यह लेख “क्षमा शत्रौ च मित्रे च” श्लोक का सरल भावार्थ, IAST ट्रान्सलिटरेशन, व्याकरण, आधुनिक शासन-नीति, leadership ethics, forgiveness vs. justice और राजधर्म का संतुलित विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
क्षमा नीति श्लोक (Forgiveness Policy shlok): शत्रु-मित्र, साधु-राजा और अपराधियों पर सही दृष्टिकोण
1. श्लोक (देवनागरी)
2. IAST ट्रान्सलिटरेशन
3. हिन्दी अनुवाद (सुस्पष्ट, भावपूर्ण)
सरल वाक्य: “दुश्मन और मित्रों के प्रति क्षमा यतियों के लिए शोभा है; पर राजाओं के लिए अपराधियों के प्रति क्षमा करना दोष है।”
![]() |
| क्षमा नीति श्लोक (Forgiveness Policy shlok): शत्रु-मित्र, साधु-राजा और अपराधियों पर सही दृष्टिकोण |
4. शब्दार्थ (प्रत्येक शब्द का संक्षेप अर्थ)
- क्षमा — क्षमा, सहनशीलता, क्षमाशीलता (forbearance, forgiveness)
- शत्रौ — शत्रु में (लोकात्-स्थानीय रूप — locative singular of u-stem शत्रु) — “in/with regard to an enemy”
- च — और / तथा
- मित्रे — मित्र में (locative singular of मित्र-a-stem) — “in/with regard to a friend”
- यतीनाम् — यतीनां (gen. pl. of यती ‘यति’ अर्थात् साधु/सन्न्यासी) — “of ascetics / of those who have renounced”
- एव — निश्चयार्थक-उपसर्ग: ही/निश्चित रूप से/वास्तव में (indeed, surely)
- भूषणम् — आभूषण, शोभा, अलंकार (ornament, adornment; predicate neuter)
- अपराधिषु — अपराधियों में/अपराधियों के प्रति (locative plural of अपराधी) — “towards offenders”
- सत्त्वेषु — (इस स्थान पर कुछ भाषिक अनिश्चितता है — नीचे विवेचना देखें)
- नृपाणां — नृपाणाम् (gen. pl. of नृप — ‘राजा’) — “of kings”
- सैव — सः एव / वही तो (emphatic: exactly that)
- दूषणम् — दोष, दोषत्व (defect, blemish, fault)
5. व्याकरणात्मक विश्लेषण (विस्तृत)
संपूर्ण वाक्य-रचना (clause structure)
यह श्लोक दो अर्धवाक्यों में विभक्त है:
-
क्षमा शत्रौ च मित्रे च यतीनामेव भूषणम्— (क्षमा … भूषणम्) — यहाँक्षमाकर्ता (या विषय);यतीनाम्कर्म-सम्बन्धी (जाति बताने वाला genitive) — अर्थ: “यतियों के लिए क्षमा … भूषणम्।”शत्रौ च मित्रे चदोनों स्थलों/परिस्थितियों का उल्लेख (locative) — “शत्रु में और मित्र में”।एवने बल दिया — “निश्चित रूप से।” अतः पूरा: “शत्रु और मित्र दोनों में क्षमा यतियों के लिए ही वास्तव में आभूषण है।” -
अपराधिषु सत्त्वेषु नृपाणां सैव दूषणम्— यहाँ केंद्रीय भाग:नृपाणां(राजाओं का gen.) — औरदूषणम्(predicative neuter) ;सैव(emphatic).अपराधिषु(locative plural) — “अपराधियों के प्रति/उनके मामले में”। यदिसत्त्वेषुको भी locative-plural माना जाए तो अर्थ उलझेगा; इसलिए संभवतःसत्त्वेषुछंद-सामंजस्य हेतु जोड़ा गया रूप है या ‘सत्त्वेषु’ का अर्थ यहाँ = ‘सत्ताओं (राज)-सम्बन्धी’ — पर इस अर्थ-निर्णय में अनिश्चितता है। सबसे सरल और सुबोध पढ़न: “अपराधिषु — (in regard to offenders) — नृपाणां सैव दूषणम् (is indeed a defect for kings).”
