Preta Badha aur Jyotish | प्रेतबाधा और ज्योतिषीय योग – Kundli Mein Bhut Pret Dosha Ka Rahasya

Sooraj Krishna Shastri
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जानिए कुंडली में बनने वाले भूत-प्रेत बाधा योग, पिशाच योग और उनके ज्योतिषीय उपाय। चंद्र-राहु दोष, शनि-मंगल युति और मानसिक प्रभाव का विश्लेषण।

Preta Badha aur Jyotish | प्रेतबाधा और ज्योतिषीय योग – Kundli Mein Bhut Pret Dosha Ka Rahasya

Preta Badha aur Jyotish | प्रेतबाधा और ज्योतिषीय योग – Kundli Mein Bhut Pret Dosha Ka Rahasya
Preta Badha aur Jyotish | प्रेतबाधा और ज्योतिषीय योग – Kundli Mein Bhut Pret Dosha Ka Rahasya

🕉️ प्रेतबाधा और ज्योतिषीय संकेत (Preta Badha aur Jyotishiya Vishleshan)

🔮 भूमिका

भूत-प्रेत, पिशाच, अथवा अदृश्य ऊर्जाओं का प्रभाव भारतीय परंपरा में स्वीकार किया गया है। गरुड़ पुराण, बृहत्पाराशर होरा शास्त्र, स्कंद पुराण आदि ग्रंथों में ‘ऊपरी बाधा’ या ‘प्रेतबाधा’ से संबंधित योगों और उपायों का उल्लेख मिलता है।
ज्योतिष में इसे केवल अंधविश्वास नहीं, बल्कि मानसिक, ऊर्जात्मक और ग्रहजन्य असंतुलन का परिणाम माना गया है।


🌕 १. चंद्र–राहु योग (पिशाच योग या चंद्रग्रहण योग)

यदि जन्मकुंडली के लग्न (प्रथम भाव) में चंद्रमा और राहु एक साथ हों, और पंचम तथा नवम भाव में क्रूर ग्रह (मंगल, शनि, राहु या केतु) स्थित हों —
👉 तो जातक पर प्रेतबाधा, पिशाच पीड़ा या ऊपरी असर शीघ्र प्रभाव डालता है।

  • गोचर में यदि पुनः यह योग बन जाए, तो प्रभाव और भी तीव्र हो जाता है।
  • मानसिक भ्रम, भय, अस्थिरता और विचित्र स्वप्न इस योग के लक्षण हैं।

🔥 २. सप्तम भाव में पापग्रहों की उपस्थिति

यदि शनि, राहु, केतु या मंगल में से कोई भी ग्रह सप्तम भाव (संबंध, साथी, बाहरी जगत) में हो —
👉 तो व्यक्ति ऊपरी शक्तियों, बाधाओं या नकारात्मक ऊर्जाओं से प्रभावित हो सकता है।
यह योग विशेषकर तब प्रभावी होता है जब चंद्रमा निर्बल या नीचस्थ हो।


३. शनि–मंगल–राहु युति

इन तीन ग्रहों का संयोग ‘तीव्र पिशाच योग’ या ‘भूतबाधा योग’ कहलाता है।

  • यह व्यक्ति को असंतुलित मानसिक स्थिति, भय, अनिद्रा, या विचित्र विचारों से ग्रस्त करता है।
  • यदि दशा या अंतर्दशा में भी यही ग्रह सक्रिय हों, तो बाधा और भी प्रबल होती है।

🌘 ४. दशा–गोचर में योग की पुनरावृत्ति

यदि जन्मकुंडली में ये योग पहले से हों और उसी समय दशा-भुक्ति या गोचर में वही ग्रह सक्रिय हो जाएँ —
👉 तो समझना चाहिए कि ऊपरी बाधा का वास्तविक प्रभाव चल रहा है।

