Kundli Mein Karak, Akarak, Marak aur Badhak Grah: Astrology Mein Inka Mahatva aur Asar,कुंडली में कारक,अकारक, मारक ग्रह और बाधक ग्रह

Sooraj Krishna Shastri
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"Kundli Mein Karak, Akarak, Marak aur Badhak Grah: Astrology Mein Inka Mahatva aur Asar"कुंडली में कारक,अकारक, मारक ग्रह और बाधक ग्रह 

ग्रहों को नैसर्गिक ग्रह विचार रूप से शुभ और अशुभ श्रेणी में विभाजित किया गया है। बृहस्पति, शुक्र, पक्षबली चंद्रमा और शुभ प्रभावी बुध शुभ ग्रह माने गये हैं और शनि, मंगल, राहु व केतु अशुभ माने गये हैं। सूर्य ग्रहों का राजा है और उसे क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गई है। बुध, चंद्रमा, शुक्र और बृहस्पति क्रमशः उत्तरोत्तर शुभकारी हैं, जबकि सूर्य, मंगल, शनि और राहु अधिकाधिक अशुभ फलदायी हैं। कुंडली के द्वादश भावों में षष्ठ, अष्टम और द्वादश भाव अशुभ (त्रिक) भाव हैं, जिनमें अष्टम भाव सबसे अशुभ है। षष्ठ से षष्ठ – एकादश भाव, तथा अष्टम से अष्टम तृतीय भाव, कुछ कम अशुभ माने गये हैं। अष्टम से द्वादश सप्तम भाव और तृतीय से द्वादश – द्वितीय भाव को मारक भाव और भावेशों को मारकेश कहे हैं। केंद्र के स्वामी निष्फल होते हैं परंतु त्रिकोणेश सदैव शुभ होते हैं। नैसर्गिक शुभ ग्रह केंद्र के साथ ही 3, 6 या 11 भाव का स्वामी होकर अशुभ फलदायी होते हैं। ऐसी स्थिति में अशुभ ग्रह सामान्य फल देते हैं। अधिकांश शुभ

 

Kundli Mein Karak, Akarak, Marak aur Badhak Grah: Astrology Mein Inka Mahatva aur Asar,कुंडली में कारक,अकारक, मारक ग्रह और बाधक ग्रह
Kundli Mein Karak, Akarak, Marak aur Badhak Grah: Astrology Mein Inka Mahatva aur Asar,कुंडली में कारक,अकारक, मारक ग्रह और बाधक ग्रह 

बलवान ग्रहों की 1, 2, 4, 5, 7, 9 और 10 भाव में स्थिति जातक को भाग्यशाली बनाते हैं। 2 और 12 भाव में स्थित ग्रह अपनी दूसरी राशि का फल देते हैं। शुभ ग्रह वक्री होकर अधिक शुभ और अशुभ ग्रह अधिक बुरा फल देते हैं राहु व केतु यदि किसी भाव में अकेले हों तो उस भावेश का फल देते हैं। परंतु वह केंद्र या त्रिकोण भाव में स्थित होकर त्रिकोण या केंद्र के स्वामी से युति करें तो योगकारक जैसा शुभ फल देते हैं। लग्न कुंडली में उच्च ग्रह शुभ फल देते हैं, और नवांश कुंडली में भी उसी राशि में होने पर ‘वर्गोत्तम’ होकर उत्तम फल देते हैं। बली ग्रह शुभ भाव में स्थित होकर अधिक शुभ फल देते हैं। पक्षबलहीन चंद्रमा मंगल की राशियों, विशेषकर वृश्चिक राशि में (नीच होकर) अधिक पापी हो जाता है। चंद्रमा के पक्षबली होने पर उसकी अशुभता में कमी आती है। स्थानबल हीन ग्रह और पक्षबल हीन चंद्रमा अच्छा फल नहीं देते। 

कारक ग्रह :-

‘कारक’ ग्रह के निर्धारण की विभिन्न विधियां इस प्रकार हैं: --

1. महर्षि पाराशर तथा अन्य आचार्यों ने द्वादश भावों के कारक ग्रह इस प्रकार बताए हैं। प्रथम भाव- सूर्य, द्वितीय भाव-बृहस्पति, तृतीय भाव- मंगल, चतुर्थ भाव – चंद्रमा व बुध, पंचम भाव- बृहस्पति, षष्ठ भाव- मंगल व शनि, सप्तम भाव – शुक्र, अष्टम भाव- शनि, नवम भाव – बृहस्पति व सूर्य, दशम भाव- सूर्य, बुध, बृहस्पति व शनि, एकादश भाव- बृहस्पति और द्वादश भाव- शनि। 

