स्वभाव नहीं बदलता | Yah Svabhavo Hi Yasyasti – Sanskrit Niti Shloka with Meaning & Moral Story

Sooraj Krishna Shastri
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The Sanskrit verse “यः स्वभावो हि यस्यास्ति स नित्यं दुरतिक्रमः” beautifully conveys that a person’s innate nature is difficult to change. Even if a dog is made a king, will it stop chewing the footwear? This timeless Niti Shloka from ancient Indian wisdom highlights that external positions or power cannot alter one’s true character. Through Hindi translation, English transliteration, detailed grammatical analysis, modern relevance, and a moral story in dialogue form, this post explains how real transformation requires inner discipline, not just outer status. In today’s professional and personal life, the message of this verse is vital — true worth lies in integrity, not in title. Learn the deeper meaning, practical application, and the moral essence of this ancient Sanskrit wisdom.

स्वभाव नहीं बदलता | Yah Svabhavo Hi Yasyasti – Sanskrit Niti Shloka with Meaning & Moral Story

स्वभाव नहीं बदलता | Yah Svabhavo Hi Yasyasti – Sanskrit Niti Shloka with Meaning & Moral Story
स्वभाव नहीं बदलता | Yah Svabhavo Hi Yasyasti – Sanskrit Niti Shloka with Meaning & Moral Story

1. श्लोक

यः स्वभावो हि यस्यास्ति स नित्यं दुरतिक्रमः।
श्वा यदि क्रियते राजा स किं नाश्नात्युपानहम्॥


2. English Transliteration (IAST / readable)

Yaḥ svabhāvo hi yasya asti sa nityaṃ duratikramaḥ ।
Śvā yadi kriyate rājā sa kiṃ nāśnāti upānaham ॥

(सरल रोमन: Yah svabhavo hi yasya asti sa nityam duratikramah. Shva yadi kriyate raja sa kim nashnati upanaham.)


3. हिन्दी अनुवाद

जिस व्यक्ति का स्वभाव ऐसा है, वह हमेशा उस स्वभाव से विचलित या परिवर्तनशील नहीं होता। यदि कुत्ते को राजा बना दिया जाए, तो क्या वह जूता चबाना छोड़ देगा? — नहीं।

(सरल सार: स्वभाव बदलना कठिन है; पद-प्रतिष्ठा से स्वाभाव नहीं बदलता।)


4. शब्दार्थ (word-by-word)

संस्कृत पद अर्थ
यः जो (relative pronoun)
स्वभावः स्वाभाव, स्वभाव, जन्मजात गुण/प्रवृत्ति
हि निश्चयार्थक कण — "निस्सन्देह / तथेव"
यस्य जिसका / जिसके (genitive)
अस्ति होता है / विद्यमान है
सः वह (he)
नित्यम् सदैव / हमेशा
दुरतिक्रमः कठिन परिवर्तन / कठिनता जिससे विचलित होना (दु- + तिक्रम ?) — यहाँ अर्थ: बदलना कठिन है
श्वा श्वा = श्वान = कुत्ता
यदि यदि / अगर
क्रियते किया जाए / बनाया जाए (कृद्/ करने का दिव्य अर्थ; passive sense)
राजा राजा (king)
सः वह (again)
किम् क्या
नाश्नाति / न अश्नाति चबाता है / नहीं चबाता है (अ-नाश्नाति => न खाने / न चबाने का अर्थ)
उपानहम् / उपानहं उपानह (पाद-रक्षा / जूता) — यहाँ वस्तु जिसे कुत्ता चबाता है

टीप: कुछ पाठों में क्रियाविशेष रूप और संधि-विविधता के कारण शब्दरूप बदल सकते हैं; यहाँ लिया गया अर्थ श्लोक के सामान्य सम्यक्-अर्थ से मेल खाता है।


5. व्याकरणात्मक विश्लेषण (Grammatical notes & sense-structure)

  1. वाक्यविन्यास: श्लोक दो भागों में है — प्रथम भाग सामान्य नीति-निवेदन: “यः स्वभावो ... स नित्यं दुरतिक्रमः” — अर्थात् जिसका स्वभाव वैसा है वह नित्यतः परिवर्तनशील नहीं।
    द्वितीय भाग उदाहरणात्मक प्रश्न-रूप: “श्वा यदि क्रियते राजा ...” — उपमात्मक प्रश्न जो सैद्धान्तिक निष्कर्ष को पुष्ट करता है।

  2. प्रसंगिक रूप:

