गुलिक, काल, मृत्यु, यमघण्ट, अर्धप्रहर – परिचय

Sooraj Krishna Shastri
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 इस पोस्ट में बृहत्पाराशरहोराशास्त्र के एक और अत्यंत गूढ़ व व्यावहारिक पक्ष – गुलिक, काल, मृत्यु, यमघण्टा आदि अंशों का उल्लेख किया है, जो न केवल वैदिक ज्योतिष के मुहूर्त निर्णय में अत्यंत उपयोगी हैं, बल्कि कुंडली-विश्लेषण में जीवन के संवेदनशील क्षेत्रों का बोध कराते हैं। आइए अब इसे श्लोकानुसार, हिन्दी में भावार्थ सहित एवं व्यवस्थित रूप में समझें।

गुलिक, काल, मृत्यु, यमघण्ट, अर्धप्रहर – परिचय
गुलिक, काल, मृत्यु, यमघण्ट, अर्धप्रहर – परिचय



🌑 गुलिक, काल, मृत्यु, यमघण्ट, अर्धप्रहर – परिचय

📜 मूल श्लोक (श्लोक 69-72)

रविवारादि शन्यन्तं गुलिकादि निरूप्यते ।
दिवसानष्टघा कृत्वा वारेशाद्‌ गणयेद्‌ क्रमात्‌ ॥६९॥

अष्टमोऽंशो निरीशः स्याच्छन्यंशो गुलिकः स्मृतः ।
रात्रिमप्यष्टधाकृत्वा वारेशात्पञ्चमादितः ॥७०॥

गणयेदष्टमः खण्डो निरीशः परिकीर्तितः ।
शन्यंशो गुलिकः प्रोक्तो रव्यंशः कालसंज्ञकः ॥७१॥

भौमांशो मृत्युरादिष्टो गुर्वंशो यमघण्टकः ।
सौम्यांशोऽर्धप्रहरकः स्पष्टकर्मप्रदेशकः ॥७२॥


✍️ सरल हिन्दी भावार्थ

🔹 गणना की विधि:

  1. दिन के गुलिक काल की गणना:

    • रविवार से शनिवार तक किसी भी दिन को लें।
    • उस दिन के सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय को लें (यह 'दिनमान' कहलाता है)।
    • उसे 8 बराबर खंडों (अष्टमांश) में बाँट दें।
    • अब, जिस दिन की बात हो रही हो (जैसे मंगलवार), उस दिन के वारेश (मंगल) से वारक्रमानुसार आठ भागों पर क्रमशः सप्तवार ग्रहों का स्वामित्व दें।
      • जैसे – मंगल → बुध → गुरु → शुक्र → शनि → सूर्य → चन्द्र
    • शनि का जिस अंश पर स्वामित्व पड़े, वही 'गुलिक काल' कहलाता है।
  2. रात्रि के गुलिक काल की गणना:

    • रात्रीमान (सूर्यास्त से अगले दिन के सूर्योदय तक) को भी 8 भागों में बाँटें।
    • गणना वारेश से पाँचवें ग्रह से प्रारंभ करें, और फिर क्रमशः आगे बढ़ाएँ।
      • जैसे यदि सोमवार है (वारेश चन्द्रमा), तो चन्द्र से पाँचवाँ = शुक्र → शनि → सूर्य → चन्द्र → मंगल से गिनना शुरू होगा।

🔹 गुलिक एवं अन्य ग्रहांशों का फल

ग्रहांश (वारेशांश) नाम प्रभाव / उपयोग
शनि गुलिक (Gulika) अशुभ, दुर्घटनाएं, संकट
सूर्य काल (Kāla) घातक, दुष्कर्म-फलदायक
मंगल मृत्यु (Mṛtyu) मृत्यु कारक कार्य या काल
गुरु यमघण्ट (Yamaghanta) रोग, बाधा, कष्ट
बुध अर्धप्रहर (Ardha-Prahara) झंझटपूर्ण व्यवहार, अस्पष्ट कर्म

🔺 ये समय या भाव कुंडली में अथवा मुहूर्त में पाए जाएँ तो विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है।


🕰️ उदाहरण : गुलिक काल की गणना

मान लीजिए किसी दिन सूर्योदय = 6:00 AM और सूर्यास्त = 6:00 PM (दिनमान = 12 घंटे)

12 घंटे = 720 मिनट
720 ÷ 8 = 90 मिनट = प्रत्येक अष्टमांश

अब यदि वार = बुधवार, तो वारेश = बुध

  • अंशाधिपति क्रम : बुध → गुरु → शुक्र → शनि → सूर्य → चन्द्र → मंगल
  • 4वां अंश = शनि का = गुलिक काल

इसलिए, गुलिक काल होगा:

6:00 AM + (3 x 90 मिनट) = 6:00 AM + 4.5 घंटे = 10:30 AM – 12:00 PM


🔍 ज्योतिषीय प्रयोग

  • गुलिक काल में शुभ कार्य नहीं करने चाहिए, जैसे – यात्रा आरंभ, विवाह, गृहप्रवेश।
  • जन्म कुंडली में गुलिक का स्थान, उस भाव की विनाशक ऊर्जा दिखा सकता है।
  • ये गुप्त उपग्रह शास्त्रों में इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि इन्हें नवग्रहों के अतिरिक्त छाया ग्रह माना जाता है।

🪔 निष्कर्ष

"गुलिक, काल, मृत्यु, यमघण्टा, अर्धप्रहर आदि गणनाएँ केवल कालगणना के अंक नहीं, अपितु व्यक्ति के कर्मफल, जीवन की गति एवं उसमें आने वाले गूढ़ व्यवधानों के प्रतीक हैं। इन्हें समझना – एक अनुभवी ज्योतिषी के लिए अनिवार्य है।"

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