नवग्रहों के मूलत्रिकोण स्थानों की गहराई से व्याख्या

Sooraj Krishna Shastri
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नवग्रहों के मूलत्रिकोण स्थानों की गहराई से व्याख्या

प्रस्तुत श्लोक (51–54) नवग्रहों के मूलत्रिकोण स्थानों की गहराई से व्याख्या करते हैं। यह निर्णय वैदिक ज्योतिष के अत्यंत महत्वपूर्ण तत्त्वों में से एक है। मूलत्रिकोण (Moolatrikona) किसी ग्रह का वह स्थान होता है जहाँ वह अपने स्वगृह की तुलना में भी अधिक स्थिर, शुभ व फलदायक होता है।

नवग्रहों के मूलत्रिकोण स्थानों की गहराई से व्याख्या
नवग्रहों के मूलत्रिकोण स्थानों की गहराई से व्याख्या



📜 श्लोक 51–54 के अनुसार ग्रहों के मूलत्रिकोण स्थान:

श्लोक 51

रवेः सिंहे नखांशाश्च त्रिकोणमपरे गृहम्‌।
उच्चमिन्दोर्वृषे ऋंशास्त्रिकोणमपरेंशकाः ॥५१॥

  • सूर्य का सिंह (Leo) राशि में ०° से २०° तक मूलत्रिकोण, शेष अंशों में स्वगृह
  • चन्द्रमा का वृषभ (Taurus) राशि में ४° से ३०° तक मूलत्रिकोण, पूर्व के ०°–३° में उच्चता।

श्लोक 52

मेषे चर्काशास्तु भौमस्य त्रिकोणमपरे स्वभम्‌।
उच्च बुधस्य कन्यायामुक्तं पंचदर्शांशकाःम्‌ ॥५२॥

  • मंगल का मेष (Aries) में ०° से १२° (कुछ संस्करणों में ०–१८°) तक मूलत्रिकोण, शेष में स्वगृह।
  • बुध का कन्या (Virgo) राशि में:
    • ०°–१५° तक उच्च,
    • १६°–२०° तक मूलत्रिकोण,
    • २१°–३०° तक स्वगृह

श्लोक 53

ततः पंचांशकाः प्रोक्‍तं त्रिकोणमपरे गृहम्‌।
चापे दशांशाः जीवस्य त्रिकोणांशाः परे मताः ॥५३॥

  • गुरु का धनु (Sagittarius) राशि में:
    • ०°–१०° तक मूलत्रिकोण,
    • ११°–३०° तक स्वगृह

श्लोक 54

तुले शुक्रस्य तिथ्यंशास्त्रिकोणमपरे गृहम्‌।
शनेः कुम्भे नखांशाश्च त्रिकोणमपरे स्वभम्‌ ॥५४॥

  • शुक्र का तुला (Libra) राशि में:

    • ०°–१५° तक मूलत्रिकोण,
    • १६°–३०° तक स्वगृह
  • शनि का कुंभ (Aquarius) राशि में:

    • ०°–२०° तक मूलत्रिकोण,
    • २१°–३०° तक स्वगृह

📊 सारणी रूप में ग्रहों के मूलत्रिकोण स्थान और अंश

ग्रह मूलत्रिकोण राशि अंश सीमा शेष अंश में
☉ सूर्य सिंह (Leo) 0° – 20° 21° – 30° = स्वगृह
☽ चन्द्र वृषभ (Taurus) 4° – 30° 0° – 3° = उच्चता
♂ मंगल मेष (Aries) 0° – 12° (या 18°) शेष = स्वगृह
☿ बुध कन्या (Virgo) 16° – 20° 0° – 15° = उच्च, 21°–30° = स्वगृह
♃ गुरु धनु (Sagittarius) 0° – 10° 11° – 30° = स्वगृह
♀ शुक्र तुला (Libra) 0° – 15° 16° – 30° = स्वगृह
♄ शनि कुम्भ (Aquarius) 0° – 20° 21° – 30° = स्वगृह

📝 विशेष टिप्पणी:

  • मूलत्रिकोण स्थान को ग्रह की स्थिर, व्यावहारिक, फलदायक स्थिति मानी जाती है। यह exalted (उच्च) से भी श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि इसमें ग्रह का व्यवहार स्थिर, शान्त और दीर्घकालिक होता है।
  • नीच स्थान असंतुलन, कमजोरी और अस्थायित्व का संकेत देता है।
  • स्वगृह में ग्रह सामान्यत: अच्छा फल देता है, पर मूलत्रिकोण में उसका व्यवहार अत्यंत अनुकूल व विश्वसनीय होता है।

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