्धि पद (Sandhi Pada) | नियम / परिणाम |
|---|---|---|---|---|
| श्चुत्व सन्धि (सूत्र: स्तोः श्चुना श्चुः) | स्/तवर्ग → श्/चवर्ग | |||
| 1 | श्चुत्व | सत् + चित् | सच्चित् | त् + च् = च्च् |
| 2 | श्चुत्व | रामस् + शेते | रामश्शेते | स् + श् = श्श् |
| 3 | श्चुत्व | कस् + चित् | कश्चित् | स् + च् = श्च् |
| 4 | श्चुत्व | तद् + चित्रम् | तच्चित्रम् | द् + च् = च्च् |
| 5 | श्चुत्व | उत् + ज्वलः | उज्ज्वलः | त् + ज् = ज्ज् |
| 6 | श्चुत्व | शरद् + चन्द्रः | शरच्चन्द्रः | द् + च् = च्च् |
| 7 | श्चुत्व | याच् + ना | याच्ञा | च् + न् = च्ञ् |
| 8 | श्चुत्व | विपद् + जालम् | विपज्जालम् | द् + ज् = ज्ज् |
| 9 | श्चुत्व | शार्ङ्गिन् + जयः | शार्ङ्गिञ्जयः | न् + ज् = ञ्ज् |
| 10 | श्चुत्व | भविष्यत् + छविः | भविष्यच्छविः | त् + छ् = छ्छ् |
| ष्टुत्व सन्धि (सूत्र: ष्टुना ष्टुः) | स्/तवर्ग → ष्/टवर्ग | |||
| 11 | ष्टुत्व | तत् + टीका | तट्टीका | त् + ट् = ट्टी |
| 12 | ष्टुत्व | रामस् + टीकते | रामष्टीकते | स् + ट् = ष्ट् |
| 13 | ष्टुत्व | उत् + डयनम् | उड्डयनम् | त् + ड् = ड्ड् |
| 14 | ष्टुत्व | इष् + त | इष्टः | ष् + त् = ष्ट् |
| 15 | ष्टुत्व | पेश् + ता | पेष्टा | श् + त् = ष्ट् |
| 16 | ष्टुत्व | चक्रिन् + ढौकसे | चक्रिण्ढौकसे | न् + ढ् = ण्ढ् |
| जश्त्व सन्धि (पदान्त) (सूत्र: झलां जशोऽन्ते) | झल् → जश् (तृतीय वर्ण) | |||
| 17 | जश्त्व | वाक् + ईशः | वागीशः | क् → ग् |
| 18 | जश्त्व | जगत् + ईशः | जगदीशः | त् → द् |
| 19 | जश्त्व | षट् + आननः | षडाननः | ट् → ड् |
| 20 | जश्त्व | सुप् + अन्तः | सुबन्तः | प् → ब् |
| 21 | जश्त्व | दिक् + अम्बरः | दिगम्बरः | क् → ग् |
| 22 | जश्त्व | विपत् + कालः | विपत्कालः | त् → द् |
| जश्त्व सन्धि (अपदान्त) (सूत्र: झलां जश् झशि) | झल् → जश् (तृतीय वर्ण) | |||
| 23 | जश्त्व | बुध् + धि | बुद्धिः | ध् → द् |
| 24 | जश्त्व | लब्ध् + ध | लब्धः | भ् → ब् |
| चर्त्व सन्धि (सूत्र: खरि च) | झल् → चर् (प्रथम वर्ण) | |||
| 25 | चर्त्व | सम्पद् + सु | सम्पत्सु | द् → त् |
| 26 | चर्त्व | वाग् + करोति | वाक्करोति | ग् → क् |
| 27 | चर्त्व | बुध् + स्यति | बुत्स्यति | ध् → त् |
| 28 | चर्त्व | उत् + पन्नम् | उत्पन्नम् | द् → त् |
| 29 | चर्त्व | लिह् + ति | लिक्षिति | ह् → क्ष |
| अनुस्वार सन्धि (सूत्र: मोऽनुस्वारः) | म् → ं (व्यञ्जन परे) | |||
| 30 | अनुस्वार | हरिम् + वन्दे | हरिं वन्दे | म् → ं |
| 31 | अनुस्वार | अहम् + गच्छामि | अहं गच्छामि | म् → ं |
| 32 | अनुस्वार | धनम् + ददाति | धनं ददाति | म् → ं |
| 33 | अनुस्वार | सत्यम् + वद | सत्यं वद | म् → ं |
| 34 | अनुस्वार | त्वम् + करोषि | त्वं करोषि | म् → ं |
| परसवर्ण सन्धि (सूत्र: अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः) | ं → परवर्ती वर्ग का ५वाँ वर्ण | |||
| 35 | परसवर्ण | शम् + करः | शङ्करः | ं → ङ् |
| 36 | परसवर्ण | पम् + चमम् | पञ्चमम् | ं → ञ् |
| 37 | परसवर्ण | अम् + कितः | अङ्कितः | ं → ङ् |
| 38 | परसवर्ण | किम् + तु | किन्तु | ं → न् |
| 39 | परसवर्ण | सम् + भवः | सम्भवः | ं → म् |
| 40 | परसवर्ण | अलम् + कारः | अलंकारः / अल्लङ्कारः | ं → ङ् |
| 41 | परसवर्ण | गम् + ता | गन्ता | ं → न् |
| लत्व सन्धि (सूत्र: तोर्लि) | तवर्ग → ल् | |||
| 42 | लत्व | तत् + लयः | तल्लयः | त् → ल् |
| 43 | लत्व | उत् + लेखः | उल्लेखः | त् → ल् |
| 44 | लत्व | विद्वान् + लिखति | विद्वाँल्लिखति | न् → ँल् (अनुनासिक ल्) |
| 45 | लत्व | महान् + लाभः | महाल्लाभः | न् → ँल् (अनुनासिक ल्) |
| छत्व सन्धि (सूत्र: शश्छोटि / अनुमानित) | श् → छ् | |||
| 46 | छत्व | तत् + श्रुत्वा | तच्छ्रुत्वा | त् → छ् |
| 47 | छत्व | उत् + श्वासः | उच्छ्वासः | त् → च्, श् → छ् |
| अन्य प्रमुख उदाहरण | ||||
| 48 | जश्त्व | आपद् + कालः | आपत्कालः | द् → त् (खरि च) |
| 49 | जश्त्व | सम्राज् + य | सम्राट् | ज् → ट् (विशेष नियम) |
| 50 | अनुनासिक | जगत् + नाथः | जगन्नाथः | त् → न् (यरोऽनुनासिकेऽनुनासिको वा) |
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