RSS शताब्दी समारोह 2025 | विजयदशमी भाषण में Mohan Bhagwat द्वारा कही गई प्रमुख बातें

Sooraj Krishna Shastri
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh – RSS) अपने शताब्दी समारोह 2025 के अवसर पर एक नए युग में प्रवेश कर रहा है। विजयदशमी पर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने अपने वार्षिक भाषण में भारत की चुनौतियों, भविष्य की दिशा और संघ की भूमिका पर गहन विचार रखे। भाषण में गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान, महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जी की सादगी का स्मरण करते हुए आत्मनिर्भर भारत, पर्यावरण संरक्षण, राष्ट्रीय एकता और सेवा-भावना पर बल दिया गया। मोहन भागवत ने आतंकवाद, नक्सलवाद, पड़ोसी देशों की अस्थिरता और वैश्विक अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि आने वाला समय भारत का है और भारत ही विश्व को नई राह दिखा सकता है। संघ के 100 वर्षों के अनुभव और शाखाओं की साधना को सामने रखते हुए उन्होंने व्यक्ति निर्माण → समाज परिवर्तन → राष्ट्रनिर्माण का संदेश दिया। इस लेख में हम शताब्दी वर्ष के अवसर पर हुए विजयदशमी भाषण 2025 का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं।

RSS शताब्दी समारोह 2025 | विजयदशमी भाषण में Mohan Bhagwat द्वारा कही गई प्रमुख बातें 

RSS शताब्दी समारोह 2025 | विजयदशमी भाषण में Mohan Bhagwat द्वारा कही गई प्रमुख बातें
RSS शताब्दी समारोह 2025 | विजयदशमी भाषण में Mohan Bhagwat द्वारा कही गई प्रमुख बातें 

1. इतिहास और प्रेरणा का स्मरण

  • इस वर्ष का विशेष महत्व गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान का 350वां वर्ष है।

    • वे “हिंद की चादर” कहलाए क्योंकि उन्होंने अत्याचार और जबरन धर्मांतरण के विरुद्ध अपना बलिदान दिया।
    • संदेश: समाज की रक्षा के लिए निस्वार्थ बलिदान और त्याग का आदर्श।
  • 2 अक्टूबर: महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती।

    • गांधी जी ने हिंद स्वराज में भारत के भविष्य का वैकल्पिक मॉडल प्रस्तुत किया।
    • शास्त्री जी – सादगी, ईमानदारी और जय जवान, जय किसान की भावना।
    • संदेश: राष्ट्रीय जीवन में चरित्र, सादगी और त्याग अनिवार्य हैं।

2. समकालीन परिस्थितियां और चुनौतियां

  • महाकुंभ (प्रयागराज): आधुनिक प्रबंधन की मिसाल, लेकिन उससे भी बढ़कर श्रद्धा और राष्ट्रीय एकात्मता का प्रतीक।
  • पहल्गाम हमला: 26 भारतीय नागरिकों की हत्या से समाज में दुख और क्रोध; लेकिन साथ ही सेना के शौर्य और नेतृत्व की दृढ़ता का चित्र सामने आया।
    • संदेश: मित्रता सबके साथ, पर सुरक्षा के लिए सजगता और शक्ति आवश्यक।
  • नक्सलवाद: शासन की कारवाई और समाज के मोहभंग से उसका प्रभाव घटा। लेकिन केवल दमन नहीं, बल्कि विकास, न्याय और सामंजस्य से स्थायी समाधान होगा।

3. आर्थिक परिदृश्य का विश्लेषण

  • भारत की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है, लेकिन पश्चिमी मॉडल की सीमाएं स्पष्ट हैं।
    • अमीरी-गरीबी का अंतर।
    • पर्यावरण विनाश।
    • आर्थिक ताकत कुछ हाथों में केंद्रित होना।
  • अमेरिका की टैरिफ नीति का उदाहरण – वैश्विक परस्पर निर्भरता की हकीकत।
  • विवेचन:
    • भारत को आत्मनिर्भर (Atmanirbhar) बनना होगा।
    • स्वदेशी और स्वावलंबन का मार्ग ही स्थायी है।
    • विश्व से सहयोग जरूरी है, पर मजबूरी नहीं – बल्कि समानता के आधार पर।

