बृहत् पाराशर होरा शास्त्र के आधार पर भाव विचार सिद्धान्त (भाव, भावेश, कारक, त्रिविध लग्न) को सूत्र
निम्न श्लोक बृहत् पाराशर होरा शास्त्र के आधार पर भाव विचार सिद्धान्त (भाव, भावेश, कारक, त्रिविध लग्न) को सूत्र रूप में प्रस्तुत करते हैं। आप जिन श्लोकों (श्लोक 39 से 43) की बात कर रहे हैं, वे अत्यंत मौलिक हैं — ये ज्योतिषीय फल विचार का आधारस्तम्भ कहे जा सकते हैं।
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बृहत् पाराशर होरा शास्त्र के आधार पर भाव विचार सिद्धान्त (भाव, भावेश, कारक, त्रिविध लग्न) का सूत्र |
🔷 श्लोक 39
नवमेऽपि पितुर्ज्ञानं सूर्याच्च नवमेष्थवा ।यत्किंचिद्दशमे लाभे तत्सूर्याद्दशमे भवे ॥
शब्दार्थ एवं भावार्थ:
- नवमे अपि पितुः ज्ञानम् — नवम भाव से पिता का विचार करना चाहिए।
- सूर्यात् च नवमस्थवा — सूर्य से नवम भाव से भी पिता का विचार करें।
- यत्किंचित् दशमे लाभे — कर्म (दशम) और लाभ (एकादश) से जो विचार हो।
- तत् सूर्याद् दशमे भवेत् — वह विचार सूर्य से दशम भाव द्वारा भी करें।
📌 अर्थ:
पिता का विचार केवल नवम भाव से ही नहीं, सूर्य से नवम भाव (यानि सूर्य लग्न से नवम भाव) से भी करें।
कर्म और लाभ की स्थिति भी सूर्य से दशम भाव द्वारा देखी जानी चाहिए।
🔷 श्लोक 40
तुर्ये तनौ धने लाभे भाग्ये यच्चिन्तनं च तत् ।चन्द्रात् तु तनौ लाभे भाग्ये तच्चिन्तयेद् ध्रुवम् ॥
शब्दार्थ एवं भावार्थ:
- तुर्ये = चतुर्थ भाव
- तनौ, धने, लाभे, भाग्ये = 1, 2, 9, 11 भाव
- चन्द्रात् तु... = चन्द्र से भी वही विचार करना चाहिए।
📌 अर्थ:
जिन भावों से लग्न से विचार किया जाता है – लग्न (तनु), धन, लाभ, भाग्य, सुख आदि – उन सभी का विचार चन्द्र लग्न से भी समान रूप से करना चाहिए।
🔷 श्लोक 41
लग्नात् तृतीये भवने यत् कुजात् विक्रमेऽपि तन् ।विचार्यं षष्ठभावस्य बुधात् षष्ठे विलोकयेत् ॥
शब्दार्थ एवं भावार्थ:
- लग्नात् तृतीये भवने — लग्न से तीसरे भाव का विचार।
- यत् कुजात् — मंगल से भी तृतीय (विक्रमे) भाव का विचार।
- विचार्यं षष्ठभावस्य — छठे भाव का विचार
- बुधात् षष्ठे — बुध से षष्ठ भाव में भी वही विचार करें।
📌 अर्थ:
जैसे पराक्रम का विचार लग्न से तीसरे भाव द्वारा होता है, वैसे ही मंगल से तीसरे भाव द्वारा भी करें।
रोग/शत्रु का विचार बुध से षष्ठ भाव से भी करें।
🔷 श्लोक 42
पुत्रस्य च गुरोः पुत्रे जायायाः सप्तमे भृगोः ।अष्टमस्य व्ययस्यापि मन्दान्मृत्यौ व्यये तथा ॥
शब्दार्थ एवं भावार्थ:
- पुत्रस्य च गुरोः पुत्रे — संतान का विचार गुरु से पंचम भाव द्वारा।
- जायायाः सप्तमे भृगोः — पत्नी का विचार शुक्र से सप्तम भाव द्वारा।
- अष्टमस्य व्ययस्य अपि मन्दात् — शनि से अष्टम और व्यय भाव का विचार।
📌 अर्थ:
पंचम भाव, पंचमेश और गुरु से पंचम भाव — तीनों से संतान का विचार।
सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र से सप्तम भाव — पत्नी/पति का विचार।
अष्टम व द्वादश भाव तथा शनि से 8 व 12 भाव — दीर्घायु, हानि, मृत्यु का विचार।
🔷 श्लोक 43
यद्भावाद्यत्फलं चिन्त्यं तदीशात्तत्फलं विदुः ।ज्ञेयं तस्य फलम् तद्वत् तत्र चिन्त्यं शुभाशुभम् ॥
शब्दार्थ एवं भावार्थ:
- यद्भावात् = जिस भाव से
- तदीशात् = उस भाव के स्वामी से
- फलम् विदुः = फल जानना चाहिए।
- तत्र चिन्त्यं शुभाशुभम् — उस भाव के अनुसार शुभ-अशुभ विचार करें।
📌 अर्थ:
जैसे किसी विषय का विचार विशेष भाव से किया जाता है, उसी विषय का विचार उस भाव के स्वामी (भावेश) से भी करना चाहिए।
उदाहरण: धन का विचार द्वितीय भाव, द्वितीयेश और धन कारक ग्रह (शुक्र) — तीनों से करें।
🧠 समग्र निष्कर्ष (सार)
पक्ष | स्रोत | विचार का विषय |
---|---|---|
भाव | लग्न से संबंधित भाव | जैसे नवम से पिता |
भावेश | उस भाव का स्वामी | नवमेश की स्थिति, दृष्टि, युति |
नित्य कारक | प्राकृतिक कारक ग्रह | पिता = सूर्य, संतान = गुरु आदि |
ग्रह लग्न | चन्द्र, सूर्य, मंगल, शुक्र आदि से भाव | जैसे चन्द्र से चतुर्थ, गुरु से पंचम |
दशा प्रभाव | जब उपयुक्त दशा आए | फल प्रकट होगा तभी |