  • ऐसे समय में व्यक्ति में मानसिक, भावनात्मक, और आध्यात्मिक संकट गहराता है।

🌑 ५. नीच चंद्र और राहु संबंध

यदि चंद्रमा नीच राशि (वृश्चिक) में हो और राहु के साथ या दृष्टि में हो,
साथ ही भाग्य भाव (नवम भाव) पापग्रहों से पीड़ित हो —
👉 तो जातक भूत-प्रेत पीड़ा, भ्रम, अवसाद, अथवा अज्ञात भय** से पीड़ित रहता है।


🧠 ६. कमजोर ग्रह और मानसिक दुर्बलता

ज्योतिष के अनुसार, प्रेतबाधा का शिकार वे लोग अधिक होते हैं
जिनकी कुंडली में —

  • चंद्र, बुध, लग्नेश निर्बल हों,
  • और पंचम भाव (मन का भाव) पापग्रहों से पीड़ित हो।

ऐसे लोग ऊर्जात्मक रूप से कमजोर होते हैं, मानसिक रोगों के शिकार होते हैं, और जल्दी दूसरों के प्रभाव में आ जाते हैं।


🌪️ ७. पिशाच योग की विशिष्ट स्थिति

जब राहु और चंद्रमा वृश्चिक राशि में एक साथ हों,
👉 तो पूर्ण पिशाच योग बनता है।
यह व्यक्ति को मानसिक रूप से दुर्बल, भयग्रस्त और अस्थिर बनाता है।

  • इन्हें अक्सर लगता है कि कोई अदृश्य शक्ति उनका पीछा कर रही है।
  • आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति कमजोर होती है।
  • जीवन में बार-बार मानसिक संकट उत्पन्न होते हैं।

🌫️ ८. मनोवैज्ञानिक प्रभाव

जिनकी कुंडली में लग्न, चंद्र और भाग्य भाव अशुभ प्रभाव में हों —
👉 वे सदैव संदेह, भय, और असुरक्षा से ग्रस्त रहते हैं।
उन्हें लगता है कि कोई “ऊपरी शक्ति” उन्हें नष्ट करना चाहती है।
ऐसे लोग सामान्य चिकित्सा से शीघ्र लाभ नहीं पाते, क्योंकि उनकी समस्या ऊर्जात्मक और मानसिक स्तर की होती है।


🔱 ९. राक्षस गण में जन्म

ज्योतिष में ३ प्रकार के गण बताए गए हैं — देव, मानव और राक्षस गण।
यदि किसी व्यक्ति का जन्म राक्षस गण में हुआ हो —
👉 तो उसकी ऊर्जाएँ अधिक संवेदनशील होती हैं,
और ऐसे व्यक्तियों पर ऊपरी बाधा या नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव शीघ्र पड़ सकता है।


🪔 १०. प्रेतबाधा योगों के लक्षण

  • अकारण भय या रोना
  • अनिद्रा या विचित्र स्वप्न
  • शरीर में कंपन या थकान
  • मंदिर या देव स्थान में असहजता
  • अचानक स्वास्थ्य गिरना
  • निराशा, आत्मघाती विचार

🌼 ११. ज्योतिषीय उपाय (शास्त्रसम्मत)

  1. महामृत्युंजय मंत्र का जप (११ या ५१ माला प्रतिदिन)
  2. हनुमान चालीसा एवं भूतपिशाच निकटनाय पाठ
  3. राहु–शनि शांति अनुष्ठान
  4. पीपल या शमी वृक्ष की पूजा
  5. अमावस्या या शनिवार को तिल और सरसों के तेल का दीपक दक्षिण दिशा में जलाना
  6. गौसेवा, ब्राह्मण सेवा और दान

🌻 १२. निष्कर्ष

ज्योतिष में भूत-प्रेत बाधा को केवल रहस्यमय विषय नहीं,
बल्कि मानसिक-ऊर्जात्मक असंतुलन और ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव का प्रतीक माना गया है।
जो व्यक्ति इन योगों से पीड़ित हों, उन्हें भय नहीं, बल्कि सद्ग्रंथ, सत्संग और साधना की शरण लेनी चाहिए।
भक्ति और आत्मबल ही सर्वोच्च रक्षा कवच है।


