This detailed article presents the complete Class 9 Sanskrit (Shemushi Part 1) Chapter 12 – ‘वाङ्मनः प्राणस्वरूपम्’ in a fully organized, student-friendly, exam-oriented format. All questions and answers—एकपदेन उत्तरम्, पूर्णवाक्येन उत्तरम्, यथायोग्यं योजयत, विलोम शब्द, तुमुन् प्रत्यय, संधि, प्रश्न निर्माण, रिक्तस्थान पूर्ति—are neatly arranged in tables for easy understanding. The content follows 100% NCERT accuracy without changing original words, making it ideal for CBSE students, teachers, and competitive exam aspirants. This chapter explains the deep Vedic concept of वाक् (speech), मनः (mind), and प्राण (life-force) through the dialogue between आरणि and श्वेतकेतु taken from the Chandogya Upanishad.
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Class 9 Sanskrit Chapter 12 – वाङ्मनः प्राणस्वरूपम् अभ्यास | Complete Questions Answers and Notes
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| Class 9 Sanskrit Chapter 12 – वाङ्मनः प्राणस्वरूपम् अभ्यास | Complete Questions Answers and Notes |
📘 कक्षा 9 – संस्कृत (शेमुषी भाग 1)
द्वादशः पाठः – वाङ्मनःप्राणस्वरूपम्
(अभ्यासः)
🟦 प्रश्न 1: एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर दें)
| क्र.सं. | प्रश्नः | उत्तरम् |
|---|---|---|
| (क) | अन्नस्य कीदृशः भागः मनः? | अणिष्ठः / लघुतमः |
| (ख) | मथ्यमानस्य दनः अणिष्ठः भागः किं भवति? | सर्पिः / घृतम् |
| (ग) | मनः कीदृशं भवति? | अन्नमयम् |
| (घ) | तेजोमयी का भवति? | वाक् / वाणी |
| (ङ) | पाठेऽस्मिन् आरुणिः कम् उपदिशति? | श्वेतकेतुम् / स्वपुत्रम् |
| (च) | “वत्स! चिरञ्जीव” इति कः वदति? | आरुणिः |
| (छ) | अयं पाठः कस्मात् उपनिषदः संगृहीतः? | छान्दोग्यात् |
🟦 प्रश्न 2: पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरा वाक्य लिखें)
| क्र.सं. | प्रश्नः | उत्तरम् |
|---|---|---|
| (क) | श्वेतकेतुः सर्वप्रथमम् आरुणिं कस्य स्वरूपस्य विषये पृच्छति? | श्वेतकेतुः सर्वप्रथमम् आरुणिं मनसः स्वरूपस्य विषये पृच्छति। |
| (ख) | आरुणिः प्राणस्वरूपं कथं निरूपयति? | आरुणिः प्राणस्वरूपं इत्थं निरूपयति यत् पीतानाम् अपां यः अणिष्ठः सः प्राणः भवति। |
| (ग) | मानवानां चेतांसि कीदृशानि भवन्ति? | यादृशम् अन्नादिकं मानवाः गृह्णन्ति तादृशानि एव मानवानाम् चेतांसि भवन्ति। |
| (घ) | सर्पिः किं भवति? | मथ्यमानस्य दनः यो अणिमा ऊर्ध्वं समुदीषति तत् सर्पिः भवति। |
