संस्कृत व्याकरण में प्रत्यय (Pratyaya) वे सूक्ष्म शब्दांश हैं जो किसी धातु या प्रातिपदिक के अंत में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं। प्रत्ययों के माध्यम से शब्दों का अर्थ, रूप, लिंग और प्रयोग बदल जाता है। पाणिनि कृत “अष्टाध्यायी” में प्रत्ययों के प्रयोग के सूत्रों का अत्यंत वैज्ञानिक निरूपण मिलता है। मुख्यतः तीन प्रकार के प्रत्यय होते हैं — कृत् प्रत्यय (Kṛt Pratyaya), तद्धित प्रत्यय (Taddhita Pratyaya), और स्त्री प्रत्यय (Strī Pratyaya)। कृत् प्रत्यय क्रिया से संज्ञा या विशेषण बनाते हैं, तद्धित प्रत्यय संबंध और गुण दर्शाते हैं, जबकि स्त्री प्रत्यय लिंग-परिवर्तन करते हैं। इस लेख में सभी प्रमुख प्रत्ययों के अर्थ, सूत्र और उदाहरणों सहित सरल व्याख्या दी गई है। यह सामग्री संस्कृत के विद्यार्थियों, शिक्षकों, और शोधकर्ताओं के लिए समान रूप से उपयोगी है।
संस्कृत व्याकरण में प्रत्यय (Pratyaya in Sanskrit Grammar): प्रकार, उदाहरण, सूत्र और अर्थ सहित सम्पूर्ण विवरण
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| संस्कृत व्याकरण में प्रत्यय (Pratyaya in Sanskrit Grammar): प्रकार, उदाहरण, सूत्र और अर्थ सहित सम्पूर्ण विवरण |
📘 संस्कृत व्याकरण में प्रत्यय (Pratyaya in Sanskrit Grammar)
🔹 परिचय (Introduction)
संस्कृत व्याकरण में प्रत्यय वे शब्दांश (Suffixes) हैं जो किसी धातु (Verbal Root) या प्रातिपदिक (Nominal Base) के अंत में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं।
इनके प्रयोग से —
- शब्द का अर्थ, रूप, या लिंग-वचन-कारक बदल सकता है,
- और यह परिवर्तन सूत्रों के आधार पर निश्चित होता है।
इन सूत्रों का मूल स्रोत है — पाणिनि कृत “अष्टाध्यायी”, जिसमें प्रत्ययों के प्रयोग के नियम, उनके अर्थ, और रूप-परिवर्तन का सूक्ष्म निरूपण किया गया है।
🌿 प्रत्ययों के मुख्य भेद (Main Types of Pratyayas)
संस्कृत में प्रत्ययों के तीन प्रमुख भेद माने गए हैं —
१️⃣ कृत् प्रत्यय२️⃣ तद्धित प्रत्यय३️⃣ स्त्री प्रत्यय
🪷 १. कृत् प्रत्यय (Kṛt Pratyaya)
👉 ये प्रत्यय धातुओं (Verbal Roots) के साथ जुड़कर संज्ञा, विशेषण या अव्यय बनाते हैं।
| क्रम | प्रत्यय | शेष भाग | प्रयोग का अर्थ | प्रमुख सूत्र (Aṣṭādhyāyī) | उदाहरण |
|---|---|---|---|---|---|
| १ | तुमुन् (Tumun) | तुम् | 'के लिए' (क्रियार्थक) | तुमर्थे न्वुल्तृचौ (3.4.9), तुमुन् ण्वुलौ क्रियायां क्रियार्थायाम् (3.3.10) | पठ् → पठितुम् (पढ़ने के लिए) |
| २ | क्त्वा (Ktva) | त्वा | 'करके' (पूर्वकालिक क्रिया) | समानकर्तृकयोः पूर्वकाले (3.4.21) | गम् → गत्वा (जाकर) |
