अप्रकाशक दोषकारी उपग्रहों—धूम, व्यतिपात, परिवेष, इन्द्रचाप और उपकेतु—का विश्लेषण
बृहत्पाराशर होराशास्त्र से ग्रहों के अप्रकाशक दोषकारी उपग्रहों—धूम, व्यतिपात, परिवेष, इन्द्रचाप और उपकेतु—का अत्यंत गंभीर और गूढ़ संदर्भ यहां प्रस्तुत किया गया है। आइए इसे श्लोकानुसार, भावार्थ, गणनात्मक पद्धति और ज्योतिषीय दृष्टि से व्यवस्थित रूप में स्पष्ट करें।
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अप्रकाशक दोषकारी उपग्रहों—धूम, व्यतिपात, परिवेष, इन्द्रचाप और उपकेतु—का विश्लेषण |
🌑 अप्रकाश ग्रह / उपग्रह – व्याख्या सहित
📜 मूल श्लोक
चत्वारो राशयो भानौ सत्रिभागास्त्रयोदश ।युत्वा धूमो महादोषः सर्वकर्मविनाशकः ॥६४॥
धूमो मण्डलतः शुद्धो व्यतिपातोऽपि दोषदः ।षड्भोगो व्यतीपातः परिवेषस्तु दोषकृत् ॥६५॥
परिवेषश्च्युतश्चक्रादिन्द्रचापस्तु दोषदः ।विन्यंशात्यष्टिभागाद्यश्चापः केतुः खगोऽशुभः ॥६६॥
एकराशियुतः केतुः सूर्यतुल्यः प्रजायते ।अप्रकाशग्रहाश्चैते पापा दोषप्रदाः स्मृताः ॥६७॥
सूर्येन्दुलग्नगेष्वेषु वंशायुज्ञाननाशनम् ।इति धूमादिदोषाणां स्थितिः पद्मासनोदिता ॥६८॥
✍️ सरल हिन्दी भावार्थ
- सूर्य से 4 राशि 3° 20′ (4R 3°20′) आगे बढ़ाने पर जो बिंदु प्राप्त होता है, वह धूम (Dhoom) कहलाता है।
- यह ग्रह दृष्टिगोचर नहीं होता, परंतु महादोष उत्पन्न करता है। यह सभी शुभ कार्यों के विनाशक रूप में जाना गया है।
- इस धूम को 12 राशियों (360°) में से घटाने पर व्यतिपात (Vyatipāta) प्राप्त होता है।
- व्यतिपात में 6 राशि जोड़ने पर परिवेष (Pariveṣa) नामक बिंदु प्राप्त होता है।
- 2 राशियों (60°) से परिवेष को घटाने पर इन्द्रचाप (Indrachāpa) प्राप्त होता है।
- इन्द्रचाप में 6°40′ जोड़ने से उपकेतु (Upaketu) प्राप्त होता है।
- उपकेतु में एक राशि (30°) जोड़ने पर पुनः स्पष्ट सूर्य की स्थिति प्राप्त होती है – इस प्रकार यह चक्र पूर्ण होता है।
🔁 गणनात्मक चक्र — Step-by-Step गणना प्रक्रिया
चरण | गणना | फल |
---|---|---|
1. | सूर्य स्पष्ट + 4R 3°20′ | धूम स्पष्ट |
2. | 12R - धूम | व्यतिपात |
3. | व्यतिपात + 6R | परिवेष |
4. | परिवेष - 2R | इन्द्रचाप |
5. | इन्द्रचाप + 6°40′ | उपकेतु |
6. | उपकेतु + 1R | पुनः सूर्य स्पष्ट |
🔥 दोष का स्वरूप
- ये पांचों बिंदु अप्रकाशक ग्रह कहलाते हैं — अर्थात् ये खगोलीय पिण्ड नहीं हैं, परंतु इनका ज्योतिषीय प्रभाव अत्यंत घातक माना गया है।
- ये पापग्रहों की श्रेणी में गिने जाते हैं और विशेषतः यदि ये:
- लग्न (Ascendant) में,
- चन्द्रमा (Moon) के साथ,
- सूर्य (Sun) के साथहों, तो व्यक्ति की वंश (lineage), आयु (longevity), ज्ञान (wisdom) का नाश करते हैं।
🧠 ज्योतिषीय संकेत (Predictive Indication)
- यह विचार सूक्ष्म फलादेश में उपयोगी होता है, विशेषतः:
- कष्टदायक ग्रह दशाओं में (माहदशा/अन्तरदशा)
- जन्मकुंडली में अप्रत्याशित संकट या क्लेश के कारण
- शुद्धात्मिक या वंशानुगत दोषों के विश्लेषण में
🔍 उदाहरण (अनुमानित)
यदि सूर्य का स्पष्ट स्थान = 9°0′57″ है (तुला राशि में):
गणना चरण | मान | ग्रह |
---|---|---|
9°0′57″ + 4R 3°20′ = | 13°4′17″ | धूम |
360° - 133°4′17″ = | 226°55′43″ | व्यतिपात |
व्यतिपात + 6R = | 316°55′43″ | परिवेष |
परिवेष - 2R = | 256°55′43″ | इन्द्रचाप |
इन्द्रचाप + 6°40′ = | 263°35′43″ | उपकेतु |
उपकेतु + 1R = | 293°35′43″ = पुनः सूर्य स्थान |
📌 निष्कर्ष
"ये पांच अप्रकाश ग्रह — धूम, व्यतिपात, परिवेष, इन्द्रचाप, उपकेतु — अदृश्य परंतु प्रभावशाली हैं। यदि ये जन्मकुंडली में विशेष स्थानों पर उपस्थित हों, तो गुप्त क्लेश, रोग, मानसिक अवसाद, वंश बाधा, दीर्घकालिक दोष और आध्यात्मिक विघ्न उत्पन्न कर सकते हैं।"