यहां जो श्लोक उद्धृत किए हैं वे नवग्रहों के ऋतु-स्वामित्व को दर्शाते हैं, जो ग्रहों की स्वाभाविक प्रकृति, उनकी तात्त्विक स्थिति और कालखंडों में उनके प्रभाव को समझने में अत्यंत उपयोगी हैं। यह विशेषतः:
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ग्रहों की ऋतुएँ (श्लोक सहित सारणी) |
🌤️ ग्रहों की ऋतुएँ (श्लोक सहित सारणी)
🔯 ग्रह |
🌸 ऋतु |
📜 श्लोकानुसार विवरण |
☿ बुध |
वसन्त (चैत्र–वैशाख) |
भगो ऋतु वसन्तश्च |
♂ मंगल |
ग्रीष्म (ज्येष्ठ–आषाढ़) |
कुज-भान्वोश्च ग्रीष्मकः |
☉ सूर्य |
ग्रीष्म (ज्येष्ठ–आषाढ़) |
कुज-भान्वोश्च ग्रीष्मकः |
☽ चन्द्रमा |
वर्षा (श्रावण–भाद्रपद) |
चन्द्रस्य वर्षा विज्ञेया |
☿ बुध |
शरद् (आश्विन–कार्तिक) |
शरच्चैव तथा विदः |
♃ गुरु |
हेमन्त (मार्गशीर्ष–पौष) |
हेमन्तोपि गुरोज्ञेयः |
♄ शनि |
शिशिर (माघ–फाल्गुन) |
शनेस्तु शिशिरो द्विजः |
☊ राहु |
आठ मास प्रभावी |
अष्टौ मासाश्च स्वर्भानोः |
☋ केतु |
तीन मास प्रभावी |
केतोर्मासित्रयं द्विजः |
📜 श्लोक (श्लोक 45–46):
भगो ऋतु वसन्तश्च कुज-भान्वोश्च ग्रीष्मकः ।
चन्द्रस्य वर्षा विज्ञेया शरच्चैव तथा विदः ॥४५॥
हेमन्तोपि गुरोज्ञेयः शनेस्तु शिशिरो द्विजः ।
अष्टौ मासाश्च स्वर्भानोः केतोर्मासित्रयं द्विजः ॥४६॥
🧠 विशेष विवेचन:
🔹 विवाद/संशय – "12 में से 8 और 3 मास, शेष 1 मास?"
- राहु (☊) – 8 मास प्रभावी : यह ग्रह दीर्घकालिक, छाया, और भ्रम का प्रतिनिधित्व करता है, इस कारण यह वर्ष के अधिकांश समय अपना प्रभाव बनाए रखता है।
- केतु (☋) – 3 मास प्रभावी : यह मुक्ति, निर्लिप्तता, छेदन का प्रतीक है, इस कारण इसका प्रभाव कुछ सीमित ऋतुओं में ही गहन होता है।
- शेष 1 मास (12 - 8 - 3 = 1) : यह संक्रमणकाल या उपग्रह स्थितियाँ (intercalary period) मानी जा सकती हैं। कई ग्रंथों में इसे “संयुक्त प्रभाव” या ग्रह-दोष मुक्त काल कहा गया है।
🧾 आधारभूत उपयोग:
उपयोग |
उदाहरण |
🌾 कृषि नियोजन |
वर्षा ऋतु – चन्द्रमा के अधीन होने से सिंचन, बोवाई के लिए यह श्रेष्ठ मानी जाती है। |
📆 मुहूर्त निर्माण |
विवाह हेतु वसन्त या शरद – बुध या शुक्र प्रधान ग्रह |
🕉️ पूजा-पाठ व्यवस्था |
हवन, यज्ञ – गुरु की हेमन्त ऋतु श्रेष्ठ |
🧿 ग्रह पीड़ा काल |
राहु के 8 महीनों को विशेष ग्रह शांति, रुद्राभिषेक, दुर्गासप्तशती पाठ के लिए उपयुक्त माना गया है। |