2. स्थिर कारक: सूर्य- पिता का, चंद्रमा-माता का, बृहस्पति-गुरु व ज्ञान का, शुक्र पत्नी व सुख का, बुध-विद्या का, मंगल भाई का, शनि नौकर का और राहु म्लेच्छ का स्थिर कारक है। 

3. जैमिनी चर कारक: यह ग्रहों के अंशों पर निर्भर करता है। सर्वाधिक अंश वाले ग्रह को ‘आत्म कारक’, उससे कम अंश वाले ग्रह को ‘अमात्य कारक’, उससे कम अंश वाले को ‘भ्रातृ कारक’, उससे कम अंश वाले को ‘पुत्र कारक’ और सबसे कम अंश वाले ग्रह को ‘दारा कारक’ या पत्नी कारक’ की संज्ञा दी जाती है। ‘आत्म’ और ‘अमात्य’ कारक जातक का भला करते हैं। राहु/केतु कोई कारक नहीं होते। यदि लग्नेश ही आत्म कारक हो तो उसकी दशा बहुत शुभकारी होती है। ‘आत्म’ कारक ग्रह यदि अष्टमेश भी हो तो उसके शुभ फल में कमी आती है। 

4. योगकारक ग्रह :-

प्रत्येक ग्रह केंद्र (1, 4, 7, 10 भाव) का स्वामी होकर निष्फल होता है, परंतु त्रिकोण (1,5,9 भाव) का स्वामी सदैव शुभ फल देता है। एक ही ग्रह केंद्र और त्रिकोण का एक साथ स्वामी होने पर ‘योगकारक’ (अति शुभ फलदायी) बन जाता है। जैसे सिंह राशि के लिए मंगल, और तुला लग्न के लिए शनि ग्रह। लग्नेश केंद्र और त्रिकोण दोनों का स्वामी होने से सदैव योगकारक की तरह शुभफलदायी होता है। लग्नेश को 6, 8, 12 भाव के स्वामित्व का दोष नहीं लगता। 

5. परस्पर कारक:-

 जब ग्रह अपनी उच्च, मूलत्रिकोण या स्वराशि के होकर केंद्र में स्थित होते हैं तो ‘परस्पर कारक’ (सहायक) होते हैं। दशम भाव में स्थित ग्रह अन्य कारकों से अधिक फलदायी होता है। कुछ आचार्य पंचम भाव में बलवान शुभ ग्रह को भी ‘कारक’ की संज्ञा देते हैं। 

‘मारक ग्रह’ :-

ज्येतिष ग्रंथों के अनुसार निम्न ग्रह पीड़ित होने पर अधिक हानिकारक (मारक) बन जाते हैं:- 

1. अष्टमेश 

2. अष्टम भाव पर दृष्टिपात करने वाले ग्रह। 

3. अष्टम भाव स्थित ग्रह 

4. द्वितीयेश और सप्तमेश 

5. द्वितीय और सप्तम भाव स्थित ग्रह 

6. द्वादशेश 7. 22वें द्रेष्काॅण का स्वामी 

8. गुलिका स्थित भाव का स्वामी

 9. ‘गुलिका’ से युक्त ग्रह। 

10. षष्ठेश, व षष्ठ भाव में स्थित पापी ग्रह आदि। 

‘कारक’ व ‘मारक’ फलादेश :-

1. एक बली ‘कारक’ ग्रह अपनी भाव स्थिति, स्वामित्व भाव और दृष्ट भाव को शुभता प्रदान करता है। 

2. केंद्र (1, 4, 7, 10) भाव में स्थित ‘कारक’ की दशा पूर्ण शुभ फल देती है। पनफर (2, 5, 8, 11) भाव में स्थित ‘कारक’ की दशा मध्यम फल’ और अपोक्लिम (3, 6, 9, 12) भाव में स्थित ‘कारक’ की दशा साधारण फल देती है। यह फलादेश ग्रह की दशा-भुक्ति में जातक को प्राप्त होता है। 

3. पापकत्र्तरी योग में तथा पाप दृष्ट ‘कारक’ के शुभ फल में कमी आती है। 

4. वक्री ‘कारक’ शुभ ग्रह अधिक शुभ फलदायी होता है। 

5. किसी भाव का ‘कारक’ यदि उसी भाव में स्थित हो तो उस भाव संबंधी फल में कमी या कठिनाई देता है। यह स्थिति ‘कारको भाव नाशाय’ के नाम से प्रसिद्ध है। 

