ग्रहों के स्थान बल (Sthan Bala)

Sooraj Krishna Shastri
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ग्रहों के स्थान बल (Sthan Bala)

यह उद्धरण बृहत्पाराशर होरा शास्त्र के श्लोक 62-63 का है, जो ग्रहों के स्थान बल (Sthan Bala) को स्पष्ट करता है। आइए इसे श्लोक, शुद्ध पदविभाजन, व्याकरणिक दृष्टि, भावार्थ और सारणी सहित व्यवस्थित करते हैं।

ग्रहों के स्थान बल (Sthan Bala)
ग्रहों के स्थान बल (Sthan Bala)



📜 मूल श्लोक — बृहत्पाराशर होराशास्त्रम् (अध्याय: ग्रहबलाध्याय)

श्लोक 62

स्वोच्चे शुभबलं पूर्णं त्रिकोणे पादवर्जितम् ।
स्वक्षेत्रे च मित्रगेहे तु पादमात्रं प्रकीर्तितम् ॥६२॥

श्लोक 63

पादार्धं समगे प्रोक्तं शून्यं नीचास्त शत्रुभे ।
तद्वद्‌ दुष्टफलं ब्रूयात् व्यत्ययेन विचक्षणः ॥६३॥


🔍 शब्दार्थ एवं व्याकरण

शब्द अर्थ
स्वोच्चे स्व = स्वयं, उच्चे = उच्च राशि में
शुभबलं शुभ ग्रह का बल
पूर्णं सम्पूर्ण, पूर्ण = 60 कलाएँ
त्रिकोणे पादवर्जितम् त्रिकोण में (लेकिन) चतुर्थांश रहित
स्वक्षेत्रे अपने स्वगृह में
मित्रगेहे मित्र के घर (राशि) में
पादमात्रं केवल ¼ बल (पाद = 15 कला)
पादार्धम् आधा पाद = 7.5 कला
समगे सम क्षेत्र में
शून्यं शून्य फल (0 कला)
नीचाश्रय नीच राशि में स्थित ग्रह
शत्रुभे शत्रु के घर में
व्यत्ययेन उलटकर, विपरीत क्रम से
दुष्टफलं अशुभ फल
विचक्षणः बुद्धिमान ज्योतिषी

🪔 हिन्दी भावार्थ

  • यदि कोई शुभ ग्रह अपनी उच्च राशि में हो, तो उसे पूर्ण बल (60 कलाएँ) प्राप्त होती हैं।
  • मूल त्रिकोण में हो तो चतुर्थांश कम, अर्थात् 45 कलाएँ
  • यदि ग्रह अपने स्वगृह में हो, तो उसे आधा बल = 30 कलाएँ मिलती हैं।
  • मित्र राशि में पादमात्र बल = 15 कलाएँ,
  • सम राशि में 7.5 कलाएँ,
  • और यदि ग्रह शत्रु राशि या नीच राशि में स्थित हो, तो शून्य बल प्राप्त होता है।

👉 अशुभ ग्रहों (पापग्रहों) के लिए यह फल विपरीत रूप में समझना चाहिए — जैसे शनि नीच में भी अशुभ नहीं होता, आदि।


📊 स्थान बल सारणी (Shubha Bala Table)

स्थिति बल (कलाएँ) प्रतिशत
उच्च (Uchcha) 60 100%
मूल त्रिकोण 45 75%
स्वक्षेत्र (Swa) 30 50%
मित्र क्षेत्र 15 25%
सम क्षेत्र 7.5 12.5%
नीच / शत्रु क्षेत्र 0 0%

🎯 विशेष टिप्पणी

  • यह गणना विशेष रूप से शुभ ग्रहों (जैसे गुरु, शुक्र, चन्द्रमा, बुध) के लिए है।
  • पाप ग्रहों (शनि, राहु, मंगल, केतु) के लिए इसका व्यत्यय माना जाता है – जैसे शनि नीच में भी अच्छे फल दे सकता है।
  • यह बल, षड्बल (षट् बलों में एक) के “स्थान बल” (Sthānabala) का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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