रूप-विश्लेषण (case endings) — शब्द दर शब्द
- क्षमा — स्त्रीलिङ्ग, एकवचन, प्रथमा (nominative singular) — विषय / कर्ता।
- शत्रौ — शत्रु-उ-अन्त वाला पद; locative singular = शत्रौ — “in/with respect to an enemy”।
- मित्रे — मित्र (a-stem) का locative singular = मित्रे — “in/with respect to a friend”।
- यतीनाम् — यति (masc/fem) का genitive plural = यतीन- + ं, यानी “of the ascetics / of the renunciates”।
- एव — अव्यय (indeed) — कारक-नहीं, बलार्थी।
- भूषणम् — neuter, nominative singular — प्रधनवचन (predicate) — “ornament/beauty”।
- अपराधिषु — अपराधी (i-stem) का locative plural = अपराधिषु — “in/with respect to offenders”।
- सत्त्वेषु — (यदि यथावत् यहाँ रखा जाए तो) सत्त्व (स्त्र/पद?) का locative plural — पर शुद्ध रूप से ‘सत्त्व’ का पारिभाषिक अर्थ ‘गुण/सत्त्व’ है; पर इस संदर्भ में कठिन है — (नीचे स्पष्टीकरण)।
- नृपाणां — नृप (राजा) का genitive plural = नृपाणाम् — “of kings”।
- सैव — सः + एव — निश्चयार्थक अव्यय।
- दूषणम् — neuter nominative singular — “defect/blemish” (predicate)।
6. भाव-विस्तार / अर्थ-समझ (semantic reading)
श्लोक एक नीति-सूत्र/नीतिपरक वचन है: क्षमा को किसी भी सामाजिक-चरित्र के संदर्भ में अलग-अलग माना गया है — साधु/यतियों के जीवन में क्षमा उनके नैतिक अलंकरण/गुण-अलंकार की तरह है, पर जहाँ शासन या सुरक्षा का प्रश्न है — जहाँ अपराध पर दंड तथा व्यवस्था बनाए रखना आवश्यक है — वहाँ राजा के लिए अपराधियों के प्रति अति क्षमाशील होना अनुचित है, वह शासन के लिए कमजोरी/दोष की तरह है।
संक्षेप: व्यक्तिगत/आध्यात्मिक परिस्थितियों में क्षमा पुण्य है; सार्वजनिक/राजनीतिक-व्यवस्थागत संदर्भ में अनियोजित क्षमा व्यवस्था के पतन का कारण बन सकती है।
7. आधुनिक सन्दर्भ (समकालीन विवेचन और नीतिगत उपयोग)
7.1 शासन-नीति और क़ानून-व्यवस्था
- आज के समय में भी यही द्वैत दिखाई देता है: व्यक्तिगत स्तर पर माफी, क्षमा-संस्कृति व पुनर्निर्माण (rehabilitation) की प्रमुखता है; पर सार्वजनिक रूप से अपराध-नियंत्रण, rule-of-law और न्याय प्रणाली के संरक्षण के लिए दंडानुशासन आवश्यक है।
- श्लोक का तर्क आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में “स्वतन्त्रता का संरक्षण” बनाम “दया के अति प्रयोग से व्यवस्था का क्षरण” — के बीच संतुलन बताता है।
7.2 restorative justice vs. retributive justice
- श्लोक के भाव में आधुनिक शब्दों में कहा जा सकता है: restorative justice (पुनर्संस्थापन, अपराधी का सुधार) को समाज तथा व्यक्तिगत स्तर पर प्रोत्साहित किया जा सकता है; पर यदि शासक/प्रशासन बार-बार दंड को नजरअंदाज कर दे, तो यह समाज के लिए हानिकारक हो सकता है — इसलिए नीतिगत स्तर पर माफी और दंड में विवेकपूर्ण संतुलन चाहिए।
7.3 नैतिक नेतृत्व और जवाबदेही
- श्लोक नेतृत्व की नैतिकता पर भी इंगित करता है: नेतृत्व को कठोरता और दया—दोनों में विवेक रखकर निर्णय लेना चाहिए। दया तब गुण है जब वह स्थिरता और सुरक्षा के साथ समझौता न करे।
7.4 आधुनिक उदाहरण (सन्निहित, बिना नाम लेकर)
- किसी राज्य-प्रमुख द्वारा हाई-प्रोफ़ाइल अपराधियों को बार-बार माफी देना या सज़ा में नरमी दिखाना सार्वजनिक विश्वास कम कर सकता है; दूसरी ओर, छोटे अपराधियों के पुनर्वास पर ध्यान देना सामजिक सुधार की दिशा है। श्लोक का निहितार्थ यही संतुलन सिखाता है।
8. संवादात्मक नीति-कथा (नीति-वाद का छोटा संवाद/उपदेशिक कथा)
निष्कर्ष-कथा: माफी और दंड का मिश्रित, उद्देश्यपरक उपयोग ही सबसे बुद्धिमत्तापूर्ण नीति है — यहीं श्लोक का व्यावहारिक संदेश है।
9. नीतिगत टिप्पणी (policy takeaway)
- व्यक्तिगत स्तर — क्षमा नैतिक उन्नयन का साधन है; शिक्षा और आत्म-संयम में सहायक।
- शासन/सार्वजनिक स्तर — क्षमा को नीति नहीं बनाना चाहिए जहाँ उससे व्यवस्था और सुरक्षा प्रभावित हों; स्पष्ट-कानून, जवाबदेही और नीतिगत पुनर्वास का समन्वय आवश्यक।
- व्यवहारिक सुझाव — कानून में पुनरावृत्ति वाले अपराधियों के लिए कड़ी नीति; प्रथम-बार के अपराधियों के लिए सुधारात्मक कार्यक्रम; नेता-निर्णयों में पारदर्शिता व न्यायसंगत दंड-मापदण्ड।
10. निष्कर्ष (संक्षेप)
श्लोक ने दो परस्पर-विभिन्न क्षेत्र घोषित किए हैं: आध्यात्मिक/व्यक्तिगत और राजनैतिक/नियामक। जहाँ साधु के लिए क्षमा अलंकार है — वहीं शासन की दृष्टि से अपराधों पर उचित दंड की अनिवार्यता होती है। आज के संदर्भ में श्लोक हमें यह सिखाता है कि दया और न्याय—दोनों का विवेकपूर्ण संतुलन जरूरी है। क्षमा तब पुण्य है जब वह व्यक्ति के भीतर परिवर्तन लाए; पर जब वह व्यवस्था को खोखला कर दे, तो वह नेता के लिए दोष बन जाती है।