6. एक ‘कारक’ ग्रह की दशा में अन्य ‘कारक’ की भुक्ति उत्तम फलदायी होती है। 

7. ‘कारक’ ग्रह की दशा में संबंधित ‘मारक’ ग्रह की भुक्ति निम्न फल देती है। 

8. यदि ‘कारक’ और ‘मारक’ ग्रहों में दृष्टि आदि का संबंध न हो तो ‘मारक’ ग्रह की भुक्ति कष्टकारी होती है। 

9. एक ‘मारक’ ग्रह की दशा में अन्य ‘मारक’ ग्रह की भुक्ति अत्यंत अशुभ फल देती है। 

10. जब किसी भाव का ‘कारक’ उस भाव से 1, 5, 9 भाव में गोचर करता है और बलवान (स्वक्षेत्री या उच्च) होता है तो उस भाव का उत्तम फल व्यक्ति को मिलता है। 

11. गोचर में भावेश और भाव ‘कारक’ की युति, दृष्टि आदि संबंध होने पर उस भाव संबंधी शुभ फल प्राप्त होता है। एक साथ ‘कारक’ और ‘मारक’ फलादेश दर्शाती कुंडली प्रस्तुत ह श्री लाल बहादुर शास्त्री, पूर्व प्रधानमंत्री जन्म समय राहु दशा बाकी- 10 वर्ष 7 मास 19 दिन। लग्नेश बृहस्पति पंचम भाव और मित्र राशि में स्थित होकर ‘कारक है। उसकी लग्न भाव और नवम भाव स्थित दशमेश बुध व पंचमेश मंगल पर दृष्टि है। नवमेश सूर्य और दशमेश बुध का राशि विनिमय ‘राजयोग’ का निर्माण करते हैं। बुध की दशा में उन्हें राजयोग का फल अन्य भुक्तियों में मिला और बुध-गुरु की दशा-भुक्ति में वे प्रधानमंत्री बने। बुध सप्तमेश (मारक) भी है। बुध की दशा में द्वितीय भाव स्थित द्वि तीयेश (मारक) शनि की भुक्ति ने प्रबल मारकेश का फल दिया। उनकी ताशकंत में अचानक हृदयाघात से मृत्यु हो गई थी।

ग्रहों के कारक घर 

हर ग्रह के कारक घर, स्थायी घर, उच्च-नीच घर आदि निश्चित हैं। फिर भले ही वह ग्रह ‘अतिथि’ बने या किरायेदार! ग्रह का समय पूरा होने पर ग्रहरूपी दीया बुझ जाएगा। हर ग्रह उसकी अपनी राशि में, भले ही वह राशि अन्य ग्रह की कारक क्यों न हो, शुभ फल ही देगा। ग्रह जिस घर में बैठा होगा उस ग्रह की चीजें स्थापित करने से उसका प्रभाव बढ़ेगा। उदाहरणार्थ-केतु नौंवे घर में बैठा हो तो कुत्ता पालने से केतु के प्रभाव में बढ़ोत्तरी होगी। 

नैसर्गिक जन्मकुंडली में दूसरे घर में शुक्र की राशि रहती है एवं दूसरा घर बृहस्पति का कारक है। यहां शुक्र बैठा हो तो उसके शुभ फल प्राप्त होंगे। 