    • यः — सम्बन्धसूचक विजातीय सर्वनाम, जिसका शाब्दिक कर्ता।
    • स्वभावो ... यस्य अस्ति — व्याकरण के अनुसार genitive/relative-clause का प्रयोग: "जिसका जो स्वभाव है"।
    • नित्यम् दुरतिक्रमः — दुरतिक्रमः (दु-तिक्रम?) = 'अल्प परिवर्तनशीलता' या 'बदलने में कठिन' — यहाँ इसे 'बदलना कठिन' के समानार्थ में लिया जाता है।
    • श्वा यदि क्रियते राजा — 'यदि श्वान (कुत्ता) राजा बना दिया जाए' — क्रियते here passive/causative nuance.
    • सः किं नाश्नात्य उपानहम् — 'क्या वह जूता चबाना बंद कर देगा?' — rhetorical negative expected: न (नहि) की अनुपस्थित पर आशय नकारक ही।
  3. शैलीगत उपकरण: उपमा (dog → king), प्रश्नात्मक रोधन (rhetorical question) — नीति-शास्त्र में सामान्य: सामान्य सिद्धान्त → जीवंत उदाहरण → मज़बूत नीति।


6. आधुनिक सन्दर्भ (Contemporary relevance & implications)

यह श्लोक आज कई क्षेत्रों में सीधे लागू होता है:

  1. मानव स्वभाव और नेतृत्व चयन: किसी व्यक्ति का मूल स्वभाव (ईमानदारी, लोभ, क्रोध, संवेदनशीलता) उसकी पदवी बदलने भर से बदलना कठिन है। इसलिए नेतृत्व/नियुक्ति करते समय चरित्र का मूल्यांकन अनिवार्य है।

    • उदाहरण: रिक्त पद पर किसी अयोग्य/दुष्ट व्यक्ति को वरिष्ठ पद दे दिया — पद उसे नैतिक बना नहीं देगा; बुरे स्वभाव के परिणाम सार्वजनिक नुकसान दे सकते हैं।
  2. सुधार व पुनर्वास: व्यक्तियों का व्यवहार बदलना सम्भव है परन्तु सहज नहीं — आवश्यकता है दीर्घकालिक प्रशिक्षण, मनोवैज्ञानिक चिकित्सा, पर्यावरण परिवर्तन और नयी आदतों को स्थापित करने का समय।

    • उदाहरण: अपराधियों में सुधार तभी स्थायी होगा जब परिस्थितियाँ, शिक्षा और प्रतिस्थापन व्यवहार समेकित हों।
  3. संगठकीय संस्कृति: किसी संगठन में यदि "खराब व्यवहार" आम है, पदोन्नति केवल औपचारिकता से इसे नहीं मिटाती — संस्कृति परिवर्तन की योजना बनानी होगी।

  4. नीतिगत संदेश: पद और शक्ति पर निर्भरता से स्वभाव का अचूक रूप नहीं बदला जा सकता — इसलिए पदों का चयन करते समय चरित्र और नैतिकता पर अधिक जोर होना चाहिए।


7. संवादात्मक नीति-कथा (Dialogue — short illustrative story)

स्थान: एक नगर का मंत्रिमंडल।

राजा: “हमें शहर के सुरक्षा विभाग का प्रमुख बदलना है।”
एक सलाहकार: “इस व्यक्ति का लेखा-जोखा अच्छा नहीं — पर वह अच्छा वक्ता है; उसे पद दे दें।”
दूसरे सलाहकार: “वक्तृत्त्व अच्छी बात है, पर क्या वह अनुशासन रखेगा? क्या भ्रष्टाचार छोड़ेगा?”
पहला सलाहकार: “हम पद दे देंगे — पद बदल देगा।”

(कुछ महीनों बाद भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनता बढ़ जाती है।)

प्रथम सलाहकार (लज्जित): “हमने सोचा पद दे कर स्वभाव बदल देंगे।”
अन्य सलाहकार: “यही श्लोक याद करो: अगर कुत्ते को राजा बना दो, क्या वह जूता चबाना छोड़ देगा? — पद से स्वभाव नहीं बदलता।”

सीख: पद देने से पहले स्वभाव और चरित्र का परीक्षण जरूरी है; परिवर्तन असम्भव नहीं पर साधन और समय चाहिए।


8. निष्कर्ष (Conclusion — सार-बिंदु)

  • मुख्य नीति: जन्मजात या निर्मित स्वभाव को तुरन्त बदलना कठिन है; पद-प्रतिष्ठा मात्र से स्वभाव का परिवर्तन नहीं आता।
  • व्यावहारिक शिक्षा: नियुक्ति, शिक्षा और सुधार-कार्य में स्वभाव का मूल्यांकन चाहिए; सुधार चाहिये तो संरचित दिक्षा/अनुशासन/परिवेश परिवर्तन आवश्यक है।
  • नीति-सूत्र: “वह जो स्थान देता है वह स्वभाव बदलने की आशा न रखे; पहले चरित्र का परीक्षण कर लो।”

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