कर्म कारक (Karma Kārakah) – द्वितीया विभक्ति का सरल व्याकरणिक विश्लेषण | Sanskrit Grammar Explained in Hindi

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत व्याकरण में कर्म कारक वह होता है जिसे कर्ता अपनी क्रिया से प्राप्त करना चाहता है। इसमें द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है। उदाहरण सहित जानिए।

कर्म कारक (Karma Kārakah) – द्वितीया विभक्ति का सरल व्याकरणिक विश्लेषण | Sanskrit Grammar Explained in Hindi


🌷 कर्म कारक (Karma Kārakah) - द्वितीया विभक्ति 🌷

संस्कृत व्याकरण के अनुसार, कर्म कारक वह होता है जिसे कर्ता अपनी क्रिया के द्वारा सर्वाधिक प्राप्त करना चाहता है। इसमें सदैव द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है।

कर्म कारक (Karma Kārakah) – द्वितीया विभक्ति का सरल व्याकरणिक विश्लेषण | Sanskrit Grammar Explained in Hindi
कर्म कारक (Karma Kārakah) – द्वितीया विभक्ति का सरल व्याकरणिक विश्लेषण | Sanskrit Grammar Explained in Hindi


🔹 १. कारक संज्ञा विधायक सूत्र (The Rule for Kārakā Designation)

सूत्र (Sūtram) अर्थ (Meaning) उदाहरण (Example)
कर्तुरीप्सिततमं कर्म (पाणिनि, अष्टाध्यायी १.४.४९) कर्ता अपनी क्रिया के द्वारा जिसे सबसे अधिक प्राप्त करना चाहता है, उसकी कर्म संज्ञा होती है। रामः विद्यालयं गच्छति। (राम जाने की क्रिया से सबसे अधिक विद्यालय को प्राप्त करना चाहता है, अतः 'विद्यालय' कर्म है।)
तथा युक्तं चानीप्सितम् (१.४.५०) कर्ता के अनचाहे (अनीप्सित) होने पर भी, यदि वह क्रिया से जुड़ा हो, तो उसकी भी कर्म संज्ञा होती है। सः विषं भक्षयति। (विष अनचाहा है, पर भक्षण क्रिया से जुड़ा है।)

🔹 २. द्वितीया विभक्ति विधायक सूत्र (The Rule for Dvitīyā Vibhakti)

सूत्र (Sūtram) अर्थ (Meaning) उदाहरण (Example)
कर्मणि द्वितीया (२.३.२) कर्म कारक में द्वितीया विभक्ति होती है। (यह सूत्र अनुक्त कर्म के लिए है।) सः वेदम् पठति। (वह वेद को पढ़ता है।)
उक्ते कर्मणि प्रथमा जब कर्म उक्त (प्रधान) होता है, जैसे कर्मवाच्य (Passive Voice) में, तो उसमें प्रथमा विभक्ति होती है, न कि द्वितीया। रामेण पुस्तकम् पठ्यते। ('पुस्तक' उक्त कर्म है, इसलिए प्रथमा।)

🔹 ३. कर्म कारक के विशेष नियम

(क) अकथित कर्म (Unspecified Object)

कुछ धातुओं के योग में जो कारक अपादान, करण आदि कारकों से नहीं कहा जाता, उसकी भी कर्म संज्ञा होती है।
ऐसी सोलह (१६) धातुएँ हैं जिन्हें द्विकर्मक धातुएँ कहते हैं (जैसे दुह्, याच्, पच्, दण्ड्, रुध्, प्रच्छ्, ब्रू, शास्, जि, मन्थ्, मुष्, नी, हृ, कृष्, वह्, मथ्)।

सूत्र: अकथितं च (१.४.५१)

उदाहरण:
सः गां दुग्धं दोग्धि। (वह गाय से दूध दुहता है।)
यहाँ 'गाय' मूलतः अपादान कारक थी (गाय से अलग हो रहा है), किन्तु 'दुह्' धातु के योग से वह गौण कर्म बन गई और उसमें द्वितीया विभक्ति लगी।


(ख) गति, बुद्धि, आदि अर्थ वाली धातुओं का प्रयोग

गति (जाना), बुद्धि (जानना) और प्रत्यवसान (खाना) अर्थ वाली धातुओं का कर्ता, प्रेरणा देने पर कर्म बन जाता है।

सूत्र: गतिबुद्धिप्रत्यवसानार्थशब्दकर्माकर्मकाणामणि कर्ता स णौ (१.४.५२)

उदाहरण:
मूल वाक्य: शिष्यः वेदम् पठति। (शिष्य वेद को पढ़ता है।)
प्रेरणार्थक (Causative): गुरुः शिष्यं वेदम् पाठयति। (गुरु शिष्य को वेद पढ़ाता है।)
मूल वाक्य का कर्ता 'शिष्य' प्रेरणार्थक में कर्म बन गया है।


(ग) उपपद द्वितीया (Adverbial/Prepositional Accusative)

कुछ अव्ययों (Prepositions) के योग में भी द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है:

अव्यय/नियम अर्थ उदाहरण
अभितः (उभयतः), परितः दोनों ओर, चारों ओर ग्रामम् उभयतः जलमस्ति। (गाँव के दोनों ओर जल है।)
समया, निकषा समीप नदीम् निकषा देवालयः अस्ति। (नदी के समीप देवालय है।)
हा, धिक् खेद, धिक्कार कृष्णभक्तं धिक्। (कृष्णभक्त को धिक्कार है।)
अन्तरा, अन्तरेण बीच में, बिना रामम् अन्तरेण न सुखम्। (राम के बिना सुख नहीं।)

(घ) कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे

जब कालवाचक (Time) या मार्गवाचक (Distance) शब्द में क्रिया का निरंतर संयोग (अत्यन्त संयोग) हो, तो उसमें द्वितीया विभक्ति होती है।

उदाहरण:
सः मासम् व्याकरणम् अपठत्। (उसने मास भर व्याकरण पढ़ा।)
क्रोशं कुटिला नदीम्। (कोस भर नदी टेढ़ी है।)


✅ इस प्रकार कर्म कारक वह होता है जिसे कर्ता अपनी क्रिया के द्वारा सर्वाधिक प्राप्त करना चाहता है, और इसमें सदैव द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है।


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