तीसरे घर में बुध की राशि रहती है। तीसरा घर मंगल का कारक है। मंगल शुभ हो तो यहां बुध का भी शुभ फल मिलेगा। चैथे घर में चंद्र की राशि कर्क आती है। राशि स्वामी चंद्र है। यहां राहु का अशुभ फल प्राप्त नहीं होता। वर्ष जन्मकुंडली में राहु चैथे घर में बैठे तो राहु के कार्य-मकान की छत बदलना, कोयले की बोरियों का संग्रह करना, नया टाॅयलेट बनवाना, काले आदमी को साझेदार बनाना जैसे काम नहीं करने चाहिए अन्यथा झगड़े होते रहेंगे। पांचवें घर में सूर्य की राशि सिंह रहती है। इस घर के कारक ग्रह बृहस्पति तथा सूर्य हैं। इस घर में इसके शुभ फल ही प्राप्त होंगे। छठे घर में बुध की राशि कन्या पड़ती है। यह केतु का कारक घर है। यहां बुध के शुभ फल मिलते हैं। यहां केतु होने पर उसकी चीजों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। बुध-केतु साथ में बैठे हों तो बुध के अच्छे और केतु के बुरे फल मिलेंगे। सातवें घर में शुक्र की राशि तुला रहती है। यह घर शुक्र एवं बुध का कारक घर है। यहां शुक्र के शुभ फल मिलते हैं एवं बुध दूसरे ग्रहों की मदद करता है। आठवें घर में मंगल की राशि वृश्चिक रहती है। यह मंगल, शनि एवं चंद्र का कारक घर है। ये तीनों ग्रह जन्मकुंडली में अलग-अलग घरों में बैठे हों तो अच्छा फल प्राप्त होता है। इकट्ठे होने पर अशुभ फल देते हैं। वर्षफल में आठवें घर में अशुभ ग्रह आने पर उसके अशुभ फल ही मिलेंगे। लाल किताब के अनुसार नौवां घर भाग्य का आरंभ और किस्मत भी बतलाता है। जन्मकुंडली में इस घर का सर्वाधिक महत्त्व है। सारी जन्मकुंडली के फल को नौवां घर प्रभावित करता है। जातक के पुरुषार्थ रूपी कर्मों का अंतिम निर्णय भाग्य से ही होता है। काल के तीनों खंडों में भूतकाल इस घर का विषय है। नौवें घर में बृहस्पति की राशि धनु पड़ती है। इसका कारक बृहस्पति है तथा शनि राशिफल का है और बृहस्पति ग्रहफल का। शनि का कोई उपाय नहीं, बृहस्पति का उपाय है। इस घर में बृहस्पति और सूर्य के अच्छे फल प्राप्त होते हैं। धरती के नीचे रहने वाली वनस्पति का यह कारक घर है। 

दसवां घर विश्वासघाती माना जाता है। इस घर में बैठे ग्रह विश्वासघाती होते हैं। विश्वासघाती ग्रह दूसरे एवं ग्यारहवें घर में लाभदायक बनते हैं। 

ग्यारहवां घर बृहस्पति का स्थायी घर है। यहां शनि शुभ फल देता है। शनि के अलावा काफी ग्रह अशुभ फल प्रदान करते हैं। ग्यारहवें घर में शनि की राशि कुंभ पड़ती है। इस घर का कारक ग्रह शनि है। 

जन्मकुंडली में शुभ या अशुभ ग्रह जब खुद की अपनी राशि में या कारक घर में आते हैं तब शुभ फल देते हैं। 

जन्मकुंडली में बैठा उच्च ग्रह जब वर्ष जन्मकुंडली में भी उच्च का होकर बैठे तब उच्च शुभ फल देता है। बृहस्पति जन्मकुंडली में उच्च का हो और वर्ष जन्मकुंडली में दूसरे या चैथे घर में हो तब शुभ फलदायक होगा। सूर्य, चंद्र, मंगल ये पुरूष ग्रह दिन में, बुध, शनि, राहु, केतु ये नपुंसक ग्रह सवेरे एवं शाम को प्रभावी बनते हैं। कोई भी अशुभ या शुभ ग्रह चाहे जिस घर में बैठा हुआ हो, वह निम्नानुसार अन्य घरों में भी फलदायी होगा। 

  •  बृहस्पति-शुक्र अशुभ असरदार हों तो दूसरे और चैथे घरों में भी वे अशुभ फल देंगे। 
  •  पहले घर में बुध होने पर सूर्य, मंगल तथा शनि भी फलदायी होंगे। 
  •  दूसरे घर में बृहस्पति होने पर शुक्र भी फलदायी होगा। 
  •  तीसरे घर में बुध होने पर मंगल एवं शनि भी फलदायी होंगे। 
  •  चतुर्थ घर में बृहस्पति होने पर सूर्य और चंद्र भी फलदायी होंगे।
  •   पांचवें घर में बृहस्पति होने पर सूर्य, राहु व केतु भी फलदायी होंगे।
  •  छठे घर में केतु होने पर शुक्र भी फलदायी होगा। 
  •  सातवें घर में शुक्र होने पर बुध भी फलदायी होगा। 
  •  आठवें घर में मंगल होने पर शनि, चंद्र भी फलदायी होंगे। 
  •  नौवें घर में बृहस्पति होने पर अन्य ग्रह फलदायी नहीं होंगे।
  •   दसवें घर में शनि होने पर राहु-केतु भी फलदायी होंगे। 
  •  ग्यारहवें घर में शनि होने पर बृहस्पति फलदायी होगा। 
  •  बारहवें घर में राहु होने पर बृहस्पति, शनि फलदायी होंगे।

कुंडली में बाधक ग्रह 

चर लग्न में 11वां भाव, स्थिर लग्न में 9वां भाव, द्विस्वभाव में 7वां भाव उन लग्नों के लिए बाथक स्थान होते हैं। बाधक भावों के स्वामी के बाधक अर्थात बाधा डालने वाला कहह जाता है ।

