यह संस्कृत श्लोक — “यज्जीव्यते क्षणमपि प्रथितं मनुष्यैः...” — जीवन के वास्तविक मूल्य को दर्शाता है। इस नीति वचन में कहा गया है कि वह जीवन ही सार्थक है जो ज्ञान (wisdom), शौर्य (courage), ऐश्वर्य (prosperity) और सद्गुणों (virtues) से सम्पन्न हो, चाहे वह केवल एक क्षण का ही क्यों न हो। केवल लंबा जीवन जी लेना महानता नहीं, बल्कि अर्थपूर्ण और गुणवान जीवन जीना ही सच्ची सफलता है। कौआ भी वर्षों तक जीकर अन्नकण खाता है, परन्तु ऐसा जीवन किसी प्रशंसा के योग्य नहीं होता। यह श्लोक हमें सिखाता है कि प्रतिष्ठा, गुण और पराक्रम से परिपूर्ण जीवन ही जीवन कहलाने योग्य है। आधुनिक सन्दर्भ में, यह हमें प्रेरित करता है कि हम अपने ज्ञान, कर्म और व्यवहार से समाज में एक सकारात्मक छाप छोड़ें। सच्चा जीवन वही है जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन सके।
सार्थक जीवन क्या है? | True Meaning of Life According to Sanskrit Shloka
🕉️ 1. संस्कृत श्लोक
🔤 2. अंग्रेजी ट्रान्सलिटरेशन (IAST)
🇮🇳 3. हिन्दी अनुवाद (भावपूर्ण)
![]() |
| सार्थक जीवन क्या है? | True Meaning of Life According to Sanskrit Shloka |
📘 4. शब्दार्थ (शब्द–शब्द)
| शब्द | अर्थ |
|---|---|
| यत् | जो (that which) |
| जीव्यते | जिया जाता है, जीवन व्यतीत होता है |
| क्षणम् अपि | एक क्षण भी |
| प्रथितम् | प्रसिद्ध, यशस्वी, ख्यात |
| मनुष्यैः | मनुष्यों द्वारा |
| विज्ञान | ज्ञान, बौद्धिकता, विवेक |
| शौर्य | वीरता, साहस |
| विभव | ऐश्वर्य, समृद्धि |
| आर्यगुणैः | श्रेष्ठ गुणों से युक्त |
| समेतम् | संयुक्त, सम्मिलित |
| तत् नाम | उसी को नाम से (वास्तविक) जीवन कहते हैं |
| प्रवदन्ति | कहते हैं, घोषित करते हैं |
| तज्ज्ञाः | वे विद्वान लोग |
| काकः अपि | कौआ भी |
| जीवति | जीवित रहता है |
| चिराय | बहुत काल तक |
| बलिं च भुङ्क्ते | बलि (अन्न, भिक्षा) खाता है |
🧩 5. व्याकरणात्मक विश्लेषण
- यज्जीव्यते — “यत्” सम्बन्धवाचक सर्वनाम, “जीव्यते” धातु √जीव (जीवन) लट् लकार, आत्मनेपदी।
- क्षणमपि — ‘क्षण’ शब्दम् (नपुंसकलिंग, द्वितीया एकवचन) + ‘अपि’ (अर्थात् ‘भी’)।
- प्रथितं मनुष्यैः — ‘प्रथितम्’ (प्रसिद्ध) कृदन्त रूप, ‘मनुष्यैः’ (तृतीया बहुवचन)।
- विज्ञानशौर्यविभवार्यगुणैः समेतम् — तृतीया बहुवचन समासित गुणों से युक्त।
- तन्नाम जीवितम् — “तत् नाम” (उसी को नाम से) + “जीवितम्” (जीवन)।
- प्रवदन्ति तज्ज्ञाः — “प्रवदन्ति” (वे कहते हैं) + “तज्ज्ञाः” (जो जीवन का अर्थ जानते हैं)।
- काकोऽपि जीवति — “काकः अपि” (कौआ भी) का संधि रूप।
- चिराय बलिं च भुङ्क्ते — “चिराय” (दीर्घकाल तक), “भुङ्क्ते” (खाता है, धातु √भुज आत्मनेपदी)।
➡️ इस प्रकार यह श्लोक अनुष्टुप् छन्द में रचित है — चार पाद, प्रत्येक में ८–८ मात्राएँ।
💫 6. भावार्थ (संक्षिप्त व्याख्या)
🌍 7. आधुनिक सन्दर्भ (Life Philosophy Today)
-
Quality over Quantity:आज का समाज लंबी आयु या पद से नहीं, बल्कि व्यक्ति के योगदान से मूल्यांकन करता है।जैसे — स्वामी विवेकानन्द, भगतसिंह, आदित्य विक्रम बिड़ला आदि ने अल्पायु में भी अमिट प्रभाव छोड़ा।
-
True Success:सफलता का अर्थ केवल भौतिक सुरक्षा नहीं, बल्कि “ज्ञान, साहस और मानवीय गुणों” का प्रयोग है।
-
Moral Lesson:जीवन की लम्बाई नहीं, उसकी गहराई और सार्थकता मायने रखती है।
-
Philosophical Parallel:यह श्लोक गीता के सिद्धान्त “कर्मण्येवाधिकारस्ते” से संगत है — कर्म और गुणपूर्ण जीवन ही सच्चा जीवन है।
🎭 8. संवादात्मक नीति–कथा
(पात्र: आर्यन — युवा वैज्ञानिक, और उसका गुरु, महर्षि वेदप्रकाश)
नीति: जीवन की दीर्घता नहीं, उसकी दिव्यता ही उसका मूल्य है।
🔱 9. निष्कर्ष
- यह श्लोक सिखाता है कि मानवता, ज्ञान और साहस के बिना जीवन मात्र अस्तित्व है।
- दीर्घायु होना उद्देश्य नहीं, अपितु “उपयोगी और प्रेरक बनना” ही जीवन की सफलता है।
- “काकोऽपि जीवति” — यह वाक्य हमें चेताता है कि केवल सांस लेना, जीवित रहना नहीं कहलाता।
🌸 सार्थक जीवन वही है जो एक क्षण में भी लोकहित, ज्ञान, और वीरता से आलोकित हो। 🌸

