Kasyapi Ko’pyatishayo’sti – हर किसी में एक विशेष गुण होता है | Neeti Shlok with Meaning & Analysis

Sooraj Krishna Shastri
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“कस्यापि कोऽप्यतिशयोऽस्ति स तेन लोके ख्यातिं प्रयाति” — यह संस्कृत नीति श्लोक हमें यह सिखाता है कि हर व्यक्ति में कोई न कोई विशेषता अवश्य होती है, जिसके कारण वह संसार में प्रसिद्ध होता है। सभी में सभी गुण नहीं हो सकते; जैसे केतकी में सुगंध है पर फल नहीं, कटहल में फल है पर पुष्प नहीं, और नागवेल मुखशुद्धि करती है परंतु फल-पुष्परहित है। इस श्लोक में मानव जीवन के लिए गहन संदेश छिपा है—प्रत्येक व्यक्ति को अपने विशिष्ट गुण का उपयोग समाजकल्याण हेतु करना चाहिए।

यह लेख श्लोक का संस्कृत पाठ, English transliteration, शब्दार्थ, व्याकरणिक विश्लेषण, हिन्दी भावार्थ, आधुनिक संदर्भ, और संवादात्मक नीति-कथा सहित विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करता है।

🌿 यह ज्ञान भारतीय नीतिशास्त्र, आचार-नीति, और जीवन-प्रेरणा के लिए अत्यंत उपयोगी है।

Kasyapi Ko’pyatishayo’sti – हर किसी में एक विशेष गुण होता है | Neeti Shlok with Meaning & Analysis

Kasyapi Ko’pyatishayo’sti – हर किसी में एक विशेष गुण होता है | Neeti Shlok with Meaning & Analysis
Kasyapi Ko’pyatishayo’sti – हर किसी में एक विशेष गुण होता है | Neeti Shlok with Meaning & Analysis


1. श्लोक (देवनागरी)

कस्यापि कोऽप्यतिशयोऽस्ति स तेन लोके
ख्यातिं प्रयाति न हि सर्वविदस्तु सर्वे।
किं केतकी फलति किं पनसः सुपुष्पः
किं नागवल्ल्यपि च पुष्पफलैरुपेता॥


2. Transliteration (IAST / readable)

Kasyāpi ko’py atiśayo’sti sa tena loke
khyātiṃ prayāti na hi sarvavid astu sarve।
Kiṃ ketakī phalati kiṃ panasaḥ supuṣpaḥ
kiṃ nāgavally api ca puṣpa-phalair upetā॥

(सरल रोमन: Kasyapi ko'py atishayo'sti sa tena loke / khyatim prayati na hi sarvavid astu sarve. Kim ketaki phalati kim panasah supushpah / kim nagavally api ca pushpaphalair upeta.)


3. हिन्दी अनुवाद (Natural rendering)

किसी में कोई एक गुण अत्यधिक (विशेष) भी हो तो ही वह लोक में प्रसिद्धि पाता है; सबको सभी गुण विद्यमान नहीं होते।
केतकी जिसे सुगंधित पंखुड़ियों के लिए जाना जाता है, क्या वह फल देता है? कटहल, जिसकी प्रशंसा उसके स्वादिष्ट फलों के लिए होती है, क्या वह सुगंधित पुष्प देता है? तथा नागवल्ली (ताम्बूल-वेल) क्या पुष्प-फल दोनों से सम्पन्न है? — निश्चय ही प्रत्येक का स्वभाव-विशेष अलग है।

सरल सार: हर किसी का हर गुण नहीं — किसी एक विशेष गुण की ही ख्याति बनती है।


4. शब्दार्थ (word-by-word)

संस्कृत अर्थ
कस्यापि किसी में (literally “in anyone / in some one”)
कोऽपि कोई भी (emphatic)
अतिशयः अत्यधिक गुण/विशेषता, श्रेष्ठता
अस्ति होता है
सः वही व्यक्ति
तेन लोके उसी के द्वारा (लोक में) — “because of him/in the world”
ख्यातिं प्रयाति प्रसिद्धि प्राप्त करता है (khyātiṃ = fame, prayāti = attains)
न हि निश्चय ही नहीं (for surely not)
सर्वविदः सर्वगुण-सम्पन्न (one who knows/has all) — lit. ‘all-knowing’
तु परन्तु
सर्वे सारे लोग
किं क्या
केतकी केतकी (Pandanus / screw-pine — known for fragrant flowers)
फलति फल लगाना / फल देता है
पनसः पनस — कटहल (jackfruit)
सुपुष्पः सु-पुष्पः — खुश्बूदार फूल (well-flowered/fragrant-flowered)
नागवल्ल्य नागवल्ली — पान/तमाल की बेल (betel vine)
अपि भी
तथा
पुष्पफलैः पुष्प और फल (instrumental/with flowers-fruits)
उपेता युक्त/सम्पन्न (possessed of)

5. व्याकरणात्मक विश्लेषण (Grammar & structure)

  1. काष्ठ/वाक्य-विन्यास: प्रथम द्वि-पद में सामान्य नीति-विधान — “यदि किसी में अतिशय (विशेष) है, तो वही लोक में ख्याति पाता है; क्योंकि सभी लोग सर्वगुण सम्पन्न नहीं होते।” द्वितीय द्वि-पद में उदाहरणात्मक प्रश्नों के माध्यम से नीति पुष्ट की गई है — rhetorical questions: केतकी फलति? पनसः सुपुष्प? नागवल्ली पुष्पफलैरुपेता?