लग्न                 बाधक भाव                  स्वामी

1) चर(एकादश)

    मेष                कुंभ                           शनि

    कर्क               वृषभ                         शुक्र

    तुला               सिंह                          सूर्य

    मकर              वृश्चिक                       मंगल

2) स्थिर(नवम)

     वृषभ             मकर.                       शनि

     सिंह               मेष                          मंगल

     वृश्चिक.           कर्क                        चन्द्रमा

     कुंभ               तुला                        शुक्र

3) द्विस्वभाव(सप्तम)

     मिथुन             धनु                         बृहस्पति

     कन्या.            मीन                         बृहस्पति

     धनु.               मिथुन.                     बुध

     मीन.              कन्या.                      बुध


बाधक ग्रह बाधकेश जिस स्थान में बैठता है वहाँ परेशानी देता है, समस्या देता है । वह शुभ ग्रह हो या अशुभ ग्रह समस्यायें देना उसका काम है । बाधक अधिपति यदि शुभ भाव का स्वामी हो तो थोड़े संघर्ष के बाद उन्नति देता है । शुरु में समस्या बाद में अच्छे फल प्राप्त होते हैं।

वृषभ लग्न में शनि, सिंह लग्न में मंगल, कुंभ लग्न में शुक्र योगकारक ग्रह हैं सर्वाधिक शुभ ग्रह हैं तो यह कैसे बाधक हैं ।

बाधकेश केवल लग्न में होने पर बाधा उत्पन्न करता है । अगर किसी और भाव में बैठा हो यदि शुभ भाव का स्वामी है तो शुभ करेगा यदि अशुभ भाव का स्वामी है तो अशुभ करेगा ।

मेष लग्न में बाधकेश शनि नीच अवस्था का हो जाता है, उसी प्रकार तुला लग्न में बाधकेश सूर्य लग्न में तथा वृश्चिक लग्न में नवम का स्वामी चन्द्रमा लग्न में व मीन लग्न में सप्तम का स्वामी बुध लग्न में नीच अवस्था में है । लेकिन मकर लग्न में बाधकेश मंगल लग्न में उच्च का हो जाता है । शनि मंगल में परस्पर मित्रता नहीं है अतः लग्न में शत्रुवत व्यवहार करेगा बहुत शुभ फल नहीं देगा ।

बाधकेश लग्न में फल देगा जैसे

मेष में शनि लग्न में, वृषभ में शनि लग्न में, मिथुन में गुरु लग्न मे, कर्क का शुक्र लग्न में, सिंह का मंगल लग्न में, कन्या का गुरु लग्न में, तिला का सूर्य लग्न में, वृश्चिक का चन्द्र लग्न में, धनु का बुध लग्न में, मकर का मंगल लग्न में, कुंभ का शुक्र लग्न में, मीन का बुध लग्न में हों तो जीवन में संघर्ष व बाधाएँ देते हैं ।

मैं उपरोक्त दी गई जानकारी को व्यवस्थित रूप में सारणी और बिंदुवार प्रस्तुत कर रहा हूँ, ताकि कुंडली में कारक, अकारक, मारक और बाधक ग्रह की पूरी समझ आसानी से हो सके।


1. नैसर्गिक दृष्टि से शुभ-अशुभ ग्रह

श्रेणी ग्रह
नैसर्गिक शुभ बृहस्पति, शुक्र, पक्षबली चंद्रमा, शुभ प्रभावी बुध
नैसर्गिक अशुभ शनि, मंगल, राहु, केतु
क्रूर ग्रह (मध्यम अशुभ) सूर्य
शुभता क्रम (अधिक → कम) बुध → चंद्र → शुक्र → बृहस्पति
अशुभता क्रम (अधिक → कम) सूर्य → मंगल → शनि → राहु

2. अशुभ भाव (त्रिक भाव)

  • षष्ठ (6)
  • अष्टम (8) – सबसे अधिक अशुभ
  • द्वादश (12)

कुछ कम अशुभ:

  • षष्ठ से षष्ठ = एकादश (11)
  • अष्टम से अष्टम = तृतीय (3)

मारक भाव:

  • द्वितीय (2) और सप्तम (7)
  • इन भावों के स्वामी = मारकेश

3. कारक ग्रहों के प्रकार

(A) महर्षि पाराशर अनुसार द्वादश भावों के कारक

भाव कारक ग्रह
1 (लग्न) सूर्य
2 बृहस्पति
3 मंगल
4 चंद्र, बुध
5 बृहस्पति
6 मंगल, शनि
7 शुक्र
8 शनि
9 बृहस्पति, सूर्य
10 सूर्य, बुध, बृहस्पति, शनि
11 बृहस्पति
12 शनि

