दक्ष प्रजापति के वंश का वर्णन

Sooraj Krishna Shastri
By -
0
यह चित्र दक्ष प्रजापति के वंश का अद्भुत और पारंपरिक भारतीय शैली में चित्रण करता है। इसमें दक्ष प्रजापति को उनके दिव्य आभा के साथ दर्शाया गया है, और उनके वंशजों के प्रतीक रूप में देवता, असुर, ऋषि और अन्य प्राणी एक स्वर्गीय परिवेश में उपस्थित हैं। यह दृश्य प्राचीन ग्रंथों की महिमा को जीवंत रूप देता है।

यह चित्र दक्ष प्रजापति के वंश का अद्भुत और पारंपरिक भारतीय शैली में चित्रण करता है। इसमें दक्ष प्रजापति को उनके दिव्य आभा के साथ दर्शाया गया है, और उनके वंशजों के प्रतीक रूप में देवता, असुर, ऋषि और अन्य प्राणी एक स्वर्गीय परिवेश में उपस्थित हैं। यह दृश्य प्राचीन ग्रंथों की महिमा को जीवंत रूप देता है।



 दक्ष प्रजापति के वंश का वर्णन भागवत पुराण के चतुर्थ स्कंध और षष्ठ स्कंध में विस्तार से किया गया है। दक्ष प्रजापति सृष्टि के प्रारंभिक प्रजापालकों में से एक थे। उन्हें सृष्टि के विस्तार का कार्य ब्रह्मा जी से सौंपा गया था। दक्ष के वंशजों का उल्लेख धर्म और सृष्टि के क्रम को समझाने के लिए किया गया है।

दक्ष प्रजापति का परिचय

  • दक्ष प्रजापति भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र थे।
  • उनका जन्म ब्रह्मा की दाहिनी अँगुली से हुआ।
  • दक्ष का अर्थ है "कुशल" या "योग्य," और उन्होंने अपने नाम के अनुरूप सृष्टि के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • दक्ष की दो प्रमुख पत्नियाँ थीं:

1. प्रसूति (स्वायंभुव मनु और शतरूपा की पुत्री)

2. असिक्नी

प्रसूति के साथ दक्ष की संताने

दक्ष और प्रसूति के 16 कन्याएँ हुईं, जिनमें से 13 का विवाह धर्म से हुआ। इनसे धर्म और सृष्टि का विस्तार हुआ।

प्रमुख कन्याएँ:

1. श्रद्धा

2. मैत्री

3. दया

4. शांति

5. तुष्टि

6. पुष्टि

7. क्रिया

8. उन्नति

9. बुद्धि

10. मेधा

11. तितिक्षा

12. ह्री

13. मूर्ति: मूर्ति से भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ।

दक्ष और सती की कथा

दक्ष की कन्या सती का विवाह भगवान शिव से हुआ। दक्ष ने शिव का अपमान किया, जिसके कारण सती ने अपने प्राण त्याग दिए। बाद में भगवान शिव के वीरभद्र ने दक्ष का वध कर दिया। लेकिन शिव की कृपा से दक्ष को पुनः जीवन मिला और उन्होंने भगवान शिव की महिमा को स्वीकार किया।

असिक्नी के साथ दक्ष की संताने

  • दक्ष ने असिक्नी से विवाह किया और उनके 10,000 पुत्र हुए, जिन्हें हारीयश्व कहा गया। ब्रह्मचारी नारद मुनि ने उन्हें आत्मज्ञान और वैराग्य का उपदेश दिया, जिसके बाद वे सभी संसार छोड़कर तपस्या के लिए चले गए।
  • इसके बाद दक्ष के 1,000 अन्य पुत्र हुए, जिन्हें शबलाश्व कहा गया। नारद मुनि ने उन्हें भी वैराग्य का मार्ग दिखाया, और वे भी तपस्या के लिए चले गए।

60 कन्याओं का जन्म

  • जब पुत्रों के संसार छोड़ने से दक्ष दुखी हुए, तो उन्होंने असिक्नी से 60 कन्याओं को जन्म दिया। इन 60 कन्याओं का विवाह विभिन्न ऋषियों और देवताओं से हुआ।
  • 10 कन्याएँ धर्म को दी गईं।
  • 13 कन्याएँ कश्यप को दी गईं।
  • 27 कन्याएँ चंद्रदेव को दी गईं।
  • शेष कन्याओं का विवाह अन्य प्रजापतियों और ऋषियों से हुआ।

कश्यप और दक्ष की कन्याएँ

दक्ष की 13 कन्याएँ जो कश्यप को दी गईं, वे सृष्टि के विस्तार के लिए महत्वपूर्ण थीं। इनसे प्रमुख वंश और जातियाँ उत्पन्न हुईं:

1. अदिति: देवताओं की माता।

2. दिति: दैत्यों (राक्षसों) की माता।

3. दनु: दानवों की माता।

4. कला: कालकेयों की माता।

5. अनयु: म्लेच्छों की माता।

6. सुरसा: नागों की माता।

7. सुरभि: गौओं और भैंसों की माता।

8. विनता: पक्षियों (गरुड़ और अरुण) की माता।

9. तम्रा: अन्य पक्षियों की माता।

10. क्रोधवशा: दैत्य पशुओं की माता।

11. इला : वृक्षों और औषधियों की माता।

12. कद्रू: नागों की माता।

13. मुनि: अप्सराओं की माता।

श्लोक:

कश्यपाय प्रजासर्गं दक्षोऽदाद्दुहितृः प्रियः।

तासां ते पतयः सर्गं जगतो जगृहुस्ततः।।

(भागवत पुराण 6.6.25)

भावार्थ:

दक्ष ने अपनी कन्याओं को कश्यप आदि को दिया, जिन्होंने सृष्टि के विभिन्न प्राणियों का निर्माण किया।

27 नक्षत्र कन्याएँ

  • दक्ष की 27 कन्याओं का विवाह चंद्रदेव से हुआ। ये 27 कन्याएँ ज्योतिष शास्त्र के नक्षत्रों के रूप में प्रसिद्ध हैं।
  • ये नक्षत्र इस प्रकार हैं: अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, और रेवती।

दक्ष प्रजापति के वंश की विशेषताएँ

1. सृष्टि का विस्तार: दक्ष के वंश से देवता, दानव, मनुष्य, पशु-पक्षी और अन्य जीव उत्पन्न हुए।

2. धर्म और कर्तव्य: दक्ष का वंश सृष्टि में धर्म और नियमों की स्थापना के लिए महत्वपूर्ण था।

3. प्रकृति और संतुलन: उनकी संतानों ने पृथ्वी पर जीवन के संतुलन को बनाए रखा।

निष्कर्ष

दक्ष प्रजापति का वंश सृष्टि के निर्माण और धर्म के प्रचार में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनकी कथा यह सिखाती है कि हर जीव सृष्टि के चक्र का एक महत्वपूर्ण अंग है और भगवान की योजना का हिस्सा है। दक्ष के वंशजों के माध्यम से सृष्टि के विभिन्न वर्गों का विकास हुआ और धर्म की स्थापना हुई।

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!