नारायणसूक्तम् (Narayan Suktam) यजुर्वेद का एक अत्यंत पवित्र वैदिक स्तोत्र है, जिसमें भगवान श्रीनारायण को ब्रह्मांड के परम आधार, सर्वव्यापक चेतना और सर्वोच्च सत्य के रूप में स्तुत किया गया है। इस सूक्त में नारायण को सहस्रशीर्ष, सर्वज्ञ, अच्युत, शिव, ब्रह्म और विष्णु रूप में वर्णित किया गया है। प्रत्येक मंत्र यह दर्शाता है कि सम्पूर्ण सृष्टि — जो दृश्य और अदृश्य है — सब नारायण से ही उत्पन्न हुई, उसी में स्थित है और उसी में विलीन होती है।
नारायणसूक्त के पाठ से मन, वाणी और चित्त की शुद्धि होती है तथा ध्यान और भक्ति के उच्चतम स्तर का अनुभव होता है। यह सूक्त ध्यान, साधना, योग, और वेदांत अध्ययन करने वालों के लिए अमूल्य मार्गदर्शक है। यहाँ आपको नारायणसूक्त का शुद्ध संस्कृत पाठ, भावार्थ, और आध्यात्मिक महत्व विस्तार से मिलेगा। जय श्रीनारायण!
🌺 नारायणसूक्तम् | Narayan Suktam – Vedic Hymn to Lord Narayana, Meaning and Significance 🌺
(Narayana Suktam: The Sacred Vedic Chant Dedicated to Lord Vishnu)
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नारायणसूक्तम् | Narayan Suktam – Vedic Hymn to Lord Narayana, Meaning and Significance |
🌿 श्लोक १
सहस्रशीर्षं देवं विश्वाक्षं विश्वशंभुवम् ।
विश्वै नारायणं देवं अक्षरं परमं पदम् ॥
भावार्थ:
जिस देवता के सहस्र (अनन्त) शिर हैं, जो सर्वदृष्टा है, जो समस्त जगत् का कल्याण करने वाला है — वह अक्षर, वह परम पद है — वही नारायण है।
🌿 श्लोक २
विश्वतः परमान्नित्यं विश्वं नारायणं हरिम् ।
विश्वमेव इदं पुरुषः तद्विश्वं उपजीवति ॥
भावार्थ:
सम्पूर्ण जगत से परे जो सनातन परमात्मा है, वही हरि नारायण है।
यह सम्पूर्ण जगत् वही पुरुष है, और वही जगत् उसी पर आश्रित है।
🌿 श्लोक ३
पतिं विश्वस्यात्मेश्वरं शाश्वतं शिवमच्युतम् ।
नारायणं महाज्ञेयं विश्वात्मानं परायणम् ॥
भावार्थ:
समस्त विश्व के पति, आत्मा और ईश्वर, जो शाश्वत, शुभ और अच्युत हैं —
उन नारायण को जानना ही परम ज्ञान है। वे ही विश्वात्मा और परायण हैं।
🌿 श्लोक ४
नारायणः परो ज्योतिरात्मा नारायणः परः ।
नारायणः परं ब्रह्म तत्त्वं नारायणः परः ।
नारायणः परो ध्याता ध्यानं नारायणः परः ॥
भावार्थ:
नारायण ही परम ज्योति हैं, आत्मा हैं, परम ब्रह्म हैं, तत्त्व हैं,
ध्यान करने योग्य भी वे हैं, और ध्यान स्वयं भी नारायण ही हैं।
🌿 श्लोक ५
यच्च किंचित् जगत् सर्वं दृश्यते श्रूयतेऽपि वा ।
अन्तर्बहिश्च तत्सर्वं व्याप्य नारायणः स्थितः ॥
भावार्थ:
जो कुछ भी इस जगत् में दृष्ट या श्रुत होता है,
वह सब भीतर और बाहर — सर्वत्र नारायण से व्याप्त है।
🌿 श्लोक ६
अनन्तमव्ययं कविं समुद्रेन्तं विश्वशंभुवम् ।
पद्मकोशप्रतीकाशं हृदयं चाप्यधोमुखम् ॥
भावार्थ:
जो अनन्त, अविनाशी, सर्वज्ञ, और जगत् का स्रष्टा है —
वह हृदय में, नीचे की ओर मुख किए, कमल कोश के समान स्थित है।
