ज्योतिषशास्त्र के अपमान और अवज्ञा करने वाले व्यक्ति के लिए अत्यंत कठोर चेतावनी

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

 

ज्योतिषशास्त्र के अपमान और अवज्ञा करने वाले व्यक्ति के लिए अत्यंत कठोर चेतावनी
ज्योतिषशास्त्र के अपमान और अवज्ञा करने वाले व्यक्ति के लिए अत्यंत कठोर चेतावनी

ज्योतिषशास्त्र के अपमान और अवज्ञा करने वाले व्यक्ति के लिए अत्यंत कठोर चेतावनी

यह श्लोक ज्योतिषशास्त्र के अपमान और अवज्ञा करने वाले व्यक्ति के लिए अत्यंत कठोर चेतावनी स्वरूप है। आइए इस श्लोक का विस्तृत विश्लेषण करें:


श्लोक:

यो नरः शास्त्रमज्ञात्वा ज्यौतिषं खलु निन्दति ।
रौरवं नरकं भुक्त्वा चान्धत्वं चान्यजन्मनि ॥ ३ ॥


शाब्दिक अनुवाद:

  • यः नरः – जो मनुष्य
  • शास्त्रम् अज्ञात्वा – शास्त्र को बिना जाने
  • ज्योतिषं खलु निन्दति – ज्योतिषशास्त्र की निन्दा करता है
  • रौरवम् नरकं भुक्त्वा – रौरव नामक भयानक नरक को भोगकर
  • च अन्धत्वम् च अन्यजन्मनि – और अगले जन्म में अन्धत्व (नेत्रहीनता) को प्राप्त होता है।

भावार्थ:

जो व्यक्ति ज्योतिष शास्त्र को बिना समझे, बिना अध्ययन किए उसकी निंदा करता है, वह मृत्यु के उपरांत रौरव नरक में पीड़ाएँ भोगता है और अगले जन्म में अंधा (नेत्रहीन) होकर जन्म लेता है।


गूढ़ तात्त्विक विश्लेषण:

यह श्लोक ज्योतिषशास्त्र की महत्ता, गम्भीरता और दिव्यता को रेखांकित करता है। ऐसा नहीं है कि शास्त्र में अंधविश्वास का समर्थन किया गया है; बल्कि चेतावनी दी गई है कि कोई भी शास्त्र — विशेषतः वेदविहित — यदि उसका अध्ययन, श्रद्धा और विवेकपूर्वक न किया जाए और बिना समझे उसका विरोध किया जाए, तो वह पापकर्म में परिवर्तित हो जाता है।

ज्योतिष, वेदाङ्गों में एक महत्वपूर्ण अंग है। यह केवल ग्रह-नक्षत्रों की गणना नहीं, बल्कि काल की चेतना और धर्म-कर्म के परिणामों की व्याख्या का विज्ञान है। इसके पीछे गहरी गणितीय, दार्शनिक और आध्यात्मिक प्रणाली है।


‘रौरव नरक’ का उल्लेख क्यों?

रौरव’ हिन्दू शास्त्रों में वर्णित एक अत्यंत पीड़ादायक नरक है, जहाँ प्राणी को उसके क्रूर, हिंसात्मक या घोर अपमानजनक कर्मों के लिए दंड दिया जाता है। यहाँ ‘ज्योतिष निंदा’ को इस श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि यह ईश्वरीय ज्ञान की निंदा है।


'अन्धत्वं च अन्यजन्मनि' का संकेत

यह न केवल शारीरिक अंधत्व का संकेत है, अपितु यह आध्यात्मिक अज्ञान की स्थिति को भी दर्शाता है – अर्थात् ऐसा व्यक्ति अगले जन्म में ज्ञान, विवेक और प्रकाश से वंचित होता है।


निष्कर्ष:

यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि किसी भी शास्त्र – विशेषकर वेदाङ्गों जैसे ज्योतिष – के प्रति हमें श्रद्धा, विवेक और जिज्ञासा का भाव रखना चाहिए। बिना अध्ययन के निंदा करना केवल अज्ञान का ही नहीं, बल्कि पाप का लक्षण है, जो आत्मविनाश की ओर ले जाता है।

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!