(B) स्थिर कारक

  • सूर्य – पिता
  • चंद्र – माता
  • बृहस्पति – गुरु, ज्ञान
  • शुक्र – पत्नी, सुख
  • बुध – विद्या
  • मंगल – भाई
  • शनि – नौकर
  • राहु – म्लेच्छ

(C) जैमिनी चर कारक

  • सर्वाधिक अंश वाला ग्रह = आत्मकारक
  • उससे कम = अमात्य कारक
  • फिर = भ्रातृ कारक, पुत्र कारक, दारा कारक
  • राहु/केतु कारक नहीं होते

4. योगकारक ग्रह

  • जो एक साथ केंद्र (1, 4, 7, 10) और त्रिकोण (1, 5, 9) का स्वामी हो
  • जैसे:
    • सिंह लग्न के लिए मंगल
    • तुला लग्न के लिए शनि

5. परस्पर कारक

  • उच्च, मूलत्रिकोण या स्वराशि के होकर केंद्र में स्थित ग्रह

6. मारक ग्रह (अधिक हानिकारक)

  1. अष्टमेश
  2. अष्टम भाव पर दृष्टि करने वाले
  3. अष्टम भाव में स्थित ग्रह
  4. द्वितीयेश, सप्तमेश
  5. द्वितीय/सप्तम भाव में स्थित ग्रह
  6. द्वादशेश
  7. 22वें द्रेष्काण का स्वामी
  8. गुलिका भाव का स्वामी
  9. गुलिका युक्त ग्रह
  10. षष्ठेश या षष्ठ भाव में पापी ग्रह

7. कारक-मारक फलादेश के मुख्य नियम

  • केंद्र में स्थित कारक = पूर्ण शुभ
  • पनफर (2, 5, 8, 11) में = मध्यम
  • अपोक्लिम (3, 6, 9, 12) में = साधारण
  • पापकर्तरी योग या पाप दृष्ट = शुभता घटती
  • वक्री शुभ कारक = अधिक शुभ, वक्री अशुभ = अधिक बुरा
  • “कारको भाव नाशाय” – कारक यदि अपने ही भाव में हो तो कठिनाई

8. कुंडली में कारक घर (स्थायी घर)

  • प्रत्येक ग्रह के अपने स्थायी/कारक घर होते हैं, जैसे:
    • बृहस्पति – 2, 5, 9, 11
    • शुक्र – 2, 7, 12
    • चंद्र – 4, आदि

9. बाधक ग्रह (लग्नानुसार)

लग्न प्रकार बाधक भाव उदाहरण लग्न बाधकेश ग्रह
चर (11वां बाधक) मेष – 11 (कुंभ) शनि
कर्क – 11 (वृष) शुक्र
तुला – 11 (सिंह) सूर्य
मकर – 11 (वृश्चिक) मंगल
स्थिर (9वां बाधक) वृषभ – 9 (मकर) शनि
सिंह – 9 (मेष) मंगल
वृश्चिक – 9 (कर्क) चंद्र
कुंभ – 9 (तुला) शुक्र
द्विस्वभाव (7वां बाधक) मिथुन – 7 (धनु) बृहस्पति
कन्या – 7 (मीन) बृहस्पति
धनु – 7 (मिथुन) बुध
मीन – 7 (कन्या) बुध

नोट:

  • बाधकेश लग्न में हो तो बाधा अधिक देता है
  • शुभ भाव का स्वामी हो तो संघर्ष के बाद उन्नति देता है
  • अशुभ भाव का स्वामी हो तो परेशानी बढ़ाता है