🌿 श्लोक ७
अधोनिष्ठ्या वितस्त्यान्ते नाभ्यामुपरि तिष्ठति ।
ज्वालामालाकुलं भाति विश्वस्यायतनं महत् ॥
भावार्थ:
नाभि से ऊपर, वितस्ति मात्र (लगभग बारह अँगुल) दूरी पर वह तेजोमय स्थान है,
जहाँ अग्निमालाओं से प्रकाशित महान विश्वायतन (नारायण का आसन) स्थित है।
🌿 श्लोक ८
सन्ततं शिलाभिस्तु लम्बत्या कोशसन्निभम् ।
तस्यान्ते सुषिरं सूक्ष्मं तस्मिन् सर्वं प्रतिष्ठितम् ॥
भावार्थ:
वह क्षेत्र शिलाओं के समान दृढ़ है, कोश के समान लम्बवत् है,
उसके अन्त में एक सूक्ष्म सुषिर है, जिसमें सम्पूर्ण जगत प्रतिष्ठित है।
🌿 श्लोक ९
तस्य मध्ये महानग्निर्विश्वार्चिर्विश्वतोमुखः ।
सोऽग्रविभजंतिष्ठन्नाहारमजरः कविः ॥
भावार्थ:
उस सूक्ष्म सुषिर के मध्य एक महान अग्नि स्थित है,
जिसकी ज्वालाएँ सर्वदिशाओं में फैली हैं। वह अजर, कवि (सर्वज्ञ) होकर सबको पोषण करता है।
🌿 श्लोक १०
तिर्यगूर्ध्वमधश्शायी रश्मयस्तस्य सन्तताः ।
सन्तापयति स्वं देहमापादतलमास्तकः ।
तस्य मध्ये वह्निशिखा अणीयोर्ध्वा व्यवस्थिताः ॥
भावार्थ:
उस अग्नि से निकलने वाली रश्मियाँ ऊपर, नीचे, और आड़ा फैली हुई हैं,
जो सम्पूर्ण शरीर को तपाती हैं।
उन रश्मियों के मध्य एक सूक्ष्म अग्निशिखा ऊपर की ओर स्थित है।
🌿 श्लोक ११
नीलतोयद-मध्यस्थ-द्विद्युल्लेखेव भास्वरा ।
नीवारशूकवत्तन्वी पीता भास्वत्यणूपमा ॥
भावार्थ:
वह अग्निशिखा ऐसे दमकती है जैसे नीले बादल में विद्युतरेखा चमकती है;
वह अतिसूक्ष्म और अनुपम है, जैसे धान्य की नर्म जटा — स्वर्णाभा युक्त।
🌿 श्लोक १२
तस्याः शिखाया मध्ये परमात्मा व्यवस्थितः ।
स ब्रह्म स शिवः स हरिः स इन्द्रः सोऽक्षरः परमः स्वराट् ॥
भावार्थ:
उस शिखा के मध्य परमात्मा स्थित हैं —
वे ही ब्रह्म, शिव, हरि, इन्द्र, अक्षर और स्वराट् हैं।
🌿 श्लोक १३
ऋतं सत्यं परं ब्रह्म पुरुषं कृष्णपिङ्गलम् ।
ऊर्ध्वरेतं विरूपाक्षं विश्वरूपाय वै नमो नमः ॥
भावार्थ:
वे परम सत्य, परम ब्रह्म, पुरुष — कृष्ण पिङ्गल वर्ण वाले,
ऊर्ध्वरेता, विरूपाक्ष (सर्वदृष्टा), और विश्वरूप हैं — उन्हें नमस्कार।
🌿 श्लोक १४ (ध्यान मंत्र)
ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि ।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥
भावार्थ:
हम नारायण को जानते हैं, वासुदेव का ध्यान करते हैं;
विष्णु हमें प्रेरणा प्रदान करें।
🌿 समापन मंत्र
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
भावार्थ:
प्रभु समस्त भौतिक, दैविक और आध्यात्मिक क्लेशों से हमें मुक्त करें —
सर्वत्र शान्ति हो।
🌼 निष्कर्ष भावार्थ
नारायणसूक्तम् वेदों का हृदय है —
यह दर्शाता है कि समस्त दृश्य-अदृश्य जगत्,
अंतःकरण से लेकर विराट् विश्व तक,
सब कुछ नारायण का ही विस्तार है।
जो इस सूक्त का श्रद्धा से पाठ करता है, वह आत्मा में स्थित परमात्मा को अनुभव करता है।
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