| (ङ) | आरुणेः मतानुसारं मनः कीदृशं भवति? | आरुणेः मतानुसारं अशितस्य अन्नस्य यः अणिष्ठः तत् एव मनः भवति। |
🟦 प्रश्न 3 (अ): यथायोग्यं योजयत (सही मिलान करें)
| स्तम्भ ‘अ’ | स्तम्भ ‘ब’ |
|---|---|
| मनः | अन्नमयम् |
| प्राणः | आपोमयः |
| वाक् | तेजोमयी |
🟦 प्रश्न 3 (आ): विलोमपदानि (विलोम शब्द)
| पदम् | विलोमपदम् |
|---|---|
| गरिष्ठः | अणिष्ठः |
| अधः | ऊर्ध्वम् |
| एकवारम् | भूयः |
| अनवधीतम् | अवधीतम् |
| किञ्चित् | सर्वम् |
🟦 प्रश्न 4: प्रकृति–प्रत्यय–संयोगः (तुमुन् प्रत्यय)
| धातुः + तुमुन् | निर्मितं पदम् |
|---|---|
| श्रु + तुमुन् | श्रोतुम् |
| वन्द् + तुमुन् | वन्दितुम् |
| पठ् + तुमुन् | पठितुम् |
| कृ + तुमुन् | कर्तुम् |
| वि + ज्ञा + तुमुन् | विज्ञातुम् |
| वि + आ + ख्या + तुमुन् | व्याख्यातुम् |
🟦 प्रश्न 5: रिक्तस्थानानि पूरयत (खाली स्थान भरें)
| क्र.सं. | वाक्यम् |
|---|---|
| (क) | अहं किञ्चित् प्रष्टुम् इच्छामि। |
| (ख) | मनः अन्नमयं भवति। |
| (ग) | सावधानं शृणु। |
| (घ) | तेजस्वि नौ अधीतम् अस्तु। |
| (ङ) | श्वेतकेतुः आरुणेः शिष्यः आसीत्। |
🟦 प्रश्न 5 (अ): वाक्य-रचना
| क्र.सं. | वाक्यम् |
|---|---|
| (क) | अहम् गीतायाः सन्देशम् उपदिशामि। |
| (ख) | अहम् प्रातः पितरम् प्रणमामि। |
| (ग) | अहम् स्वपुत्रम् गन्तुम् आज्ञापयामि। |
| (घ) | अहम् गुरुम् प्रश्नम् पृच्छामि। |
| (ङ) | अहम् अधुना सम्यक् अवगच्छामि। |
🟦 प्रश्न 6 (अ): सन्धि कुरुत (संधि करें)
| विच्छेदः | सन्धिपदम् |
|---|---|
| अशितस्य + अन्नस्य | अशितस्यान्नस्य |
| इति + अपि + अवधार्यम् | इत्यप्यवधार्यम् |
| का + इयम् | केयम् |
| नौ + अधीतम् | नावधीतम् |
| भवति + इति | भवतीति |
🟦 प्रश्न 6 (आ): प्रश्ननिर्माणं कुरुत
| उत्तरवाक्यम् | प्रश्नवाक्यम् |
|---|---|
| मथ्यमानस्य दधनः अणिमा ऊर्ध्वं समुदीषति। | कीदृशस्य दधनः अणिमा ऊर्ध्वं समुदीषति? |
| भवता घृतोत्पत्तिरहस्यं व्याख्यातम्। | केन घृतोत्पत्तिरहस्यं व्याख्यातम्? |
| आरुणिम् उपगम्य श्वेतकेतुः अभिवादयति। | आरुणिम् उपगम्य कः अभिवादयति? |
| श्वेतकेतुः वाग्विषये पृच्छति। | श्वेतकेतुः किम् पृच्छति? |
🟦 प्रश्न 7: पाठस्य सारांशः
| क्र.सं. | बिन्दुः |
|---|---|
| 1 | महर्षेः आरुणेः पुत्रः श्वेतकेतुः आसीत्। |
| 2 | श्वेतकेतुः स्वपितरम् वाक्–मनः–प्राणादीनां विषये अपृच्छत्। |
| 3 | आरुणिः अवदत् यत् अशितस्य अन्नस्य यः लघुत्तमः भागः तत् मनः भवति। |
| 4 | पीयमानानाम् अपां यः अणिमा ऊर्ध्वं समुदीषति सः एव प्राणः भवति। |
| 5 | अशितस्य तेजसा यः अणिष्ठः सा वाक् भवति। |
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