और भी जानें --

  1. कुंडली में कब बनता है सरकारी नौकरी और धन लाभ का योग
  2. ग्रहों के वर्ण (जाति/वर्ण व्यवस्था) तथा उनके सत्त्व-रजस्-तमस् गुण
  3. ग्रहों का वर्ण, देवता एवं लिंगभाव (पुं-स्त्री-नपुंसकत्व)
  4. ज्योतिष: ग्रहों का आत्मादि विभाग (श्लोक एवं भावार्थ सहित)
  5. ग्रहों की संख्या, नाम, प्रकृति (शुभ या क्रूर), और विशिष्टताओं" पर आधारित एक संक्षिप्त एवं व्यवस्थित विवरण
  6. ज्योतिषशास्त्र के अपमान और अवज्ञा करने वाले व्यक्ति के लिए अत्यंत कठोर चेतावनी
  7. ज्योतिषीय दृष्टिकोण से अवतारों की उत्पत्ति और उनका ग्रहरूप स्वरूप
  8. ज्योतिष: ज्योतिष के अधिकारी – शास्त्रीय दृष्टिकोण
  9. ज्योतिष: नक्षत्र की परिभाषा और परिचय
  10. ग्रह, राशि, नक्षत्र एवं लग्न की शास्त्रीय परिभाषा - श्लोक के साथ
  11. नवग्रहों के साथ शरीर की धातुएँ, स्थान, कालखंड और रसों का सम्बन्ध 
  12. ग्रहों के बलों के प्रकार और उनके निर्धारण सूत्र 
  13. नवग्रहों के वृक्ष, गुण और श्लोक सहित तालिका 
  14. नवग्रहों के वस्त्र, धातु, स्थान एवं रंग — श्लोक सहित तालिका 
  15. ग्रहों की ऋतुएँ (श्लोक सहित सारणी) 
  16. ग्रहों की संज्ञाएँ: धातु, मूल, जीव तथा नैसर्गिक आयु 
  17. नवग्रहों की उच्च-नीच राशियों और परमोच्च-अवमुक्त अंशों का निर्धारण
  18. नवग्रहों के मूलत्रिकोण स्थानों की गहराई से व्याख्या 
  19. ग्रहों की नैसर्गिक (नैसर्गिकी) मैत्री (श्लोक सहित अर्थ) और तालिका 
  20. ग्रहों की तात्कालिक (स्थानिक) मैत्री 
  21. ज्योतिष शास्त्र में पंचधा मैत्री (पाँच प्रकार की ग्रह मैत्री)
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  23. अप्रकाशक दोषकारी उपग्रहों—धूम, व्यतिपात, परिवेष, इन्द्रचाप और उपकेतु—का विश्लेषण
  24. गुलिक, काल, मृत्यु, यमघण्ट, अर्धप्रहर – परिचय 
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  44. ऋतु (भौम) और रेतस् (शुक्र) Relation in Ayurveda and Astrology | Santan Utpatti Secrets 
  45. सन्तान मृत्यु के कारण in Astrology | Santan Mrityu Jyotish Shastra Analysis 
  46. पंचम भाव ज्योतिष फल | Putra Putri Santan Prediction in Astrology 
  47. पिता पुत्र सम्बन्ध ज्योतिष | Father Son Relationship in Astrology by Lagnesh Panchamesh Yoga 
  48. सुंदर और भाग्यशाली पत्नी के योग | Beautiful & Lucky Wife Astrology by 7th House 
  49. Prakeerna Yoga in Astrology | प्रकीर्ण योग ज्योतिष में महत्व और फलादेश 
  50. Parastrigaman Yoga in Astrology | परस्त्रीगमन योग के कारण और उपाय 
  51. वृष्टियोग (Vrishti Yoga in Astrology) – Definition, Conditions, Effects and 30th Year Fortune Rise 
  52. Marakesh Grah in Astrology (मारकेश ग्रह) – How to Identify Death Inflicting Planets in Horoscope
  53. Stri Jatak Yog in Astrology | स्त्री जातक के महत्त्वपूर्ण योग, विवाह, विधवा, तलाक और संतान योग 
  54. कृषि भूमि से लाभ हानि (Jyotish Upay) – Farming Land Astrology Remedies for Profit and Loss 
  55. ग्रहों की 12 विशिष्ट अवस्थाएँ (Graho Ki 12 Vishesht Avastha) – महर्षि पाराशर ज्योतिष अनुसार गणना और फल 
  56. गुरु-शनि सम्बन्ध | Guru Shani Relation in Astrology – ज्ञान, कर्म और वैराग्य का रहस्यमय संतुलन 
  57. Grah aur Rog: Planets and Diseases Remedies in Astrology | ग्रह दोष और स्वास्थ्य उपाय 
