ग्रहों के वर्ण (जाति/वर्ण व्यवस्था) तथा उनके सत्त्व-रजस्-तमस् गुण
प्रस्तुत श्लोक-संग्रह एवं टिप्पणी ग्रहों के वर्ण (जाति/वर्ण व्यवस्था) तथा उनके सत्त्व-रजस्-तमस् गुण पर आधारित है, जो पारंपरिक भारतीय ज्योतिष, धर्मशास्त्र, एवं पुरुषार्थ-चिन्तन के अत्यंत महत्वपूर्ण पक्ष हैं।
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| ग्रहों के वर्ण (जाति/वर्ण व्यवस्था) तथा उनके सत्त्व-रजस्-तमस् गुण | 
इसे हम अत्यंत व्यवस्थित, सारगर्भित और शास्त्रीय रूप में चार स्तरों पर प्रस्तुत करते हैं—
🧭 १. ग्रहों का वर्ण (जाति अनुसार वर्गीकरण)
📜 श्लोक (22):
गुरुशुक्रौ विप्रवर्णौ कुजार्कौ क्षत्रियौ द्विज।शशिसौम्यौ वैश्यवर्णौ शनिः शूद्रो द्विजोत्तम॥
📘 भावार्थ:
- गुरु व शुक्र — ब्राह्मण (ज्ञान, शिक्षा, आचार्यत्व)
 - मंगल व सूर्य — क्षत्रिय (शौर्य, नेतृत्व, उग्रता)
 - चन्द्र व बुध — वैश्य (वणिज्य, संवेदना, व्यवहारिकता)
 - शनि — शूद्र (सेवा, श्रम, निम्नवर्ग)
 
📊 सारणी रूप में:
| ग्रह | वर्ण (जाति) | विवरण | 
|---|---|---|
| गुरु | ब्राह्मण (श्रेष्ठ) | श्रोत्रिय, धर्मज्ञ | 
| शुक्र | ब्राह्मण (मध्यम) | शास्त्रज्ञ, रतिकला पारंगत | 
| सूर्य | क्षत्रिय (श्रेष्ठ) | राजकीय, आत्मतेजस्वी | 
| मंगल | क्षत्रिय (मध्यम) | योधा, पराक्रमी | 
| चन्द्र | वैश्य (उदार) | भावुक, जनसेवी | 
| बुध | वैश्य (चालाक) | व्यापारी, वाणिज्यनिपुण | 
| शनि | शूद्र (सेवक) | श्रमिक, नियंता | 
⚠️ नोट: यह वर्ण विभाजन गुणात्मक है, न कि जातिगत। ग्रहों के प्रभावस्वरूप व्यक्ति में विशिष्ट गुणों का प्राधान्य होता है।
☯️ २. ग्रहों के गुण: सत्त्व, रजस्, तमस्
📜 श्लोक (23):
जीवसूर्येन्दवः सत्त्वं बुधशुक्रौ रजस्तथा।सूर्यपुत्रधरापुत्रौ तमःप्रकृतिकौ द्विज॥
📘 भावार्थ:
- गुरु (जीव), सूर्य, चन्द्रमा — सत्त्वगुणी
 - बुध, शुक्र — रजोगुणी
 - शनि (सूर्यपुत्र), मंगल (धरापुत्र) — तमोगुणी
 
📊 सारणी रूप में:
| ग्रह | गुण (प्रकृति) | व्याख्या | 
|---|---|---|
| गुरु | सत्त्वगुण | शुद्धता, ज्ञान | 
| सूर्य | सत्त्वगुण | तेज, आत्मबल | 
| चन्द्र | सत्त्वगुण | शांति, सौम्यता | 
| बुध | रजोगुण | चंचलता, तर्क, बुद्धि | 
| शुक्र | रजोगुण | रति, रस, विलास | 
| शनि | तमोगुण | धीमता, सेवा, कठिनता | 
| मंगल | तमोगुण | उग्रता, हिंसा, त्वरा | 
🌀 ३. विशेष वर्ण-गुणानुसार स्थान निर्धारण
| ग्रह | वर्ग/स्थान | विशेष विशेषण | 
|---|---|---|
| गुरु | ब्राह्मण (श्रेष्ठ) | शास्त्रज्ञ, धर्माचार्य | 
| शुक्र | ब्राह्मण (मध्यम) | कला-रस-प्रिय, ज्ञान का व्यापारी | 
| सूर्य | क्षत्रिय (श्रेष्ठ) | राजाधिप, तेजस्वी नेता | 
| मंगल | क्षत्रिय (मध्यम) | सेनापति, वीर | 
| चन्द्र | वैश्य (उदार) | करुणाशील, पोषक | 
| बुध | वैश्य (धूर्त) | गणक, व्यापारी | 
| शनि | शूद्र (सेवक) | श्रमिक, तपस्वी | 
💠 राहु व केतु भी तमोगुणी, शूद्रतुल्य एवं संकरवर्णीय माने गए हैं, यद्यपि उनका शास्त्रीय वर्णन विशेषत: "ग्रहगुणपारिजात", "मंत्रमहोदधि", "फलकमाला" आदि ग्रंथों में किया गया है।
🔍 ४. शास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में प्रयोग
- शुभाशुभ विचार: सत्त्वगुणी ग्रह प्रायः शुभ होते हैं, रजस्–मिश्रित फल देते हैं, तमस्–कष्टदायक।
 - वर-वधू मिलान, दशा-अन्तर्दशा, राजयोग निर्माण, चरित्र अनुमान, आदि में इन गुणों का प्रयोग किया जाता है।
 - संस्कृति में समानुपातिक दृष्टिकोण:
ब्राह्मण = गुरुत्व, क्षत्रिय = तेज/शौर्य, वैश्य = चतुरता/सामर्थ्य, शूद्र = सेवा/स्थिरता।
 
✨ निष्कर्ष (संक्षेप में):
| ग्रह | वर्ण | गुण | प्रकृति/मुख्य प्रभाव | 
|---|---|---|---|
| गुरु | ब्राह्मण | सत्त्व | ज्ञान, धर्म | 
| शुक्र | ब्राह्मण | रजस् | सौंदर्य, रति | 
| सूर्य | क्षत्रिय | सत्त्व | तेज, आत्मशक्ति | 
| मंगल | क्षत्रिय | तमस् | बल, रक्त | 
| चन्द्रमा | वैश्य | सत्त्व | भाव, मन | 
| बुध | वैश्य | रजस् | बुद्धि, वाणिज्य | 
| शनि | शूद्र | तमस् | सेवा, तप | 

