✨ होरा शास्त्र और राशिचक्र का शास्त्रीय विवेचन

Sooraj Krishna Shastri
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होरा शास्त्र और राशिचक्र का शास्त्रीय विवेचन


🪷 (1) श्लोक – राशियों का नाम और क्रम

मेषो वृषश्च मिथुनः कर्कसिंह कुमारिकाः ।
तुलाली च धनुर्नक्रे कुम्भो मीनस्ततः परम्‌ ॥ 3 ॥

यह श्लोक 12 राशियों के क्रम को दर्शाता है जो सूर्य के उदय क्रम (Eastern Horizon) पर लगातार चक्र में घूर्णन करती हैं।

✨ होरा शास्त्र और राशिचक्र का शास्त्रीय विवेचन
✨ होरा शास्त्र और राशिचक्र का शास्त्रीय विवेचन


🔢 राशियों का क्रम (संख्या सहित)

क्रम राशि नाम संस्कृत पर्याय राशि चिह्न
1 मेष मेषः ♈ Aries
2 वृषभ वृषः ♉ Taurus
3 मिथुन मिथुनः ♊ Gemini
4 कर्क कर्कः ♋ Cancer
5 सिंह सिंहः ♌ Leo
6 कन्या कुमारिका ♍ Virgo
7 तुला तुला ♎ Libra
8 वृश्चिक अली (अली = बिच्छु) ♏ Scorpio
9 धनु धनुः ♐ Sagittarius
10 मकर नक्रः ♑ Capricorn
11 कुम्भ कुम्भः ♒ Aquarius
12 मीन मीनः ♓ Pisces

📘 (2) पराशर मुनि का उद्घोष

पराशर उवाच –
"यदव्यक्तात्मको विष्णुः कालरूपो जनार्दनः।
तस्याङ्गानि निबोध त्वं क्रमान्मेषादिराशयः॥"

🔍 भावार्थ:

भगवान विष्णु ही जब "कालपुरुष" (Time-Personified Being) के रूप में प्रकट होते हैं, तो उनकी देह के विभिन्न अंगों में ये बारह राशियाँ स्थित होती हैं। जैसे:

राशि शरीर का अंग (कालपुरुष में)
मेष मस्तक
वृषभ मुख
मिथुन बाहु
कर्क हृदय
सिंह पेट
कन्या कमर
तुला नाभि
वृश्चिक गुप्तांग
धनु जांघ
मकर घुटना
कुम्भ पिंडलियाँ
मीन चरण

यही आधार है "कालपुरुष कुंडली" या नैसर्गिक राशि-भाव व्यवस्था का।


🕰️ (3) होरा – अर्थ व व्युत्पत्ति

"अहोरात्रस्य पूर्वान्त्यलोपात् होरा इति प्रोच्यते।"
— अर्थात् “अहोरात्र” (दिन-रात्रि) शब्द में से पहला (अ) और अंतिम (त्र) अक्षर हटा देने पर 'होरा' शब्द बनता है।

📜 भावार्थ:

  • होरा’ = समय का भाग।
  • एक होरा = 1 घंटा (लगभग)
  • 24 घंटे = 24 होराएँ = प्रत्येक ग्रह को दो-दो होरा स्वामित्व

फलित ज्योतिष में होरा का उपयोग विशेष रूप से ‘फल विचार’ में होता है, विशेषतः मुहूर्त निर्णय या ग्रहशक्ति विश्लेषण हेतु।


🌅 (4) लग्न (Rising Sign) का स्थान और महत्त्व

  • लग्न = उस समय पूर्व क्षितिज पर जो राशि उदित हो रही होती है।
  • यह जातक के शारीरिक स्वरूप, स्वभाव, प्रारब्ध, और जीवन के प्रारंभ को सूचित करता है।

लग्न (Ascendant) ही ‘जन्म का द्वार’ है — फल विचार में यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्त्व है।”

✍️ लग्न कैसे प्राप्त करें?

  • सूर्योदय से इष्टकाल तक का समय निकालें।
  • कुल दिनमान या रात्रिमान को 12 भागों में विभाजित करें।
  • उस इष्टकाल में कौन-सी राशि क्षितिज पर आ रही है — वही उदय लग्न होगी।

🌌 (5) निष्कर्ष:

  1. बारह राशियाँ समय की निरन्तर गति से पूर्व क्षितिज पर उदित होती रहती हैं।
  2. होरा शास्त्र इसी लग्न आधारित राशि चक्र पर आधारित है।
  3. उदय लग्न, नक्षत्र, और सूर्य के साथ-साथ प्राणपद, गुलिक, यमघण्टा आदि तात्कालिक सूक्ष्म गणनाओं से जुड़ा होता है।
  4. फलित ज्योतिष में लग्न एवं उसकी स्थिति प्रमुख होती है — अतः इष्टकाल, स्थान, सूर्योदय, इनका ठीक-ठीक पता अति आवश्यक है।

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