4. पर्यावरणीय संकट

  • हिमालय का संकट – ग्लेशियर पिघल रहे हैं, अनियमित वर्षा, भूस्खलन।
  • यह केवल भारत ही नहीं, पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए खतरे की घंटी।
  • विवेचन:
    • विकास नीति का पुनर्विचार आवश्यक।
    • यदि केवल भौतिक प्रगति पर ध्यान देंगे तो प्रकृति विनाश और मानव जीवन संकटग्रस्त होगा।

5. पड़ोसी देशों की अस्थिरता

  • श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश में सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल।
  • हिंसक क्रांतियां (फ्रांस की क्रांति, साम्यवादी आंदोलन) ने स्थायी समाधान नहीं दिया।
  • विवेचन:
    • हिंसक मार्ग नहीं, लोकतांत्रिक और नैतिक मार्ग ही परिवर्तन का साधन है।
    • पड़ोसी देशों की स्थिति भारत के लिए केवल भू-राजनीतिक नहीं, बल्कि आत्मीय चिंता का विषय है क्योंकि वे “हमारे अपने” हैं।

6. भारत से अपेक्षा

  • आज विश्व भारत से नए रास्ते की खोज की आशा कर रहा है।
  • नई पीढ़ी में देशभक्ति और संस्कृति पर आस्था बढ़ रही है।
  • स्वयंसेवा और सेवा-कार्य की प्रवृत्ति समाज में उभर रही है।
  • विवेचन:
    • भारतीय दृष्टि अधूरी नहीं, बल्कि समग्र (holistic) है – भौतिक, नैतिक, आध्यात्मिक तीनों स्तरों पर।
    • भारत “एकात्म मानववाद” की विचारधारा देकर विश्व को नई दिशा दे सकता है।

7. संघ का अनुभव और दृष्टिकोण

  • 100 वर्षों से संघ का कार्य मुख्यतः व्यक्ति निर्माण है।
  • शाखा का महत्व:
    • अनुशासन, सामूहिकता, सेवा और नेतृत्व का संस्कार।
    • आदतों और आचरण में परिवर्तन।
  • विवेचन:
    • “व्यक्ति निर्माण → समाज परिवर्तन → व्यवस्था परिवर्तन” यही वास्तविक और टिकाऊ मार्ग है।
    • केवल नीतियां या क्रांतियां बदलाव नहीं लातीं, बल्कि आचरण से परिवर्तन आता है।

8. राष्ट्रीय एकता और विविधता

  • भारत की पहचान विविधताओं (भाषा, धर्म, जाति, खानपान) में एकता है।
  • विदेशी विचारधाराओं को मानने वाले भी हमारे ही बंधु हैं।
  • चेतावनी:
    • विविधताओं को “भेद” में बदलने की कोशिशें हो रही हैं।
    • हिंसा, गुंडागर्दी और उकसावे की प्रवृत्ति को अस्वीकार करना होगा।
  • विवेचन:
    • भारतीय संस्कृति की अंतर्निहित एकता (Inherent Cultural Unity) ही हमारी असली शक्ति है।
    • यह संस्कृति सत्य, करुणा, सुचिता और तप पर आधारित है।

9. अंतिम संदेश

  • विश्व में स्थायी समाधान के लिए भारत को अपने आदर्श जीवन और आचरण से मार्ग दिखाना होगा।
  • भारत का धर्म केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि समाज और सृष्टि को जोड़ने वाला सार्वभौमिक सिद्धांत है।
  • संघ का कार्य: ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करना जो जीवन के हर क्षेत्र में सत्य, निस्वार्थता और समाजहित का उदाहरण बनें।

निष्कर्ष (Vivechan का सार)

  • यह भाषण केवल भारत की वर्तमान समस्याओं का विश्लेषण नहीं करता, बल्कि एक दीर्घकालिक राष्ट्रीय दृष्टि भी प्रस्तुत करता है।
  • मुख्य विचार:
    1. बलिदान, सेवा और सादगी से प्रेरणा।
    2. सुरक्षा, विकास और न्याय में संतुलन।
    3. आत्मनिर्भर और स्वदेशी मार्ग।
    4. पर्यावरण-संरक्षण और टिकाऊ नीति।
    5. हिंसा नहीं, लोकतंत्र और नैतिकता से परिवर्तन।
    6. व्यक्ति निर्माण ही मूल कुंजी।
    7. भारतीय संस्कृति ही राष्ट्रीय एकता और विश्व के लिए आशा।

👉 कुल मिलाकर यह भाषण भारत की भूमिका को “विश्व को नई दिशा देने वाले राष्ट्र” के रूप में प्रस्तुत करता है।



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