  58. Preta Badha aur Jyotish | प्रेतबाधा और ज्योतिषीय योग – Kundli Mein Bhut Pret Dosha Ka Rahasya 
  59. Why Two Panchangs Show Different Dates? एक ही दिन, दो अलग तिथियाँ! जानिए पंचांगों में समयांतर का रहस्य 
  60. सटीक कुण्डली कैसे पहचानें | How to Verify Accurate Horoscope Step by Step in Vedic Astrology 
  61. मेलापक के अपवाद – Graha Melapak Exceptions in Jyotish Shastra | विवाह में कुंडली मिलान कब आवश्यक नहीं 
  62. Banking Career Astrology: Kundli Mein Bank Naukri Ke Shubh Yog (बैंकिंग सेवा योग)
  63. घातक रोगों से मुक्ति के वैदिक उपाय और कार्तिक मास का महत्व | Surya Upasana & Kartik Maas Significance 
  64. दिशाशूल विचार 
  65. ज्‍योतिष का कैंसर से संबंध 
  66. शनि ग्रह परिचय तथा शनि मन्त्र प्रयोग 
  67. सनातन धर्म में 108 का महत्व ? 
  68. जानिए क्या हैं रुद्राक्ष धारण करने के लाभ ? रुद्राक्ष कैसे धारण करें ? 
  69. कुंडली में कैसे बनता है कर्ज योग, कैसे मिलेगी मुक्ति, जानें ज्योतिषीय उपाय ? 
  70. शनि का राशि परिवर्तन 17 जनवरी जाने किस राशि पर क्या पड़ेगा प्रभाव 
  71. आइए जानते है कौन-कौन से ग्रहों की युति क्या-क्या फल देती है 
  72. पिप्पलाद मुनि द्वारा किए गए स्तोत्र का जप ११ बार करने से उन लोगों पर जो न शनि की साढ़ेसाती और न ही उनकी ढैया के प्रभाव में होते हैं कोई विशेष संकट नहीं आते? 
  73. पुरुष और स्त्रियों के विवाह मैं विलंब का कारण और निवारण । जन्मकुण्डली में सातवें भाव का अर्थ । सातवां भाव और पति पत्नी ।जानिए की शादी तय होकर भी क्यों टूट जाती है ?तलाक क्यों हो जाता है ?मधुर वैवाहिक जीवन का योग । 
  74. जानिए व्यक्ति के कर्म-कुकर्म के द्वारा किस प्रकार नवग्रह के अशुभ फल प्राप्त होते हैं ?
  75. दिशाशूल और उसके परिहार 
  76. अक्षय तृतीया पौराणिक महात्म्य एवं शीघ्र विवाह और धन प्राप्ति के लिए शुभ उपाय 
  77. शनि की शान्ति का अचूक उपाय 
  78. गुमशुदा व्यक्ति/वस्तु का ज्ञान ज्योतिष द्वारा
  79. चन्द्रमा ग्रह शान्ति मंत्र, जप, कवच और स्तोत्र पाठ 
  80. मंगल ग्रह शान्ति मंत्र, जप, कवच और स्तोत्र पाठ 
  81. बुध ग्रह शान्ति मंत्र, जप, कवच और स्तोत्र पाठ 
  82. बृहस्पति ग्रह शान्ति मंत्र, जप, कवच और स्तोत्र पाठ 
  83. शुक्र ग्रह शान्ति मंत्र, जप, कवच और स्तोत्र पाठ 
  84. शनि मंत्र शान्ति मंत्र, जप, कवच और स्तोत्र पाठ 
  85. राहु ग्रह शान्ति मंत्र, जप, कवच और स्तोत्र पाठ 
  86. केतु मंत्र शान्ति मंत्र, जप, कवच और स्तोत्र पाठ 
  87. शिव वास विचार 
  88. कुंडली से जानें दुर्घटना का पूर्व समय 
  89. मंगल दोष के कुछ प्रभावी एवं लाभकारी उपाय 
  90. 'एक आंख वाले कौवे' और भारतीय शकुन-शास्त्र 
  91. दिन के आठ प्रहर कौन से हैं ? 
  92. उच्च शिक्षा प्राप्ति हेतु आवश्यक कारक ग्रह 
  93. शनिवार को घर मे नही लानी चाहिए निम्नलिखित दस चीजें 
  94. शनि ग्रह की साढेसाती या महादशा विचार 
  95. काल पुरुष की कुंडली में शनि 
  96. ज्योतिष में व्यक्ति के कर्म और भाग्य 
  97. महादशा विचार 
  98. ग्रह व उनसे संबंधित बीमारी व उपाय 
  99. रुद्राक्ष धारण विधि 
  100. रुद्राक्ष और राशि का सम्बन्ध 
  101. राशियों का परिचय 
  102. राशियों के अनुसार रत्नों का विस्तृत वर्णन 
  103. रुद्राक्ष और राशि का संबंध 
  104. बीज और क्षेत्र: संतान प्राप्ति में ज्योतिषीय दृष्टिकोण 
  105. ज्योतिष: सरकारी नौकरी और सूर्य ग्रह 

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