📜 भूत–प्रेत बाधा योग : ज्योतिषीय सारणी

क्रम योग / संयोजन भाव / स्थान प्रभावित ग्रह ज्योतिषीय स्थिति संभावित प्रभाव लक्षण / संकेत
1 चंद्र–राहु योग (पिशाच योग) लग्न (1st भाव) चंद्र + राहु; पंचम/नवम में पापग्रह मन व आत्मा पर ग्रहण प्रेतबाधा, भ्रम, भय अकारण डर, भ्रम, अस्थिर नींद
2 पापग्रह सप्तम भाव में सप्तम भाव शनि, राहु, केतु, मंगल संबंध भाव दूषित ऊपरी बाधा, मानसिक तनाव लोगों से भय, एकांतप्रियता
3 शनि–मंगल–राहु युति कुण्डली में किसी भाव में शनि, मंगल, राहु त्रिग्रही पिशाच योग अदृश्य शक्ति प्रभाव, दुर्घटना, क्रोध क्रोध, बेचैनी, दुर्घटनाएँ
4 दशा-गोचर पुनरावृत्ति दशा / गोचर काल वही ग्रह (राहु, शनि, मंगल) ग्रह सक्रिय स्थिति में योगों का परिणाम प्रबल मानसिक संकट, भय, रोग वृद्धि
5 नीच चंद्र–राहु संबंध वृश्चिक राशि या नवम भाव चंद्र (नीच) + राहु मन दुर्बल, भाग्य बाधित भूत-बाधा, अवसाद, दुर्भाग्य निराशा, विश्वास की कमी
6 ग्रह-शक्ति क्षीण पंचम या लग्न भाव निर्बल चंद्र, बुध, लग्नेश बुद्धि-मन कमजोर मानसिक विकार, ऊपरी प्रभाव भय, भ्रम, रोग की अनुभूति
7 पूर्ण पिशाच योग वृश्चिक राशि में राहु–चंद्र युति राहु + चंद्र नीच चंद्र योग प्रेतबाधा, मानसिक दुर्बलता भय, अनिद्रा, आत्म-संदेह
8 लग्न, चंद्र, भाग्य भाव अशुभ लग्न, चंद्र, नवम पापग्रह प्रभाव त्रिकोण भाव दूषित भय-भ्रम, आत्म-नाश प्रवृत्ति शक, भ्रम, असुरक्षा
9 राक्षस गण में जन्म नक्षत्र गण विचार राक्षस गण ऊर्जात्मक असंतुलन ऊपरी बाधा शीघ्र प्रभाव शीघ्र भय, स्वप्नभ्रम
10 गोचर में चंद्र–राहु या शनि प्रभाव गोचर काल चंद्र, राहु, शनि वर्तमान गोचर में योग बनना अस्थायी प्रेत बाधा बेचैनी, मन विचलन, भय

🌿 🔹 लक्षणों का सारांश

  • अनिद्रा या डरावने स्वप्न
  • शरीर में कंपन या भारीपन
  • अकारण सिरदर्द या थकान
  • धार्मिक स्थलों में बेचैनी
  • आत्मविश्वास की कमी
  • असमंजस और भ्रम की स्थिति

🌼 🔹 उपाय (शास्त्रानुसार)

क्रम उपाय उद्देश्य
1 महामृत्युंजय मंत्र (108 बार दैनिक) नकारात्मक ऊर्जा शमन
2 हनुमान चालीसा / सुंदरकांड पाठ पिशाच निकटनाशक प्रभाव
3 राहु–शनि शांति यंत्र या पूजन ग्रह दोष निवारण
4 पीपल वृक्ष पूजन (शनिवार) राहु-शनि प्रसन्नता
5 गौसेवा / ब्राह्मण भोजन शुभ कर्म और ग्रह संतुलन
6 तुलसी जल और गंगाजल छिड़काव ऊर्जा शुद्धिकरण

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क्या आपकी कुंडली में पिशाच योग या प्रेतबाधा के संकेत हैं? जानिए ज्योतिषीय दृष्टि से भूत-प्रेत दोष के कारण, लक्षण और शास्त्रीय उपाय।

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