| ३ | ल्यप् (Lyap) | य | 'करके' (उपसर्गयुक्त क्रिया) | विभाषाऽग्रे प्रथमपूर्वेषु (3.4.23), उपसर्गात् (1.4.59) | आङ् + गम् → आगम्य (आकर) |
| ४ | शतृ (Śatṛ) | अत् | 'करता हुआ' (वर्तमानकालिक) | लटः शतृशानचावप्रथमासमानाधिकरणे (3.2.124) | पठ् → पठन् (पढ़ता हुआ) |
| ५ | अनीयर (Anīyar) | अनीय | 'चाहिए', 'योग्य' | कृत्याः (3.1.95), तव्यत्तव्यानीयरः (3.1.96) | कृ → करणीयम् (करने योग्य) |
🌸 २. तद्धित प्रत्यय (Taddhita Pratyaya)
👉 ये प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण से जुड़कर नए संज्ञा या विशेषण शब्द बनाते हैं।
| क्रम | प्रत्यय | शेष भाग | प्रयोग का अर्थ | प्रमुख सूत्र (Aṣṭādhyāyī) | उदाहरण |
|---|---|---|---|---|---|
| १ | मतुप् (Matup) | मत् / वत् | ‘युक्त’, ‘वाला’, ‘स्वामी’ | तदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुप् (5.2.94) | धन → धनवान् (धन से युक्त) |
| २ | त्व (Tva) | त्वम् | ‘भाव’ या ‘धर्म’ (नपुंसक लिंग) | तस्य भावस्त्वतलौ (5.1.119) | मनुष्य → मनुष्यत्वम् (मनुष्यता) |
| ३ | तल् (Tal) | ता | ‘भाव’ या ‘गुण’ (स्त्रीलिंग) | तस्य भावस्त्वतलौ (5.1.119) | देव → देवता (देवत्व) |
| ४ | ठक् (Ṭhak) | इक | ‘से संबंधित’ (संबंध/समूह सूचक) | तस्येदम् (4.3.120) | धर्म → धार्मिकः (धर्म से संबंधित) |
🌼 ३. स्त्री प्रत्यय (Strī Pratyaya)
👉 ये प्रत्यय पुलिंग शब्दों को स्त्रीलिंग में परिवर्तित करते हैं।
| क्रम | प्रत्यय | शेष भाग | प्रयोग का अर्थ | प्रमुख सूत्र (Aṣṭādhyāyī) | उदाहरण |
|---|---|---|---|---|---|
| १ | टाप् (Ṭāp) | आ | अ-कारान्त शब्दों को स्त्रीलिंग बनाता है | अजाद्यतष्टाप् (4.1.4) | बाल → बाला (लड़की) |
| २ | ङीप् (Ṅīp) | ई | न्-कारान्त / ऋ-कारान्त शब्दों को स्त्रीलिंग बनाता है | ऋन्नेभ्यो ङीप् (4.1.5) | कर्तृ → कर्त्री (करने वाली) |
🕉️ सारांश (Summary)
| भेद | आधार | परिणाम | प्रमुख उपयोग |
|---|---|---|---|
| कृत् प्रत्यय | धातु | संज्ञा / विशेषण / अव्यय | क्रियार्थ, भावार्थ |
| तद्धित प्रत्यय | प्रातिपदिक | संज्ञा / विशेषण | संबंध, गुण, भाव |
| स्त्री प्रत्यय | पुलिंग शब्द | स्त्रीलिंग शब्द | लिंग-परिवर्तन |
✴️ अर्थात् — प्रत्यय संस्कृत रूपविज्ञान (Morphology) का मेरुदंड हैं, जिनके माध्यम से भाषा में नए शब्द, नए अर्थ, और व्याकरणिक संरचना विकसित होती है।
🎓 अध्येताओं हेतु टिप्पणी (Note for Learners)
अष्टाध्यायी के ये सूत्र केवल व्याकरण नहीं, बल्कि भाषा के विकास और रचना-शास्त्र के भी साक्षी हैं। प्रत्ययों के प्रयोग का गहन अभ्यास करने से —
- धातु से बनने वाले शब्दों का अर्थ स्पष्ट होता है,
- तथा भाषा-रचना की वैज्ञानिक प्रक्रिया समझ में आती है।
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