गुलिक लग्न साधन – श्लोक, अर्थ और उदाहरण सहित
यहां पर "गुलिक लग्न साधन" विषय प्रस्तुत किया है, जो ब्रहत्पाराशर होरा शास्त्र का एक अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व है। इसमें गुलिक (अथवा मान्दि) का स्पष्ट लग्न निकालकर जातक के जीवन में उसके प्रभाव का आकलन किया जाता है। आइए इसे श्लोक, अनुवाद, प्रक्रिया एवं उदाहरण सहित व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करें।
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गुलिक लग्न साधन – श्लोक, अर्थ और उदाहरण सहित |
🔷 श्लोक 73
📜 हिन्दी अर्थ :
गुलिक के आरम्भकाल में जो लग्न उत्पन्न होता है (अर्थात् गुलिक लग्न) – वही जातक के जीवन पर प्रभाव डालता है। उसी के अनुसार दैवज्ञ को फलादेश करना चाहिए। इस गुलिक का दूसरा नाम "मान्दि" भी होता है।
🔎 गुलिक लग्न साधन की विधि – चरणबद्ध तरीका:
▶️ Step 1: दिनमान जानें
सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय का मान निकालें। उसे "घड़ी" या "घंटा-मिनट" में लिखें।
📌 उदाहरण: दिनमान = 26.24 घड़ी (प्राचीन पद्धति) = 10 घंटे 30 मिनट (आधुनिक पद्धति)
▶️ Step 2: दिनमान को 8 भागों में विभाजित करें
दिनमान ÷ 8 = एक अष्टमांश (1/8 भाग)
जैसे: 26.24 ÷ 8 = 3.28 घड़ी = 1 अष्टमांश(घड़ी को मिनट में बदलना हो तो 1 घड़ी = 24 मिनट)
▶️ Step 3: दिनवार ज्ञात करें
जैसे: बुधवार
▶️ Step 4: अष्टमांश क्रम लगाएँ (दिन के लिए)
दिन के खण्ड वार के अनुसार इस क्रम से आते हैं:
खण्ड क्रम | ग्रह स्वामी |
---|---|
1 | वार का स्वामी |
2 | अगले वार का स्वामी |
3 | अगले का… ऐसे ही |
7 | सातवाँ वारेश |
8 | कोई स्वामी नहीं (शून्य) |
📌 बुध से शुरू करें: बुध → गुरु → शुक्र → शनि → सूर्य → चन्द्र → मंगल
▶️ Step 5: शनि जिस अंश में आता है वही "गुलिक काल"
जिस अष्टमांश का स्वामी शनि है, वही दिन में गुलिक काल होता है।
▶️ Step 6: गुलिक काल में कौन-सा लग्न उदित हो रहा है – वही "गुलिक लग्न"
गुलिक आरम्भ समय से लेकर गुलिक खण्ड के मध्य में उदित होने वाला लग्न ही गुलिक लग्न कहलाता है।
🔢 उदाहरण सहित समझें:
उदाहरण:
- दिन: बुधवार
- दिनमान = 26.24 घड़ी
- गुलिक आरम्भ: 9.54 इष्टकाल
- गुलिक काल = 9.54 इष्ट से 13.2 इष्ट (घड़ी) तक
- इस समय मेष लग्न चल रहा था।
✅ अतः गुलिक लग्न = मेष
या कहें – मेष राशि में गुलिक स्थित है।
🪔 गुलिक लग्न के महत्व:
- गुलिक जिस लग्न में हो, उस भाव, उसके स्वामी एवं उससे संबंधित कारकों पर विशेष प्रभाव डालता है।
- मन्द ग्रह होने के कारण गुलिक पाप प्रभाव देता है।
- गुलिक यदि शुभ भावों में हो तो परिणाम कम हानिकर; लेकिन केन्द्र, त्रिकोण या लग्न में हो तो विशेष ध्यान देने योग्य होता है।