सम्प्रदान कारक (Sampradāna Kārakah) – चतुर्थी विभक्ति में प्रयोग, सूत्र, उदाहरण एवं अंतर | Sanskrit Grammar Notes

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत व्याकरण में सम्प्रदान कारक वह होता है जिसे कर्ता देने की क्रिया से संतुष्ट करता है। जानिए — सम्प्रदान कारक की परिभाषा, पाणिनि सूत्र, चतुर्थी विभक्ति नियम, विशेष प्रयोग, और कर्म कारक से अंतर।

सम्प्रदान कारक (Sampradāna Kārakah) – चतुर्थी विभक्ति में प्रयोग, सूत्र, उदाहरण एवं अंतर | Sanskrit Grammar Notes


🌿 सम्प्रदान कारक (Sampradāna Kārakah) – चतुर्थी विभक्ति (Dative Case)

🔹 परिभाषा (Definition)

संस्कृत व्याकरण में सम्प्रदान कारक वह होता है जिसे कर्ता किसी दान, अर्पण, या देने की क्रिया द्वारा संतुष्ट करना चाहता है।
इसमें सदैव चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।

सम्प्रदान कारक (Sampradāna Kārakah) – चतुर्थी विभक्ति में प्रयोग, सूत्र, उदाहरण एवं अंतर | Sanskrit Grammar Notes
सम्प्रदान कारक (Sampradāna Kārakah) – चतुर्थी विभक्ति में प्रयोग, सूत्र, उदाहरण एवं अंतर | Sanskrit Grammar Notes


🔹 १. कारक संज्ञा विधायक सूत्र (The Rule for Kāraka Designation)

सूत्र (Sūtram) अर्थ (Meaning) उदाहरण (Example)
कर्मणा यमभिप्रैति स सम्प्रदानम् (पाणिनि, अष्टाध्यायी १.४.३२) कर्ता जिस व्यक्ति को दान के कर्म द्वारा प्रसन्न या अभिप्रेत करना चाहता है, वह सम्प्रदान कहलाता है। राजा विप्राय धनं ददाति। (राजा धन देने की क्रिया से ब्राह्मण को संतुष्ट करना चाहता है। अतः ‘विप्र’ सम्प्रदान है।)

विवेचन:
यह सूत्र विशेषतः ‘दान’ की क्रिया पर आधारित है।

  • यहाँ दान का अर्थ है वस्तु को त्यागपूर्वक देना (हमेशा के लिए)
  • यदि वस्तु वापस ली जानी हो, तो वह कर्म कारक कहलाती है, सम्प्रदान नहीं

🔹 २. चतुर्थी विभक्ति विधायक सूत्र (Rule for Caturthī Vibhakti)

सूत्र (Sūtram) अर्थ (Meaning) उदाहरण (Example)
चतुर्थी सम्प्रदाने (२.३.१३) सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है। सः गुरवे नमः करोति। (वह गुरु के लिए नमस्कार करता है।)

🔹 ३. सम्प्रदान कारक के विशेष प्रयोग (Special Usages of Sampradāna Kāraka)

(क) रुच्यर्थक धातुओं के योग में

सूत्र अर्थ उदाहरण
रुच्यर्थानां प्रीयमाणः (१.४.३३) 'रुच्' (अच्छा लगना) अर्थ वाली धातुओं के योग में जिसे प्रसन्नता होती है, वह सम्प्रदान कहलाता है। मह्यं मोदकः रोचते। (मुझे लड्डू अच्छा लगता है।)
बालकाय क्रीडनं रोचते। (बालक को खेलना अच्छा लगता है।)

(ख) क्रोध, ईर्ष्या आदि अर्थ वाली धातुओं के योग में

सूत्र अर्थ उदाहरण
क्रुधद्रुहेर्ष्यासूयार्थानां यं प्रति कोपः (१.४.३७) ‘क्रुध्’ (क्रोध करना), ‘द्रुह्’ (द्रोह करना), ‘ईर्ष्य’ (जलन करना), ‘असूय्’ (निन्दा करना) आदि धातुओं के साथ जिसके प्रति भाव प्रकट होता है, वह सम्प्रदान कहलाता है। स्वामी भृत्याय क्रुध्यति। (मालिक नौकर पर क्रोध करता है।)
सः मित्राय द्रुह्यति। (वह मित्र से द्रोह करता है।)

(ग) नमः, स्वस्ति, स्वाहा आदि अव्ययों के योग में

सूत्र अर्थ उदाहरण
नमः स्वस्तिस्वाहास्वधालंवषड्योगाच्च (२.३.१६) ‘नमः’ (नमस्कार), ‘स्वस्ति’ (कल्याण हो), ‘स्वाहा’ (देवता को आहुति), ‘स्वधा’ (पितरों को अर्पण), ‘अलम्’ (पर्याप्त), और ‘वषट्’ (देवता को आह्वान) जैसे शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। शिवाय नमः। (शिव को नमस्कार।)
प्रजाभ्यः स्वस्ति। (प्रजा को कल्याण हो।)
इन्द्राय स्वाहा। (इन्द्र के लिए आहुति।)

(घ) तादर्थ्ये चतुर्थी (Purpose or Intention)

नियम अर्थ उदाहरण
प्रयोजन या उद्देश्य बताने पर चतुर्थी विभक्ति होती है। मुक्तेः हरिं भजति। (मुक्ति के लिए हरि का भजन करता है।)
पठनाय विद्यालयं गच्छति। (पढ़ने के लिए विद्यालय जाता है।)

🔹 ४. कर्म और सम्प्रदान में अंतर (Difference between Karma and Sampradāna)

दोनों में ही कभी-कभी ‘को’ शब्द (हिन्दी चिह्न) आता है, परन्तु भाव के अनुसार अंतर स्पष्ट होता है।

कारक भाव विभक्ति उदाहरण
सम्प्रदान कारक त्यागपूर्वक देना (हमेशा के लिए) — दान या अर्पण का भाव चतुर्थी विभक्ति राजा ब्राह्मणाय वस्त्रं ददाति। (राजा ब्राह्मण को वस्त्र दान करता है।)
कर्म कारक देना परन्तु वापसी अपेक्षित — सेवा या उपयोग हेतु देना द्वितीया विभक्ति सः रजकं वस्त्रं ददाति। (वह धोबी को कपड़े देता है, जो बाद में लौटाएगा।)

🌿 सारांश (Summary)

  • सम्प्रदान कारक — जिसे कर्ता देने की क्रिया से संतुष्ट करना चाहता है।
  • मुख्य सूत्र — कर्मणा यमभिप्रैति स सम्प्रदानम् (१.४.३२)
  • चतुर्थी विभक्ति में व्यक्त होता है।
  • विशेष प्रयोग — रुच्यर्थक धातु, क्रोधार्थ धातु, नमः/स्वाहा/स्वस्ति अव्यय, तथा प्रयोजनवाचक शब्दों के साथ।
  • कर्म कारक से मुख्य अंतर — “दान का स्थायित्व”।

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