  2. मुख्य रूप:

    • कasyāpi ko’py atiśayaḥ asti — relative/indefinite construction: “यदि किसी में कोई अत्यधिक गुण है”।
    • sa tena loke khyātiṃ prayāti — परिणाम: “वही उसकी दुनिया/लोक में ख्याति पाता है।”
    • na hi sarvavid astu sarve — कारण/निषेध: “सभी जानकार/सम्पन्न सभी नहीं होते।”
  3. प्रश्नात्मक उपमा: केतकी/पनस/नागवल्ली के उदाहरण rhetorical devices हैं — वे सेवाओं/गुणों के विषम वितरण को दर्शाते हैं।

  4. शैली: संक्षेपता, प्रतिपादन व उदाहरण (inductive → generalization) — नीति-शास्त्र की सामान्य विधि।


6. आधुनिक सन्दर्भ (Modern relevance & practical lessons)

यह श्लोक आज के समय में कई जगह लागू होता है:

  • विशेषज्ञता (Specialization): किसी व्यक्ति, संस्थान या उत्पाद की प्रसिद्धि अक्सर उसके एक या कुछ ख़ास गुणों की वजह से बनती है — न कि सभी गुणों के होने से। उदाहरण: एक कलाकार अपने विशिष्ट स्टाइल के लिए प्रसिद्ध होता है; एक कम्पनी अपनी विशेष तकनीक के कारण जानी जाती है।

  • Career & Hiring: सभी से हर चीज़ की अपेक्षा करना अव्यवहारिक है; टीम में विविधता व भूमिका-विशेषता आवष्यक है — हर कोई सबकुछ नहीं कर सकता।

  • ब्रांडिंग और मार्केटिंग: ब्रांड्स अक्सर एक USP (unique selling proposition) के ऊपर अपनी पहचान बनाते हैं — जैसे किसी का स्वादिष्ट फल, किसी का सुगंधित फूल इत्यादि; इससे सीख है कि विशेष पर फोकस करें

  • सोशल-मीडिया हाइप: आज लोग किसी एक कौशल की वजह से अचानक प्रसिद्ध हो जाते हैं; यह श्लोक बताता है कि प्रसिद्धि बहुधा उस विशेष गुण का फल है, न कि सर्वगुण-सम्पन्नता का।

  • स्वीकार्यता और ईर्ष्या: अन्य का एक गुण देखकर मित्र/शत्रु ईर्ष्यापूर्ण हो सकते हैं — पर समझना चाहिए कि प्रकृति रूपान्तरित नहीं की जा सकती — सबकी अपनी शक्ति है।


7. संवादात्मक नीति-कथा (Short dialogue / illustrative vignette)

स्थान: विद्यालय का प्रांगण — गुरु और विद्यार्थी वार्तालाप।

विद्यार्थी 1: गुरुनाथ, रवि तो सबको नाच सिखाता है — पर गणित में कमजोर है; क्या वह महान नहीं?
गुरु: महान वही जो अपने गुण में निपुण हो। किसी में एक गुण अत्यधिक हो, तो वह भी ख्याति पाता है।
विद्यार्थी 2: तो क्या हमें सभी में हर गुण की आशा छोड़ देनी चाहिए?
गुरु: नहीं — पर समझो कि केतकी की शोभा उसकी सुगंध में है, कटहल की महत्ता उसके फल में; दोनों अलग हैं। इसलिए टीम में विविधता पाओ और हर किसी के विशेष गुण का सम्मान करो।

सीख: किसी की प्रसिद्धि उसके विशेष गुण का परिणाम है; हमें विविधता और specialization का सम्मान रखना चाहिए।


8. निष्कर्ष (Conclusion — Moral summary)

  • मुख्य विचार: लोक-ख्याति अक्सर किसी एक (या कुछ) अत्युत्तम गुण के कारण मिलती है; सभी लोग सर्वगुणी नहीं होते।
  • व्यवहारिक सीख:
    1. अपनी विशेषता पहचानिए और उसे निखारिए — वही आपकी पहचान बनेगी।
    2. दूसरों से विविधता की अपेक्षा रखें — टीम व समाज को हर प्रकार के गुणों की आवश्यकता होती है।
    3. प्रसिद्धि या सम्मान किसी के कठोर परिश्रम व विशिष्टता का परिणाम है — न कि सर्व-योग्यता का।
  • नीति-सूत्र (Compact):
    “विशेष गुण ही ख्याति देते हैं; केतकी को फल की आशा, कटहल को सुगंध की आशा नहीं।” 🌿

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